आरती कितनी बार और क्यों घुमायें, आरती कैसे करे
यह एक शास्त्रीय विधान जिसे दुर्भाग्यवश प्रायः पुजारी भी नहीं जानते
प0नि0डेस्क
देहरादून। आरती केवल अंधकार में बैठे भगवान् की प्रतिमा को भक्तों को दिखाने मात्रा को नहीं की जाती, क्योंकि झाड़-पफानूस और बिजली के प्रखर प्रकाश की विद्यमानता में भी टिमटिमाता दीपक लेकर निरन्तर आरती की ही जाती हैं। अतः यह एक शास्त्रीय विधान हैं, जिसे दुर्भाग्यवश आज प्रायः पुजारी भी नहीं जानते कि दीपक को बांए से दांए और दांए से बांए किधर क्या, कितनी बार, घुमाना आवश्यक हैं।
भावनावद सिद्वांत के अनुसार इसका वास्तविक रहस्य यह हैं कि जिस देवता की आरती करनी हो, उसी देवता का बीज मंत्र स्नान स्थाली, नीराजन स्थाली, घंटिका और जल कमंडलु आदि पात्रों पर चंदनादि से लिखना चाहिए और फिर आरती के द्वारा भी उसी बीजमंत्र को देवप्रतिमा के सामने बनाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति तत्त्व देवताओं के विभिन्न बीजमंत्रों का ज्ञान न रखता हो, तो सर्ववेदों के बीजभूत प्रणव आंेकार को ही लिखना चाहिए, अर्थात आरती को ऐसे घूमना चाहिए जिससे की ओम वर्ण की आकृति उस दीपक पर बन जाए।
आरती कैसे करे- इसका रहस्य यह हैं की शास्त्र में जिस देव की जितनी संख्या लिखी हो, उतनी ही बार आरती घुमानी चाहिए। जैसे गणेश चतुर्थ तिथि के अधिष्ठा है, इसलिए चार आवर्तन होने चाहिए। विष्णु आदित्यों में परिगणित होने के कारण द्वादशात्मा माने गए हैं, इसलिए उनकी तिथि भी द्वादशी है और महामंत्र भी द्वादशक्षर है, अतरू विष्णु की आरती में बारह आवर्तन आवश्यक हैं।
सूर्य सप्तरश्मि है, सात रंग की विभिन्न सात किरणों वाले, सात घोड़ों से युक्त रथ में बैठा हैं। सप्तमी तिथि का अधिष्ठता है। अतः सूर्य आरती में सात बार बीजमंत्र का उद्वार करना जरुरी हैं। दुर्गा की नव संख्या प्रसिद्द हैं, नवमी तिथि है, नव अक्षर का ही नवार्ण मंत्र है, अतः नौ बार आवर्तन होना चाहिए। रूद्र एकादश है या शिव, चतुर्दशी तिथि के अधिष्ठता है, अतः ग्यारह या चौदह आवर्तन जरुरी हैं।
इसी प्रकार मंत्र संख्या या तिथि आदि के अनुरोध से अन्यान्य देवताओं के लिए भी कल्पना कर लेनी चाहिए या सभी देवताओं के लिए सात बार भी की जा सकती हैं, जिसमे चरणों में चार बार, नाभि में दो बार और मुख पर दो बार।