अहोई अष्टमी व्रतः पूजा विधि, मुहूर्त और कथा
ये व्रत माताएं अपनी संतान के जीवन में हमेशा सुख और समृद्धि बनाए रखने के लिए करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का खास महत्व माना जाता है।
पं0 चैतराम भट्ट
देहरादून। अहोई अष्टमी का व्रत माताएं अपनी संतान के जीवन में हमेशा सुख और समृद्धि बनाए रखने के लिए करती हैं। संतान प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का खास महत्व माना जाता है। ये पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाया जाता है। इस दिन माता पार्वती के अहोई स्वरूप की अराधना की जाती है। पुत्र के लिए रखे जाने वाले इस व्रत में पूरे दिन व्रत रखकर रात में तारों को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है।
अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्तः
अहोई अष्टमी सोमवार, अक्टूबर 21, पूजा मुहूर्त- 05ः22 पी एम से 06ः38 पी एम तक, अवधि - 01 घण्टा 16 मिनट, तारों को देखने के लिये साँझ का समय - 05ः49 पी एम, अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय - 11ः29 पी एम, अष्टमी तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 21 को 06ः44 ए एम बजे, अष्टमी तिथि समाप्त - अक्टूबर 22, 2019 को 05ः25 ए एम बजे
अहोई माता की ऐसे करें पूजाः
- सुबह के समय जल्दी उठकर स्नान आदि कर लें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- अब घर के मंदिर की दीवार पर गेरू और चावल से अहोई माता यानी मां पार्वती और स्याहु व उसके सात पुत्रों का चित्र बनाएं।
- पूजा के लिए आप चाहें तो बाजार में मिलने वाले पोस्टर का भी इस्तेमाल कर सकती हैं।
- अब एक नया मटका लें उसमें पानी भरकर रखें और उस पर हल्दी से स्वास्तिक बनाएं, अब मटके के ढक्कन पर सिंघाड़े रखें।
- घर में मौजूद सभी बुजुर्ग महिलाओं के साथ मिलकर अहोई माता का ध्यान करें और उनकी व्रत कथा पढ़ें।
- सभी महिलाओं के लिए एक-एक स्वच्छ कपड़ा भी रखें।
- कथा के बाद इस कपड़े को उन महिलाओं को भेंट कर दें।
- रात के समय सितारों को जल से अर्घ्य दें और फिर ही उपवास को तोड़ें।
अहोई की कथा
प्राचीन काल में एक साहूकार था, जिसके सात बेटे और सात बहुएं थी। इस साहूकार की एक बेटी भी थी जो दीपावली में ससुराल से मायके आई थी। दीपावली पर घर को लीपने के लिए सातों बहुएं मिट्टी लाने जंगल में गई तो ननद भी उनके साथ चली गई। साहूकार की बेटी जहां मिट्टी काट रही थी, उस स्थान पर स्याहु (साही) अपने साथ बेटों से साथ रहती थी। मिट्टी काटते हुए गलती से साहूकार की बेटी की खुरपी के चोट से स्याहु का एक बच्चा मर गया। इस पर क्रोधित होकर स्याहु बोली- मैं तुम्हारी कोख बांधूंगी।
स्याहु के वचन सुनकर साहूकार की बेटी अपनी सातों भाभियों से एक-एक कर विनती करती हैं कि वह उसके बदले अपनी कोख बंधवा लें। सबसे छोटी भाभी ननद के बदले अपनी कोख बंधवाने के लिए तैयार हो जाती है। इसके बाद छोटी भाभी के जो भी बच्चे होते हैं वे सात दिन बाद मर जाते हैं। सात पुत्रों की इस प्रकार मृत्यु होने के बाद उसने पंडित को बुलवाकर इसका कारण पूछा। पंडित ने सुरही गाय की सेवा करने की सलाह दी।
सुरही सेवा से प्रसन्न होती है और उसे स्याहु के पास ले जाती है। रास्ते में थक जाने पर दोनों आराम करने लगते हैं। अचानक साहूकार की छोटी बहू की नजर एक ओर जाती हैं, वह देखती है कि एक सांप गरूड़ पंखनी के बच्चे को डंसने जा रहा है और वह सांप को मार देती है। इतने में गरूड़ पंखनी वहां आ जाती है और खून बिखरा हुआ देखकर उसे लगता है कि छोटी बहू ने उसके बच्चे को मार दिया है इस पर वह छोटी बहू को चोंच मारना शुरू कर देती है।
छोटी बहू इस पर कहती है कि उसने तो उसके बच्चे की जान बचाई है। गरूड़ पंखनी इस पर खुश होती है और सुरही सहित उन्हें स्याहु के पास पहुंचा देती है। वहां स्याहु छोटी बहू की सेवा से प्रसन्न होकर उसे सात पुत्र और सात बहू होने का आशीर्वाद देती है। स्याहु के आशीर्वाद से छोटी बहू का घर पुत्र और पुत्र वधुओं से हरा भरा हो जाता है। अहोई का अर्थ एक यह भी होता है 'अनहोनी को होनी बनाना।' जैसे साहूकार की छोटी बहू ने कर दिखाया था।