भारत-फ्रांस सहयोग की अनूठी मिसाल
मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड
एजेंसी
नई दिल्ली। भारतीय रेलवे ने मधेपुरा इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव प्राइवेट लिमिटेड (एमईएलपीएल) के साथ खरीद-सह-रखरखाव समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो भारतीय रेलवे और मेसर्स अल्सटॉम का एक संयुक्त उद्यम है। भारतीय रेलवे की सबसे बड़ी एफडीआई (प्रत्यक्ष विदेशी निवेश) परियोजना के तहत रेल मंत्रालय और अल्सटॉम ने भारत में भारी माल की ढुलाई से जुड़े परिदृश्य में व्यापक बदलाव लाने के लिए आपस में गठबंधन किया था। माल ढुलाई तथा इससे संबंधित रखरखाव हेतु 800 इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव के निर्माण के लिए 3.5 अरब यूरो के एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे।
मेसर्स अल्सटॉम ने मार्च, 2018 में लोकोमोटिव का प्रारूप पेश किया। इसके परीक्षण से जुड़े परिणामों के आधार पर अल्सटॉम ने नये सिरे से डिब्बे (बोगी) सहित संपूर्ण लोकोमोटिव की डिजाइनिंग की है। अनुसंधान अभिकल्प एवं मानक संगठन (आरडीएसओ) ने मधेपुरा फैक्टरी में लोकोमोटिव के नये डिजाइन का निरीक्षण किया और फिर इसके बाद फैक्टरी से इसकी रवानगी को मंजूरी दे दी है। मेसर्स अल्सटॉम कई परीक्षणों के बाद इसकी डिलीवरी में तेजी लाएगी और अपनी योजना के तहत वित्त वर्ष 2019-20 में 10 लोकोमोटिव, वित्त वर्ष 2020-21 में 90 लोकोमोटिव और फिर मार्च, 2021 के बाद हर वर्ष 100 लोकोमोटिव की सप्लाई करेगी। किसी भी रेलवे द्वारा दुनिया में पहली बार बड़ी लाइनों के नेटवर्क पर इतनी अधिक हॉर्स पावर वाले लोकोमोटिव का परीक्षण किया जा रहा है।
इस परियोजना के तहत बिहार के मधेपुरा में टाउनशिप के साथ यह फैक्टरी स्थापित की गई है, जहां प्रति वर्ष 120 लोकोमोटिव का निर्माण करने की क्षमता है। इस परियोजना से देश में 10,000 से भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रोजगार सृजित होंगे। कंपनी द्वारा इस परियोजना में 2000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की राशि पहले ही निवेश की जा चुकी है। एक रखरखाव डिपो भी पहले ही सहारनपुर में स्थापित किया जा चुका है। नागपुर में दूसरे डिपो की स्थापना काम शुरू हो चुका है। भारत और फ्रांस के 300 से भी अधिक अभियंता इस परियोजना पर बेंगलुरू, मधेपुरा और फ्रांस में काम कर रहे हैं। यह सही मायनों में 'मेक इन इंडिया' परियोजना है और यहां तक कि पहले लोकोमोटिव की असेम्बलिंग भी मधेपुरा फैक्टरी में हुई है। दो वर्षों की अवधि में 90 प्रतिशत से भी अधिक कलपुर्जों को भारत में निर्मित किया जाएगा।
इस परियोजना से मधेपुरा में फैक्टरी की स्थापना के साथ-साथ सामाजिक-आर्थिक विकास में भी तेजी आ रही है। कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) की पहल के तहत मधेपुरा में कौशल केन्द्र स्थापित किए जा रहे हैं, ताकि स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण दिया जा सके। इस फैक्टरी में 50 प्रतिशत से भी अधिक स्थानीय लोगों की भर्ती की गई है। पूरी तरह से कार्यरत 'चलते-फिरते हेल्थ क्लीनिक' का संचालन मधेपुरा के आस-पास के गांवों में किया जा रहा है।
भारतीय रेलवे ने 22.5 टन के एक्सल लोड से युक्त और 120 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार वाली 12,000 हॉर्स पावर के ट्विन बो-बो डिजाइन वाले लोकोमोटिव को हासिल करने का निर्णय लिया है, जिसे बढ़ाकर 25 टन तक किया जा सकता है। यह लोकोमोटिव समर्पित माल-ढुलाई गलियारे के लिए कोयला चालित ट्रेनों की आवाजाही के लिए गेम चेंजर साबित होगा। इस परियोजना के सफल होने पर भारत सरकार के 'मेक इन इंडिया' कार्यक्रम को काफी बढ़ावा मिलेगा। इससे लोकोमोटिव (रेल-इंजन) के कलपुर्जों के लिए सहायक इकाइयों (यूनिट) का और भी तेजी से विकास होगा।
इस परियोजना से भारी माल वाली रेलगाड़ियों की त्वरित एवं सुरक्षित आवाजाही सुनिश्चित होगी। यह 100 किलोमीटर प्रति घंटे की अधिकतम गति से 6000टी ट्रेनें चलाएगा। शत-प्रतिशत विद्युतीकरण होने से नया लोकोमोटिव न केवल रेलवे की परिचालन लागत कम करेगा, बल्कि भारतीय रेलवे को भीड़-भाड़ से भी मुक्ति दिलाएगा। इसका उपयोग कोयला एवं लौह अयस्क जैसी चीजों से युक्त भारी रेलगाडियों को चलाने में किया जाएगा।