इसरो करेगा ऐसा प्रयोग जो अब तक नही हुआ!
प्रयोग के जरिए इसरो अंतरिक्ष में रचेगा इतिहास
एजेंसी
नई दिल्ली। भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो चंद्रयान-2 की विफलता के बाद तेजी से नए मिशन पर काम कर रहा है। इसरो अब स्पेस स्टेशन बनाने जा रहा है। इतिहास में यह पहली बार है जब इसरो यह अहम काम करने जा रहा है। इसरो चीपफ डा0 के0 सिवन ने कुछ महीने पहले बयान जारी कर यह जानकारी दी थी। हालांकि स्पेस स्टेशन बनाने के लिए सबसे अहम है कि दो सैटेलाइट या उपग्रहों को आपस में जोड़ना है।
असल में सैटेलाइट्स की गति कम करके उन्हें अंतरिक्ष में जोड़ना सबसे चुनौतीभरा है। अगर गति सही मात्रा में कम नहीं हुई तो इनके आपस में टकराने की पूरी संभावना रहती है। लिहाजा इसरो के लिए यह कार्य बड़ा जटिल है। सरकार से अभी इस प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए 10 करोड़ रुपए मिले हैं।
इसरो चीपफ डा0 के0 सिवन ने बताया कि इस मिशन का नाम स्पेडेक्स यानी स्पेस डाकिंग एक्सपेरीमेंट है। इसके लिए दो प्रायोगिक उपग्रहों को पीएसएलवी राकेट से लान्च किया जाएगा। उसके बाद उसे अंतरिक्ष में जोड़ा जाएगा।
इसरो चीफ डा0 के0 सिवन ने बताया कि यह एक प्रायोगिक मिशन है। क्योंकि स्पेस स्टेशन का मिशन दिसंबर 2021 के गगनयान अभियान के बाद ही शुरू किया जाएगा। अंतरिक्ष में इंसानों को भेजने और डाकिंग में महारत हासिल करने के बाद ही स्पेस स्टेशन मिशन की शुरुआत की जा सकेगी।
इसरो प्रमुख डा0 के0 सिवन के मुताबिक पहले स्पेडेक्स मिशन को 2025 तक पीएसएलवी राकेट से लान्च करने की तैयारी थी। इस प्रयोग में रोबोटिक आर्म एक्सपेरीमेंट भी शामिल होगा। इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को 5 देशों की अंतरिक्ष एजेंसियों ने इसे मिलकर बनाया है। इसमें अमरीका नासा, रूसी रोसकोसमोस, जापान की जाक्सा, यूरोप की ईएसए और कनाड़ा की सीएसए अंतरिक्ष एजेंसी शामिल है। एक्त् स्पेस सेंटर को बनने में 1 दशक से ज्यादा का वक्त लगा था।
इसमें भी डाकिंग टेक्नोलाजी का उपयोग किया गया था। आईएसएस को बनाने में 40 बार डाकिंग की गई थी। सिवन ने बताया कि इसरो वैज्ञानिकों को यह जानकारी जुटानी होगी कि अपने स्पेस स्टेशन में ईंधन, अंतरिक्ष यात्रियों और अन्य जरूरी वस्तुएं पहुंचा पाएंगे या नहीं।
इसरो चीफ डा0 के0 सिवन ने बताया कि भारतीय स्पेस स्टेशन का वजन 20 टन होगा। भारतीय स्पेस स्टेशन में 15-20 दिन के लिए कुछ अंतरिक्षयात्रियों के ठहरने की व्यवस्था होगी। साथ ही विभिन्न प्रकार के प्रयोग करने में सुविधा होगी। वहीं माइक्रोग्रैविटी का अध्ययन किया जाएगा। अगर इसरो 5 से 7 साल में अपना स्पेस स्टेशन बना लेगा तो वह दुनिया का चौथा देश होगा, जिसका खुद का स्पेस स्टेशन होगा। इससे पहले अमरीका, रूस और चीन अपना स्पेस स्टेशन है।