दिवाली पर पटाखे फोड़ने का आइडिया!
न्यूज डेस्क
देहरादून। दीवाली आने में अब कुछ ही दिन बाकी हैं। इस पर्व को लोग बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। घर का हर कोना रोशनी से जगमगाता रहता है। बच्चे और युवा पटाखे फोड़ते हैं। लेकिन ये पटाखे चलाने की शुरुआत हुई कहां से हुई? इसके पीछे किसका दिमाग था और क्या मुगल भारत पटाखे लेकर आए थे या फिर इसके पीछे कुछ और ही कारण है।
साल 1923 में अैया नादर और शनमुगा नादर काम की तलाश में कलकत्ता गए। यहां पर इन दोनों ने एक माचिस की फैक्ट्री में काम किया। इसके बाद ये दोनों अपने घर शिवकाशी जो कि तमिलनाडु में है लौट आये। यहां आकर इन्होंने माचिस की फैक्ट्री की नींव रखी।
साल 1940 में एक्स्प्लोसिव एक्ट में संशोधन किया गया, जिसमें एक खास स्तर के पटाखों के बनाने पर पाबंदी हटा दी यानि इसे वैध करार दे दिया गया। नादर ब्रदर्स ने इसका फायदा उठाया और इसी साल पटाखों की पहली फैक्ट्री डाल दी। इसके बाद उन्होंने पटाखों को दीवाली से जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी।
नादर ब्रदर्स ने शिवकाशी में पटाखों की फैक्ट्री तेजी से फैलाई। साल 1980 तक सिर्फ शिवकाशी में ही पटाखों की 189 फैक्ट्रियां थीं। सुप्रीम कोर्ट भी पटाखों को लेकर बैन जारी कर चुका है, लेकिन लोगों के लिए दीवाली का मतलब पटाखों से जुड़ा हुआ है।
ऐसे में माना जा सकता है कि पटाखों का इतिहास 1940 से ज्यादा पुराना नहीं है। वहीं जहां तक सवाल है मुगलों का पटाखों से जुड़ने का, तो मुगलों के दौर में आतिशबाजी और पटाखों का खूब इस्तेमाल होता था लेकिन ये कहना सही नहीं होगा कि भारत में पटाखे मुगल ही लेकर आए थे।
कई जानकारों का तो ये तक मानना है कि मुगल तो भारत में पटाखे नहीं लाए, लेकिन उनसे पहले ही पटाखे आ चुके थे। माना तो ये भी जाता है कि मुगलों से पहले आए पटाखों का इस्तेमाल शिकार या फिर हाथियों की लड़ाई में किया जाता था। पटाखे चलाकर इन्हें डराया जाता था।