व्हिस्की का स्वाद और सुरूर बताने वाली कृत्रिम जीभ
इसका इस्तेमाल ना सिर्फ क्वालिटी कंट्रोल के लिए बल्कि नकली अल्कोहल के कारोबार को रोकने की मुहिम में भी हो सकता है। परीक्षण के दौरान इसने कई बेशकीमती शराब के नकली नमूनों को पहचान लिया।
ग्लासगो यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ इंजीनियरिंग के एलस्डेयर क्लार्क का कहना है, "हम इसे कृत्रिम जीभ कहते हैं क्योंकि यह इंसान की जीभ की तरह ही काम करता है। हमलोगों की तरह ही यह ये तो नहीं बता सकता कि किस रसायन के कारण कॉफी का स्वाद सेव के रस से अलग है लेकिन दोनों जटिल रसायनों के मिश्रण के बीच का फर्क जरूर बता सकता है।
व्हिस्की को गोल्ड और एल्युमिनियम की चौकोर पट्टियों वाले बोर्ड पर उड़ेला जाता है। यह पट्टियां स्वाद पकड़ने वाले बिंदुओं की तरह काम करती हैं और रिसर्चर उसके बाद मापते हैं कि तरल में डूबे रहने के दौरान वो कैसे रोशनी सोखती हैं। गोल्ड और एल्युमिनियम की पट्टियों के रंग में मामूली परिवर्तन से परीक्षण किए जाने वाले हर नमूने का प्रोफाइल तैयार किया जाता है।
नकली शराब की पहचान करने के साथ ही इसका इस्तेमाल यह पता लगाने में भी किया जा सकता है कि खाने पीने की चीज सुरक्षित है या नहीं। व्हिस्की का मूल्यांकन करने वाली कंपनी रेयर व्हिस्की 101 ने बीते साल 55 दुर्लभ व्हिस्कियों का लैबोरेट्री में परीक्षण किया और फिर पता चला कि बाजार से खरीदी गई 21 व्हिस्कियां नकली थीं। अगर इन 21 बोतलों में असली व्हिस्की होती तो उनकी कीमत करीब 775,000 अमेरिकी डॉलर होती।
व्हिस्की के विशेषज्ञों के संगठन कीपर्स ऑफ क्वैच की निदेशक अनाबेल मीकल का कहना है कि उद्योग जगत इस नई तकनीक का स्वागत करेगा। उन्होंने कहा, "सचमुच हम एक उद्योग के तौर पर ऐसी चीज का स्वागत करेंगे जो नकली व्हिस्की की पहचान करने में मदद करेगी। मीकल का कहना है कि वह नकली व्हिस्की को स्वाद से पहचान सकती हैं लेकिन तकनीक बड़ी मात्रा में नियमित रूप से होने वाले मानवीय परीक्षण की जगह ले सकती है।