वैज्ञानिकों का दावाः दाल-चावल जैसे भारतीय भोजन आनुवांशिक बीमारियों को दे सकते हैं मात
नई दिल्ली। जर्मनी की ल्यूबेक यूनिवर्सिटी के शोध में पता चला है कि भारतीय आहार आनुवांशिक बीमारियों को भी मात दे सकता है। यह भी पता चला है कि बीमारियों का मुख्य कारक केवल डीएनए में गडबड़ी नहीं है, बल्कि आहार उससे भी अधिक अहम है, जो बीमारी पैदा कर सकता है और उस पर लगाम भी लगा सकता है। यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रॉल्फ लुडविज के नेतृत्व में तीन वैज्ञानिकों द्वारा किया गया शोध 'नेचर' के ताजा अंक में प्रकाशित हुआ है। शोधकर्ताओं में रूस के डा0 अर्तेम वोरोवयेव, इजराइल की डा0 तान्या शेजिन और भारत के डा0 यास्का गुप्ता शामिल हैं।
चूहों पर दो साल तक किए गए शोध में पाया गया कि पश्चिमी देशों के उच्च कैलोरी आहार जहां आनुवांशिक माने जाने वाले रोगों को बढ़ाते हैं जबकि भारतीय उपमहाद्वीप के लो कैलोरी आहार रोगों से बचाते हैं। डा0 गुप्ता ने बताया कि अभी तक तमाम आनुवांशिक रोगों को केवल डीएनए के नजरिए से ही देखा जाता है, इस शोध में इसे आहार केंद्रित करके परखा गया। शोधकर्ताओं ने चूहों के उस समूह पर प्रयोग किया जो ल्यूपस नामक रोग से ग्रसित थे। ल्यूपस रोग का सीधा संबंध डीएनए से है। ल्यूपस ऑटोइम्यून रोग की श्रेणी में आता है और इसमें शरीर का प्रतिरोधक तंत्र अपने ही अंगों पर प्रहार करता है और शरीर के विभिन्न अंग व विभिन्न प्रणालियों जैसे जोड़ों, किडनी, दिल, फेफड़े, ब्रेन व ब्लड सेल को नष्ट करता है।
डा0 यास्का गुप्ता ने बताया कि इस शोध के नतीजे सीधे तौर पर बता रहे हैं कि पश्चिमी देशों में आहार में लिए जाने वाले पिज्जा, बर्गर जैसे फास्टफूड आनुवांशिक रोगों को उभारने और बढ़ाने में मददगार बनते हैं, जबकि भारत का शाकाहारी आहार- स्टार्च, सोयाबीन तेल, दाल-चावल, सब्जी और विशेषकर हल्दी का इस्तेमाल इन रोगों से शरीर की रक्षा करने में सक्षम है।
चूहों के दो समूहों में एक को ज्यादा सूक्रोज वाला आहार दिया गया, जैसा पश्चिमी देशों में लिया जाता है। दूसरे समूह को लो कैलोरी वाला नियंत्रित आहार दिया गया, जैसा भारतीय उपमहाद्वीप में लिया जाता है। पहले समूह के चूहे ल्यूपस रोग की चपेट में आ गए और उनकी हालत गंभीर हो गई जबकि दूसरे समूह के चूहे जिन्हें लो कैलोरी डाइट दी गई थी वे ल्यूपस रोग से ग्रसित होने से बच गए।
गुरुवार, 19 सितंबर 2019
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