आरओ का पानी सेहत के लिए कितना सही
दुनियाभर में इसे बैन करने की की मांग उठ रही
प0नि0डेस्क
देहरादून। महानगरों सहित देश के छोटे-छोटे शहरों में आरओ वाटर प्योरिफायर का प्रयोग बढ़ा है। वहीं नीरी के जल शोधन वैज्ञानिकों ने चेताया है कि पीने के पानी में टीडीएस 500 एमजी से कम होने पर आरओ उपयोगी नहीं है। वहीं आरओ से 70 फीसद पानी की बर्बादी भी होती है। आप जो आरओ का पानी पी रहे हैं क्या वो सही है!
पिछले दिनों संसद में दिल्ली में पीने के पानी को लेकर खूब हो हल्ला हुआ। कारण कि भारतीय मानक ब्यूरो ने देशभर के 21 शहरों के पानी के नमूनों की जांच के बाद मुंबई का पानी सर्वाेत्तम तो दिल्ली का पानी सबसे खराब बताया।
यह पहला मौका नहीं है जब दिल्ली में पानी को लेकर बवाल मचा। दरअसल पिछले साल और उससे पहले भी कई बार राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण एनजीटी ने केंद्र सरकार से दिल्ली में जिन इलाकों में पानी ज्यादा खारा नहीं है, वहां आरओ के इस्तेमाल पर बैन लगाने की मांग की थी। प्राधिकरण का तर्क है कि आरओ से पानी की बहुत बर्बादी होती है और यह सेहत के लिए मुफीद भी नहीं है।
खास बात यह है कि महानगरों में पानी सप्लाई करने वाली एजेंसियां भी इस बात पर जोर देती हैं कि उनका पानी सौ फीसदी शु( है, लेकिन हकीकत यह है कि महानगरों में सबसे ज्यादा आरओ वाटर प्योरिफायर ही बिक रहे हैं।
भारत में हैंडपंप, कुएं और नदियों के पानी को सीधे पीने की परंपरा रही है। समय के साथ इसमें बदलाव आया और लोगों ने कैंडल वाले फील्टर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। पिफर अचानक न जानें क्या हुआ कि देश में खासकर महानगरों का पानी पीने योग्य नहीं रहा और जानी-मानी कंपनियां पानी में टीडीएस की मात्रा अधिक बताकर भय पैदा करके आरओ यानी रिवर्स ओस्मोसिस प्यूरीफायर बेचने लगीं।
यह वाटर प्यूरीफायर पानी में टीडीएस के स्तर को संतुलित करता है। शुद्व पानी बेस्वाद, बेरंग, और बिना गंध का होता है और उसमें गंदगी आसानी से घुल जाती है। टीडीएस का मतलब कुल घुलित ठोस से है। पानी में मिट्टी में उपस्थित खनिज घुले रहते हैं। भूमिगत जल में ये छन जाते हैं। सतह के पानी में खनिज उस मिट्टी में रहते हैं जिस पर पानी का प्रवाह होता है।
पानी में घुले खनिज को आमतौर पर कुल घुलित ठोस, टीडीएस टोटल डिजाल्वड सालिड यानी घुले हुए ठोंस पदार्थ कहा जाता है। पानी में टीडीएस की मात्रा को मिलीग्राम/लीटर एमजी/ली या प्रति मिलियन टुकड़े पीपीएम से मापा जा सकता है।
वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद सीएसआईआर के वैज्ञानिकों ने बताया है कि आरओ की आवश्यकता सिर्फ उन्हीं जगहों पर है जहां पीने के पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम से अधिक हो। पानी की गुणवत्ता को 68 जैविक और अजैविक मापदंड़ों पर परखा जाता है। टीडीएस इन मापदंडों में से सिर्फ एक है। पानी की गुणवत्ता को आर्गेनिक तत्वों में बैक्टीरिया और वायरस भी प्रभावित कर सकते हैं। वहीं इन-आर्गेनिक तत्वों में क्लोराइड, फ्रलोराइड, आर्सेनिक, जिंक, कैल्शियम, मैग्नीज, सल्पफेट, नाइट्रेट जैसे मिनरल्स के साथ पानी में खारापन, पीएच वैल्यू, गंध, स्वाद व रंग जैसे गुण भी शामिल हैं।
जिन जगहों पर पानी में टीडीएस की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर से कम है वहां घरों में सप्लाई होने वाले नल के पानी को पिया जा सकता है। आरओ का अनावयक उपयोग करने पर शरीर को पानी से मिलने वाले महत्वपूर्ण खनिज नहीं मिलते है क्योंकि वे पानी से अलग हो जाते हैं। राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने केंद्र सरकार को आरओ के बढ़ते उपयोग को लेकर दिशानिर्देश जारी करने और नीति बनाने का सुझाव दिया है। एनजीटी ने पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को ऐसे स्थानों पर आरओ के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने को भी कहा है जहां आरओ की आवश्यकता नहीं है।