मोमोज खाने के शौकीन जान ले यह बात
प0नि0डेस्क
देहरादून। मोमोज बनाने में मैदा का इस्तेमाल किया जाता है, जो गेहूं के आटे से रिफाइंड तकनीक द्वारा तैयार की जाती है। यह गेहूं का ही स्टार्ची पार्ट होता है। इसे बनाने के दौरान गेहूं का हाई फाइवर युक्त पार्ट निकालकर अलग कर दिया जाता है।
मोमोज हर किसी के पसंदीदा चायनीज फूड में शामिल हैं। आज के वक्त में मोमोज स्ट्रीट फूड्स का किंग बन गया है। भारतीय बाजारों में छाए मोमोज को लगभग एक दशक से ज्यादा वक्त हो चुका है। ये अपने स्वाद और सस्ते दाम की वजह से इंडियन स्ट्रीट फूड में अपनी पैठ बनाने में कामयाब रहे।
मोमोज बनाने में मैदा का इस्तेमाल किया जाता है, जो गेहूं के आटे से रिफाइंड तकनीक द्वारा तैयार की जाती है। यह गेहूं का ही स्टार्ची पार्ट होता है। इसे बनाने के दौरान गेहूं का हाई फाइवर युक्त पार्ट निकालकर अलग कर दिया जाता है। पिफर इसे एजोडीकार्बाेनामाइड, क्लोरीनैगस, बेंजायल पेरोक्साइड या अन्य किसी रसायन के माध्यम से ब्लीच किया जाता है। इन कैमिकल्स में मौजूद कुछ हानिकारक एलिमेंट, जो मैदा को नर्म और क्लीन टेक्सचर देने का काम करते हैं, काफी मात्रा में मैदा में रह जाते हैं। जो हमारे शरीर में जाने के बाद पेनक्रियाज को बुरी तरह नुकसान पहुंचाते हैं। केमिकल्स के प्रभाव के चलते पेनक्रियाज द्वारा इंसुलिन प्राडक्टिविटी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ये केमिकल्स इंसुलिन-डिपेंडेंट डायबीटीज की वजह भी होते हैं।
ऐसा नहीं है कि मोमोज कोई बुरी चीज है। लेकिन इनका फायदा इस बात पर निर्भर करता है कि बनाने वाले ने किस तरह के मसालों और तकनीक का उपयोग किया है। बाजारों में मोमोज की भी कई वरायटीज हैं, जिनमें से कुछ हेल्थ के लिए बेहद नुकसानदायक हैं। आमतौर पर मोमोज बनाने के लिए सस्ती क्वालिटी की सब्जियों और चिकन का इस्तेमाल किया जाता है। घटिया क्वालिटी की इन सब्जियों से अनेक बीमारियां होने का डर रहता है तो खराब क्वालिटी के चिकन में कई तरह के हार्मफुल बैक्टीरिया पाए जाते हैं।
इंस्टीट्यूट आफ होटल मैनेजमेंट, कैटरिंग ऐंड न्यूट्रिशन, पूसा के एक अध्ययन से पता चला है कि दिल्ली के स्ट्रीट फूड- विशेष रूप से समोसे, गोलगप्पे, बर्गर और मोमोज में घातक कोलीपफार्म का स्तर बहुत अधिक होता है। इस तरह के स्ट्रीट फूड खाने से डायरिया, टाइफाइड, पेट में ऐंठन और फूड पाइजनिंग होने का खतरा बना रहता है।