नागरिकता संशोधन बिल
प0नि0डेस्क
देहरादून। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त किए जाने और उसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद केंद्र सरकार नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) पर मुहर लगाकर पूर्वाेत्तर भारत की जनता का सामना करने को तैयार हो गई है। केंद्रीय कैबिनेट में इस विधेयक को मंज़ूरी मिल गई है और रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इसे अगले हफ़्ते सदन में पेश किए जाने की संभावना है।
इस विधेयक में पड़ोसी देशों से शरण के लिए भारत आए हिंदू, जैन, बौद्ध, सिख, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है। हालांकि इस बिल को लेकर विपक्ष बेहद कड़ा रुख़ अपना रहा है और इसे संविधान की भावना के विपरीत बता रहा है वहीं केंद्र की तरफ से इसे शीर्ष प्राथमिकता देते हुए इसे सदन में रखे जाने के दौरान सभी सांसदों को उपस्थित रहने को कहा गया है।
भारत के पूर्वाेत्तर में इस नागरिकता संशोधन विधेयक का व्यापक रूप से विरोध होता रहा है जिसका उद्देश्य पड़ोसी देशों पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से ग़ैर-मुसलमान अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए नियमों में ढील देने का प्रावधान है।
दरअसल सदन में इसे पारित करवाने का यह सरकार का दूसरा प्रयास है। इससे पहले भी मोदी सरकार के पहले कार्यकाल के दौरान इसी वर्ष 8 जनवरी को यह लोकसभा में पारित हो चुका है। लेकिन इसके बाद पूर्वाेत्तर में इसका हिंसक विरोध शुरू हो गया, जिसके बाद सरकार ने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया। सरकार का कार्यकाल पूरा होने के साथ ही यह विधेयक स्वतः ख़त्म हो गया।
मई में नरेंद्र मोदी की सरकार का दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ। इस दौरान अनुच्छेद 370 समेत कई बड़े फ़ैसले किए गए और अब नागरिकता संशोधन विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी के साथ एक बार फिर इसे संसद में पेश किया जाएगा। संसद में इसे पेश करने से पहले ही पूर्वाेत्तर में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गए हैं।
वैसे तो नागरिकता संशोधन विधेयक पूरे देश में लागू किया जाना है लेकिन इसका विरोध पूर्वाेत्तर राज्यों, असम, मेघालय, मणिपुर, मिज़ोरम, त्रिपुरा, नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश में हो रहा है क्योंकि ये राज्य बांग्लादेश की सीमा के बेहद क़रीब हैं। इन राज्यों में इसका विरोध इस बात को लेकर हो रहा है कि यहां कथित तौर पर पड़ोसी राज्य बांग्लादेश से मुसलमान और हिंदू दोनों ही बड़ी संख्या में अवैध तरीक़े से आ कर बस जा रहे हैं।
विरोध इस बात का है कि वर्तमान सरकार हिंदू मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की फिराक में प्रवासी हिंदुओं के लिए भारत की नागरिकता लेकर यहां बसना आसान बनाना चाहती है। रिपोर्ट्स के मुताबिक संसद के एजेंडे में इसे सूचीबद्ध करने के साथ ही पूर्वाेत्तर में स्थानीय समूहों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया।
सरकार की तरफ से जिस विधेयक को सदन में पेश किया जाना है वह दो अहम चीज़ों पर आधारित है- पहला ग़ैर-मुसलमान प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देना और दूसरा अवैध विदेशियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजना, जिनमें ज्यादातर मुसलमान हैं।
गृह मंत्री अमित शाह ने 20 नवंबर को सदन को बताया कि उनकी सरकार दो अलग-अलग नागरिकता संबंधित पहलुओं को लागू करने जा रही है, एक सीएबी और दूसरा पूरे देश में नागरिकों की गिनती जिसे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर या एनआरसी के नाम से जाना जाता है।
अमित शाह ने बताया कि सीएबी में धार्मिक उत्पीड़न की वजह से बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत में आने वाले हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाइयों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। उन्होंने बताया कि एनआरसी के जरिए 19 जुलाई 1948 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले अवैध निवासियों की पहचान कर उन्हें देश से बाहर करने की प्रक्रिया पूरी की जाएगी।
मूल रूप से एनआरसी को सुप्रीम कोर्ट की तरफ से असम के लिए लागू किया गया था। इसके तहत अगस्त के महीने में यहां के नागरिकों का एक रजिस्टर जारी किया गया। प्रकाशित रजिस्टर में क़रीब 19 लाख लोगों को बाहर रखा गया था। जिन्हें इस सूची से बाहर रखा गया उन्हें वैध प्रमाण पत्र के साथ अपनी नागरिकता साबित करनी थी।