अब शरीर का तापमान 97.5, तो आपको है बुखार
बुखार नापने का बदला पैमाना!
एजेंसी
नई दिल्ली। जहां एक ओर ग्लोबल वार्मिंग की वजह से वातावरण का तापमान हर रोज बढ़ता जा रहा है, वही इंसान के शरीर का तापमान कम होता जा रहा है। अगर आप सोचते हैं कि थर्मामीटर में 98 फारेनहाइट तापमान दिखाने का मतलब कि आपका शरीर नॉर्मल है तो अब ऐसा नहीं होगा। अब इस तापमान का मतलब है कि आपका शरीर गर्म है और आपको बुखार है क्योंकि अब शरीर का सामान्य तापमान 97.5 फारेनहाइट बन गया है।
वर्ष 1851 में शरीर का तापमान 37 डिग्री सेल्सियस यानी 98.6 डिग्री फारेनहाइट रखा गया था, लेकिन तब से लेकर अब तक इसमें धीरे-धीरे कमी दर्ज की गयी है। अनुसंधानकर्ताओं ने अपने शोध के दौरान पाया है कि वर्ष 2000 में जन्मे पुरुषों के शरीर का तापमान साल 1800 में जन्मे पुरुषों की तुलना में औसतन 1.06 डिग्री फारेनहाइट कम है।
इसी तरह महिलाओं के मामले में भी अनुसंधानकर्ताओं ने यही पैटर्न देखा है। वर्ष 2000 में जन्म लेने वाली महिलाओं के शरीर का तापमान साल 1890 में जन्म लेने वाली महिलाओं की तुलना में 0.58 डिग्री फारेनहाइट कम था। ऐसे में शरीर का तापमान हर दशक में 0.03 डिग्री सेल्सियस यानी 0.05 डिग्री फारेनहाइट की कमी देखी जा रही है। शरीर का तापमान घटने के पीछे वैज्ञानिकों ने साफ-सफाई, मेडिकल केयर और रहने की जगह को जिम्मेदार मानते हैं।
वैज्ञानिकों की मानें तो सैनिटेशन यानी साफ-सफाई में हुई बेहतरीन, डेंटल और मेडिकल केयर में हुए सुधार की वजह से शरीर का क्रॉनिक इन्फ्लेमेशन कम हुआ है। यही नहीं मॉर्डन हीटिंग और एयर कंडिशनिंग के इस्तेमाल से भी स्थायी तापमान और रेस्टिंग मेटाबॉलिक रेट में कमी आयी है। ऐसे में आज के समय में ट्रेडिशनल 98.6 फारेनहाइट की जगह 97.5 फारेनहाइट शरीर का नॉर्मल तापमान बन गया है।
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में मेडिसिन की प्रोफेसर और स्टडी की सीनियर ऑथर डा0 जूली पैरसॉनेट के मुताबिक शारीरिक दृष्टि से देखें तो हम अतीत में जैसे थे उसकी तुलना में आज हम उससे काफी अलग हैं। हमारा वातावरण बदल चुका है, हमारे घर के अंदर का तापमान बदल चुका है। माइक्रोऑर्गैनिज्म से हमारा संपर्क बदल चुका है और हम जिस तरह के भोजन का सेवन कर रहे हैं, उसमें भी बदलाव आ चुका है।
शोधकर्ताओं ने तीन डेटाबेसों का अध्ययन किया है। सबसे पहले, 1862 से 1930 के बीच 23,710 लोगों के शरीर के तापमान का अध्ययन किया गया। इसके बाद 1971 से 1975 तक एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य सर्वेक्षण किया गया, जिसमें 15,301 लोगों के शरीर के तापमान का रीडिंग किया गया। वहीं 2007 से 2017 तक स्टैनफोर्ड विवि के शोधकर्ताओं ने 150,280 लोगों पर अध्ययन किया।