हमारे देश में बैंक डिपाजिट इंश्योरेंस महज एक लाख क्यों!
बैंकों में जमापूंजी के डूबने से लोग हताश हैं और आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे
हमारे देश में बैंक डिपाजिट इंश्योरेंस महज एक लाख क्यों!
प0नि0डेस्क
देहरादून। पंजाब एंड महाराष्ट्र कोपरेटिव पीएमसी बैंक संकट के सामने आने के बाद बैंकों के ग्राहकों द्वारा जमा राशि की सुरक्षा को लेकर तमाम तरह की आशंकाएं लोगों में व्याप्त हो गई है। अपनी जमापूंजी के बैंकों में डूबने से लोग हताश हैं और आत्महत्या जैसे कदम उठा रहे हैं। कोई इलाज नहीं करवा पा रहा तो कोई बच्चों के स्कूल की फीस नहीं दे पा रहा। ऐसे में डिपाजिट पर इंश्योरेंस की सीमा बढ़ाए जाने को लेकर विचार किया जा रहा है।
बता दें कि भारत में डिपाजिट इंश्योंरेंस की लिमिट दुनियाभर में सबसे कम है, जिसमें 1-2 लाख की बढ़ोतरी भी नाकाफी होगी। 1993 में तय किए गए डिपाडिट इंश्योरेंस में अब तक कोई बदलाव नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल है कि बैंक डिपाजिट इंश्योरेंस बढ़ाया जाना क्यों जरूरी है? जबकि पीएमसी बैंक संकट के बाद इसके ग्राहकों की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। हालत यह है कि खाते में पैसे होते हुए लोग अपने बच्चों की स्कूल फीस से लेकर इलाज तक का खर्च नहीं जुटा पा रहे हैं। इन मामलों से अब दूसरे बैंकों के ग्राहक भी चिंतित हैं।
विदित हो कि देश की संसद में करीब 58 साल पहले ऐसी ही चिंताओं को लेकर सवाल उठाए गए, जिसके बाद संसद ने डिपाजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कार्पाेरेशन एक्ट, 1961 नाम से एक कानून पास किया। इसके तहत डिपाजिट इंश्योरेंस ऐंड क्रेडिट गारंटी कार्पाेरेशन डीआईसीजीसी नाम से एक संस्थान बनायी गयी, जो बैंक के दिवालिया या डूबने की स्थिति में प्रत्येक जमाकर्ता को एक निश्चित रकम के वापसी की गारंटी देता है। वर्ष 1968 में गारण्टी की यह रकम 5,000 रुपये थी।
इस रकम में समय-समय पर बढ़ोतरी होती गई और 1993 में इसे बढ़ाकर एक लाख रुपये कर दिया गया। इसके बाद से आज तक इस रकम में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है। इसका मतलब यह कि अगर आज आपका बैंक किसी कारणवश डूब जाए तो आपको एक लाख रुपये तक ही वापस मिलने की गारंटी होगी। बाकी की रकम बट्टे खाते में चली जायेगी।
भारतीय बैंकों में जमा पैसों पर मिलने वाला यह इंश्योरेंस पूरी दुनिया मंे सबसे कम है। अब आपको दुनिया के अन्य देशों में इस इंश्योरेंस की लिमीट भी बता देतें है। भारत की प्रति व्यक्ति आमदनी के स्तर वाले रूस में यह लिमिट 12 लाख और ब्राजील में 42 लाख रुपये है। चीन प्रत्येक खाते पर करीब 58 लाख रुपये की गारंटी देता है। ग्रीस हर खाते पर करीब 80 लाख रुपये की गारंटी देता है।
हालांकि ऐसी कुछ रिपोर्टें आई हैं कि सरकार डिपाजिट इंश्योरेंस कवर एक लाख से बढ़ाकर 2 से 5 लाख रुपये तक करने पर विचार कर रही है। स्टेट बैंक आफ इंण्यिा ने भी पिछले साल अपनी एक रिपोर्ट में इसे लिमीट को बढ़ाकर 2 लाख करने का सुझाव जरूर दिया था।
हालांकि यह बढ़ोतरी बैंक के जमाकर्ताओं के लिए नाकाफी ही होगी क्योंकि 1993 के एक लाख रुपये को अगर सिर्फ महंगाई दर से जोड़ा जाए तो आज यह रकम 15 लाख रुपये से अधिक होती है। ऐसे में सरकार को डिपाजिट इंश्योरेंस का 1 लाख से बढ़ाकर 2 लाख करने का कोई तुक नहीं रह जाता। सरकार को इस लिमिट को कम से कम इतना बढ़ाना चाहिए, जिससे भविष्य में किसी और शख्स की जान न जाये।
हाल फिलहाल जिस तरह से सरकार लोगों के लिए लोकलुभावन योजनाओं द्वारा रिझाने का प्रयास कर रही है उसके मुकाबले यदि वह लोगों की रकम को न डूबने देने की गारण्टी दे तो इससे बेहतर बात क्या हो सकती है। हैरानी की बात है कि पीएमसी बैंक जैसे हादसे के बाद भी सरकार तो सरकार, किसी भी विपक्षी दल ने इसके लिए आवाज नही उठायी है। वहीं देशभर में विभिन्न संगठन जो अक्सर उपदेशकों की भूमिका में होते है, ने भी जरूरी नही समझा की इसके लिए सरकार पर दबाव बनाया जाये।