गैर कानूनी है फौज की वर्दी जैसे कपड़े पहनना!
प0नि0डेस्क
देहरादून। राज्य सभा के मार्शलों की नई पोशाक ने विवाद को जन्म दे दिया। ऐसे में सवाल भी उठे कि आखिर असैन्य कर्मियों की वर्दी सेना की पोशाक से कितनी अलग दिखनी चाहिए!
पिछले दिनों जब संसद के शीतकालीन सत्रा की शुरुआत हुई तो राज्य सभा में दिखे एक बदलाव से एक विवाद खड़ा हो गया। राज्यसभा में सभापति के बगल में तैनात मार्शलों की पोशाक बदल गई।
पहले मार्शल सफेद बंद गला और सर पर साफा पहनते थे। उन्हें नए रूप में देखा गया। नीले रंग का एक ऐसा कोट पहने जो सेना की वर्दी से मिलता जुलता है। इसमें कन्धों पर इन्सिग्निया था, सुनहरे बटन थे, जेब से कन्धों तक सुनहरा ऐग्लेट था और सर पर एक टोपी थी जो सेना के अधिकारियों द्वारा पहने जाने वाली टोपी से मिलती जुलती थी।
कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने सभापति से इस बारे में पूछना चाहा पर सभापति उप-राष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उनकी बात अनदेखी कर दी। मामले को गंभीरता से तब लिया गया जब सेना के ही कुछ पूर्व वरिष्ठ अधिकारियों ने इस पर आपत्ति जताई।
पूर्व सेना प्रमुख जनरल वेद मलिक ने ट्वीट करके कहा कि असैन्य कर्मियों का सेना की वर्दी की नकल करना और उसे पहनना गैर-कानूनी और सुरक्षा की दृष्टि से खतरनाक है। पूर्व सैन्य अधिकारियों का विरोध असर हुआ और उप-राष्ट्रपति ने कहा कि वे मार्शलों की नई पोशाक की समीक्षा करेंगे।
इसके पहले भी कई मौकों पर सेना ये अपील कर चुकी है कि आम नागरिकों और असैन्य कर्मियों को सैन्य पोशाक या उस से मिलती जुलती पोशाक नहीं पहननी चाहिए, क्योंकि यह गैरकानूनी है।
जनवरी 2016 में पंजाब के पठानकोट में वायु सेना के केंद्र पर आतंकवादी हमले के बाद भी सेना ने ऐसी ही अपील जारी की थी। सेना ने पुलिस, सुरक्षा बल और निजी सुरक्षा एजेंसियों से भी अपील की थी कि वो युद्व पैटर्न वाली पोशाकें न पहनें।
क्या वाकई सेना की वर्दी से मिलते जुलते कपड़े पहनना एक अपराध है? फैशन अपनी जगह है और कानून अपनी जगह। भारत में कई कानून हैं जिनके तहत सैन्य पोशाकों को पहनने पर पाबंदी है। इससे जुड़े प्रावधान सशस्त्र बल अधिनियम एफए, आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम ओएसए और भारतीय दंड संहिता आईपीसी में भी हैं।
आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम की धारा 6 में इस पर प्रतिबंध है और इसका उल्लंघन करने पर तीन साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है। भारतीय दंड संहिता की धारा 140 के तहत भी इस पर प्रतिबंध है और उल्लंघन करने पर तीन महीने तक की जेल और 500 रुपये जुर्माने का प्रावधान है।
इन दोनों ही कानूनों में दो महत्वपूर्ण शर्तें हैं। ओएसए के तहत यह साबित होना जरूरी है कि जिसने भी सैन्य पोशाक पहनी है वो ऐसा करके किसी प्रतिबंधित जगह प्रवेश पाना चाह रहा था या ऐसा करके देश की सुरक्षा को कोई नुकसान पहुंचाना चाहता था। आईपीसी की धारा 140 के अनुसार सैन्य पोशाक पहनने के पीछे सिपाही या सैन्य अधिकारी बनकर धोखा देने की मंशा साबित होनी चाहिए।
इन दोनों शर्तों को देखें तो लगता है कि सिर्फ फैशन के लिए सैन्य पोशाकों के डिजाइन से प्रेरित कपड़े पहनना जुर्म नहीं है। राज्य सभा वाला मामला उतना संगीन नहीं है जितना उसे बना दिया गया है। मार्शलों ने अपनी वर्दी पर सेना का कोई चिन्ह नहीं लगाया। वर्दी के कोट का रंग भी गहरा नीला है जो सेना में नहीं होता। पी कैप की जगह वो किसी और कैप का इस्तेमाल कर सकते थे क्योंकि वह सेना से मिलती जुलती है।