हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की जान लेता न्यूमोनिया
पिछले साल न्यूमोनिया के कारण 8 लाख शिशुओं की मौतें हुई। निमोनिया को लेकर जागरुकता फैलाने की जरुरत है।
न्यूज डेस्क
देहरादून। न्यूमोनिया के कारण पिछले साल 8 लाख से अधिक शिशुओं और छोटे बच्चों की मौत हो गई। हर 39 सेकेंड में एक बच्चे की मौत इससे हुई है। यह दावा विश्व की स्वास्थ्य एजेंसियों का है। हालांकि न्यूमोनिया का इलाज संभव है और इसे रोका जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ), सेव द चिल्ड्रन समेत 4 और स्वास्थ्य एजेंसियों ने सरकारों से टीकाकरण में निवेश बढ़ाने के साथ-साथ, इस बीमारी के इलाज और स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का आग्रह किया है।
इन एजेंसियों ने विश्व न्यूमोनिया दिवस के मौके पर भुला दी गई बीमारी नाम से रिपोर्ट जारी की। तथ्य यह है कि यह आसानी से रोके जाने वाली, इलाज और निदान वाली बीमारी है, लेकिन हैरान करने वाली बात है कि छोटे बच्चों की जान लेने वाली यह दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी भी है।
न्यूमोनिया फेफड़ों से जुड़ी बीमारी है, यह बैक्टीरिया, वायरस या फंगस के कारण होता है। अगर किसी इंसान को न्यूमोनिया हो जाता है तो उसके फेफड़ों में पस और कई बार पानी भी भर जाता है और मरीज को सांस लेने में दिक्कत होती है। टीकाकरण ही न्यूमोनिया से बचा सकता है और इसका इलाज एंटी बायोटिक्स से भी किया जा सकता है।
कई मामलों में ऑक्सीजन से भी इलाज मुमकिन है लेकिन गरीब देशों में इस तरह के इलाज तक पहुंच सीमित है। पिछले साल न्यूमोनिया से मरने वालों कुल बच्चों की संख्या में आधे से अधिक बच्चे नाइजीरिया, भारत, पाकिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो और इथियोपिया के थे।
टीका की कमी, सस्ते एंटीबायोटिक और नियमित ऑक्सीजन उपचार की कमी के चलते लाखों बच्चे मर रहे हैं। इस वैश्विक महामारी पर तुरंत अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रिया की जरुरत है।
रिपोर्ट के मुताबिक 5 साल से कम उम्र के करीब 15 फीसदी बच्चों की मौत न्यूमोनिया के कारण होती है। इलाज पर होने वाले अध्ययनों में न्यूमोनिया पर सिर्फ 3 फीसदी रकम खर्च होती है। बीमारियों के अध्ययन पर होने वाले खर्च के मामले में न्यूमोनिया मलेरिया से पीछे है।