चांद पर दाग का राज खुला
इसरो ने दो तस्वीरें जारी कर ये बताने की कोशिश की है कि चांद के चेहरे पर धब्बे क्यों हैं?
एजेंसी
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो का चंद्रयान-2 लगातार चांद के बारे में नए-नए खुलासे कर रहा है। चंद्रयान-2 का विक्रम लैंडर भले ही सही लैंडिंग न कर पाया हो लेकिन चांद के चारों तरफ चक्कर लगा रहा उसका ऑर्बिटर अब भी हर रोज नई और चौंकाने वाली तस्वीरें सामने ला रहा है। 22 अक्टूबर को भी इसरो ने ऐसी ही दो तस्वीरें जारी की हैं। ये पहली बार है जब इसरो ने चांद की ऐसी रंगीन तस्वीरें आम लोगों के लिए जारी की हैं। इन तस्वीरों में ये पता चल रहा है कि चांद की सतह पर काले दाग क्यों हैं? उसकी सतह पर इतने गड्ढे क्यों हैं?
ये खुलासा चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर में लगे डुअल फ्रिक्वेंसी सिंथेटिक एपर्चर राडार ने किया है। इस उपकरण ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर मौजूद सतह का अध्ययन किया है। इस उपकरण से ये पता कर सकते हैं कि कहां गड्ढे हैं? कहां पहाड़ हैं? कहां समतल जमीन है? और कहां पत्थर पड़े हैं? इस उपकरण की खासियत ये है कि यह कम से कम चांद की सतह से 2 मीटर ऊंची किसी भी वस्तु की तस्वीर आराम से बनवा सकता है. इसके लिए इस उपकरण से दो प्रकार की किरणें निकलती हैं। उन किरणों के सतह से टकराने और उनके वापस लौटने के आंकड़ों को जुटाकर यह पता किया जाता है कि चांद की सतह पर क्या है?
डीएफ-एसएआर से पृथ्वी के इसरो सेंटर्स पर भेजी गई तस्वीरों से पता चलता है कि यह उपकरण चांद की सतह के ऊपर और सतह के नीचे की जानकारी देने में सक्षम हैं। साथ ही डीएफ-एसएआर यह भी बता सकता है कि चांद की सतह पर कौन सा गड्ढा कब बना है? आखिर चांद की सतह पर बने गड्ढों से चांद के काले धब्बों का क्या लेना-देना है? असल में यही गड्ढे और उनकी परछाइयां ही चांद के चेहरे पर काले धब्बे से दिखाई पड़ते हैं।
चांद की सतह पर अक्सर दर्जनों या उससे ज्यादा की संख्या में उल्कापिंड, क्षुद्र ग्रह और धूमकेतु टकराते रहते हैं। इनके टकराने की वजह से ही हजारों वर्षों से चांद की सतह पर ऐसे गड्ढे बन रहे हैं। डीएफ-एसएआर यह भी बता सकता है कि चांद की सतह पर कौन सा गड्ढा कब बना है? जैसे पहली तस्वीर में अगर आप ध्यान से देखें तो आपकों पता चलेगा कि कौन सा गड्ढा नया है और कौन सा पुराना है?
नए गड्ढे का रंग ज्यादा चमकदार और पीले रंग का दिख रहा है। उसके चारों तरफ ताजी मिट्टी और धूल दिखाई दे रही है। इन गड्ढों के अंदर का रंग चांद की सतह से चमकदार और हल्के रंग का होता है।
चांद की सतह पर जिन गड्ढों का रंग गहरा है। यानी काला, नीला और गहरा हरा है वह पुराना गड्ढा है। इन गड्ढों के अंदर का रंग चांद की सतह से मिलता है।
डीएफ-एसएआर से मिले आंकड़ों से यह भी पता चलता है कि चांद की सतह पर उल्कापिंड, क्षुद्र ग्रह और धूमकेतु टकराने से वर्टिकल (सीधे-गहरे गड्ढे) और ऑबलीक (परोक्ष, टेढ़े गहरे गड्ढे) बनते हैं।
उल्कापिंड, क्षुद्र ग्रह और धूमकेतु जब एकदम सीधे जाकर चांद की सतह पर टकराते हैं तब जो गड्ढे बनते हैं उसे वर्टिकल क्रेटर या सीधा-गहरा गड्ढा कहते हैं। चारों तरफ से इनकी गहराई लगभग एक बराबर होती है।
उल्कापिंड, क्षुद्र ग्रह और धूमकेतु जब चांद की सतह से सीधे न टकराकर टेढ़े-मेढ़े तरीके से टकराते हैं तब ऑबलीक क्रेटर या परोक्ष, टेढ़े गहरे गड्ढे बनते हैं। इनमें एक तरफ से गड्ढे की गहराई ज्यादा होती है, जबकि एक तरफ हल्का ढलान होता है। ऐसे गड्ढों की गहराई एक समान नहीं होती है।
चांद की सतह पर कितने गड्ढे हैं, इसका सही आंकड़ा किसी भी देश की अंतरिक्ष एजेंसी या वैज्ञानिकों के पास नहीं हैं। लेकिन एक अनुमान के अनुसार चांद पर 5185 गड्ढे ऐसे हैं जो 19 किमी से ज्यादा चौड़े हैं। 10 लाख गड्ढों की चौड़ाई करीब एक किलोमीटर है। जबकि, करीब 50 लाख गड्ढे ऐसे हैं जिनकी चौड़ाई करीब 10 मीटर या उससे अधिक है।