महिलाओं का दिमाग़ पुरुषों से अलग होता है!
प0नि0डेस्क
देहरादून। लड़का-लड़की में भेद वाली सोच दुनिया भर में है जबकि ईश्वर ने दोनों को एक जैसा बनाया है। सभी मानते है कि मर्द और औरत ज़िंदगी की गाड़ी के दो पहिए हैं। फिर भी दोनों आपस में फर्क करते हैं। मर्द और औरत के दिमाग बुनियादी तौर पर एक दूसरे से अलग हैं।
पैदाइश से लेकर बुढ़ापे तक बर्ताव, चाल-ढाल और सोच-समझ के तरीके को आधार बनाकर मान लिया गया है कि औरत और मर्द के दिमाग में बुनियादी फर्क है। इंसान क़रीब 200 बरसों से जानने की कोशिश कर रहा हैं कि क्या मर्द का दिमाग औरत के दिमाग से अलग है लेकिन हमेशा ही इस सवाल का जवाब नहीं में रहा है। फिर भी समाज से अंतर नहीं मिट रहा है।
हालांकि आकार में महिलाओं का मस्तिष्क पुरूषों के मुकाबले औसतन छोटा होता है। औरतों के मस्तिष्क का आकार पुरुषों से क़रीब 10 फीसद छोटा होता है और इसी बुनियाद पर महिलाओं की समझ को कम कर के आंका जाता है। जबकि यदि अक्ल औऱ समझ का संबंध मस्तिष्क के आकार से होता तो हाथी और स्पर्म व्हेल का दिमाग आकार में इंसान से ज्यादा बड़ा होता है। तो फिर उनमें इंसान जैसी समझ क्यों नहीं होती।
कहा जा सकता है कि दिमाग़ के आकार का अक्लमंदी से कोई लेना देना नहीं है। फिर भी समाज में फर्क करने वाली सोच जड़ मज़बूत किए हुए है। मस्तिष्क के आकार के अंतर को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया गया है। हमारा मस्तिष्क दो गोलार्ध में बंटा होता है। इन दोनों हिस्सों को बीच कॉर्पस कैलोसम होता है जो दिमाग़ के दोनों हिस्सों के बीच पुल का काम करता है।
इसे इंफ़ॉर्मेशन ब्रिज कहते हैं और ये ब्रिज पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा व्यापक होता है। साइंस की ये रिसर्च महिलाओं को अतार्किक बताने वालों को आईना दिखाती है। अक्सर कहा जाता है कि महिलाओं में सोचने समझने की क्षमता कम होती है। क्योंकि उनकी सोच पर जज्बात हावी रहते हैं जबकि रिसर्च इन सभी बातों को ग़लत साबित करती है।
आम धारणा है कि पुरुष गणित और विज्ञान के अच्छे जानकार होते हैं। इन दो मुश्किल विषयों को उनका दिमाग ज्यादा बेहतर समझता है जबकि ये दावे गलत हैं। दशकों की रिसर्च के बाद साबित हो गया है कि दिमाग एक ही तरह से काम करता है।
सोच को शक्ल देने में हार्माेन का बड़ा रोल होता है। औरतों को हर महीने मासिक धर्म की बायोलॉजिकल साइकिल से गुज़रना पड़ता है। इस वक्त उनके शरीर में कई तरह के हार्माेन रिसते हैं और इसी बुनियाद पर उन्हें कई अहम मौक़ों पर काम करने से रोक दिया जाता है। प्री मेंस्ट्रुअल सिंड्रोम की धारणा वर्ष 1930 में सबसे पहले सामने आई थी।
बहुत से लोग मानते हैं कि माहवारी शुरू होने से पहले महिलाओं के शरीर में होने वाले बदलाव उनकी सोचने समझने की क्षमता पर असर डालते हैं। रिसर्च कहती हैं कि माहवारी शुरू होने से पहले महिलाओं में बड़ी मात्रा में एस्ट्रोजन नाम का हार्माेन सक्रिय हो जाता है और उनकी सोचने समझने की शक्ति पर सकारात्मक प्रभाव डालता है।