डायबिटीज से बचना है तो तीन सफेद चीजों से रहें दूर
युवा और बच्चे भी अब बन रहे है डायबिटीज के शिकार
न्यूज डेस्क
देहरादून। आधुनिक जीवनशैली, बेतरतीब खानपान व तनाव के कारण आज के दौर में हर उम्र के लोग डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं। खासकर युवाओं में यह बीमारी तेजी से बढ़ रही है। दिन-प्रतिदिन डायबिटीज मरीजों की संख्या बढ़ रही है, जो महामारी का रूप लेने लगी है।
जानकारों का कहना है कि पिछले कुछ वर्षों से स्कूली बच्चे भी डायबिटीज के शिकार हो रहे हैं। करीब 30-35 प्रतिशत बच्चों में प्री-डायबिटीज देखा गया है। इसकी मुख्य वजह है कि स्कूलों में फिजिकल एक्टिविटी का न होना और जंक फूड का बेहद ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है।
विशेषज्ञों का मानना है कि हर व्यक्ति को खान-पान पर विशेष ध्यान देने के साथ-साथ नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम करना चाहिए। वहीं खान-पान के तीन व्हाइट चीजों से बचना चाहिए। इसमें चीनी, मैदा और नमक शामिल हैं। इन चीजों को कम से कम सेवन करने से डायबिटीज बीमारी से बचा जा सकता है। डाक्टरों का मानना है कि डायबिटीज मरीजों को अधिक से अधिक रेसेदार पफलों को खाने का प्रयास करना चाहिए और रिफाइंड से बचना चाहिए।
गौर हो कि डायबिटीज के दो प्रकार होते हैं। टाइप-1 और टाइप-2। डायबिटीज टाइप-1 मुख्य रूप से जेनेटिक कारणों से होती है और अधिकतर कम उम्र में होती है। जबकि सबसे ज्यादा होने वाली डायबिटीज टाइप-2 है जिसका प्रमुख कारण अनियमित जीवनशैली और गलत खान-पान है। यह मुख्य रूप से 40 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को होती है। डायबिटीज टाइप-2 को जीवनशैली और खान-पान द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है।
डायबिटीज के लिए मोडिफाइबल फैक्टर जिम्मेदार है। इसमें मुख्य तीन आदतें है जो इस प्रकार हैः
गलत खानपान- स्वस्थ व्यक्ति को अपने शरीर के प्रति किग्रा वजन के हिसाब से रोजाना 25-30 कैलोरी डाइट लेनी चाहिए। शहरी क्षेत्रों में रेडी टू इट और फूड होम डिलिवरी के चलन से लोग अधिक खा लेते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी खाने की गुणवत्ता और मात्रा बढ़ी है। फास्ट फूड में फैट के साथ-साथ शूगर भी होता है जो नुकसान करता है। यह पेट की चर्बी को बढ़ता है। चर्बी बर्न नहीं होने के कारण मोटापा और फिर डायबिटीज होती है।
तनाव- स्ट्रेस शरीर में चार तरीके के स्ट्रेस हार्माेन का स्तर बढ़ाता है। इसका पैंक्रियाज पर असर होता है, इससे शूगर बढ़ती है और डायबिटीज होती है।
फीजिकल वर्क- पहले के लोग ज्यादा शारीरिक परिश्रम करते थे जिससे उनकी कैलोरी बर्न होती थी लेकिन अब जीवनशैली में ऐसी हो गयी है कि लोग शारीरिक मेहनत बहुत कम करते हैं। इसलिए शरीर में कैलोरी बर्न नहीं होती है और फैट के रूप में जमा होती रहती है। कमर के आस-पास वाला विसरल फैट ज्यादा नुकसान करता है। फैट सेल्स के दुष्प्रभाव से मेटाबालिज्म यानी भोजन के ऊर्जा में बदलने की प्रक्रिया बिगड़ जाती है।
इंसुलिन एक प्रकार का हार्माेन है जिसका निर्माण अग्नाशय में होता है। हमारा आमाशय कार्बाेहाइड्रेट्स को रक्त शर्करा में परिवर्तित करता है। इंसुलिन के माध्यम से यह रक्त शर्करा ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है। यदि पैनक्रियाज इंसुलिन बनाना बंद कर दे तो ब्लड ग्लूकोज ऊर्जा में परिवर्तित नहीं होगी। ऊर्जा की कमी के कारण व्यक्ति जल्दी थक जायेगा, इसलिए ऊर्जावान रहने के लिए इंसुलिन का निर्माण होना जरूरी है।
इंसुलिन शरीर के लिए उपयोगी है। इंसुलिन के जरिये ही रक्त में, कोशिकाओं को शुगर मिलती है यानी इंसुलिन शरीर के अन्य भागों में शुगर पहुंचाने का काम करता है। इंसुलिन द्वारा पहुंचायी गयी शुगर से ही कोशिकाओं या सेल्स को ऊर्जा मिलती है। इसलिए डायबिटीज के रोगियों को इंसुलिन की अतिरिक्त खुराक दी जाती है।
इंसुलिन व्यक्ति के शरीर में जरूरत के अनुसार बनता है। व्यक्ति के शरीर, हार्माेन और दिनचर्या के आधार पर इसका निर्माण होता है। पैंक्रियाज में शरीर की जरूरत के अनुसार इंसुलिन घटता-बढ़ता है।
जीवन-शैली व खान-पान में सुधार कर इस बीमारी से बचा जा सकता है। डायबिटीज होने के बाद मरीजों को नियमित शारीरिक व्यायाम व खाने पर ध्यान देने की जरूरत है। आंख, किडनी और ब्लड शूगर का नियमित जांच कराते रहना चाहिए। पहले 40 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोग डायबिटीज के शिकार हो रहे थे लेकिन अब हर आयु वर्ग के लोग डायबिटीज के शिकार हो रहे है। इसकी मुख्य वजह बेतरतीब खान-पान व जीवन शैली है।