शनिवार, 4 जनवरी 2020

क्या है कोलेस्ट्राल और इसकी क्या जरुरत है!

क्या है कोलेस्ट्राल और इसकी क्या जरुरत है!



प0नि0ब्यूरो
देहरादून। कोलेस्ट्राल के बारे में ज्यादातर नकारात्मक बातें ही सुनी या पढ़ी होंगी। ये जान कर ताज्जुब होगा कि जीवन के सुचारू रूप से चलने के लिए कोलेस्ट्राल का विशेष महत्त्व है। यदि कोलेस्ट्राल न हो तो शरीर के कई बेहद जरूरी कार्य रुक जायेंगे।
कोलेस्ट्राल शरीर के अन्दर लिवर द्वारा बनाया जाने वाला एक वसा-युक्त पदार्थ है जो इंसानी जीवन के लिए जरूरी है। हम इसको भोजन द्वारा भी प्राप्त कर सकते हैं। यह समझना जरूरी है कि पौधों द्वारा प्राप्त भोजन में कोलेस्ट्राल नहीं होता। मांस मछली खाने से, दूध और घी का सेवन करने से कोलेस्ट्राल की सीधे सीधे प्राप्ति हो सकती है।
हमारे शरीर में कोलेस्ट्राल के मुख्य रूप से तीन कार्य हैं। शरीर के अन्दर ऊतक कोशिकाओं का एक निश्चित समूह बनाने में। कई ऊतकों से मिलकर एक अंग बनता है जैसे कि पेट, आंख, पित्ताशय, ह्दय इत्यादि। सेक्स हार्माेन को बनाने मंे, लिवर के अन्दर पित्त बनाने में।
ज्यादातर लोगों को मालुम नहीं होता कि विटामिन ए, डी, ई, के, शरीर में तभी काम में आ सकते हैं जब वो वसा फैट में घुलें। यदि आहार में वसा की मात्रा या शरीर में कोलेस्ट्राल की मात्रा बिलकुल नहीं होगी तो इन विटामिन की कमी हो सकती है।
कोलेस्ट्राल के बारें में बात होती है तो लोग एलडीएल और एचडीएल का नाम लेते हैं। ये दोनों ही वस्तुतः लिपोप्रोटीन हैं वसा और प्रोटीन से मिश्रित पदार्थ। कोलेस्ट्राल वसा-युक्त पदार्थ को रक्त में एक स्थान से दुसरे स्थान तक जाने के लिए लिपोप्रोटीन को वाहन के रूप में इस्तेमाल करना पड़ता है।
एचडीएल का अर्थ है 'हाई-डेंसिटी लिपोप्रोटीन' है। इसको अच्छा कोलेस्ट्राल भी कहते हैं ;जबकि यह कोलेस्ट्रॉल नहीं है बल्कि उसका वाहन है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये कोलेस्ट्राल को रक्त से लिवर में ले जाता है। लिवर कोलेस्ट्राल को खत्म कर देता है हानि-रहित, छोटे पदार्थों में तोड़ कर और इस प्रक्रिया से शरीर पर अधिक कोलेस्ट्राल का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता।
एलडीएल का अर्थ है 'लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन' है। इसको बुरा कोलेस्ट्राल भी कहते हैं जबकि यह कोलेस्ट्राल नहीं है बल्कि उसका वाहन है। ऐसा इसलिए क्योंकि इसकी अधिक मात्रा होने से यह कोलेस्ट्राल के साथ मिलकर 'प्लाक' बनता है, जो रक्त की नलियों के अन्दर जम जाता है। इससे नलियों में सिकुडन आ जाती है और रक्त को बहने में मुश्किल होने लगती है। जब ह्दय को रक्त पहुंचाने वाली नलियां प्रभावित होती हैं तो हार्ट अटैक हो सकता है।
प्लाक दो तरह से शरीर को नुक्सान पहुंचा सकता है- खून की नलियों को संकरा कर देना। इससे आक्सीजन से भरपूर रक्त अंगों तक ठीक से नहीं पहुंच पता जिससे अंग-प्रत्यंग पर दुष्प्रभाव पड़ने लगता है। इसकी वजह से खून की नलियों में थक्के बन सकते हैं। जब ये थक्के अपनी जगह से हट कर नली में बहते बहते किसी संकरी जगह पर पहुंच कर नाली को अवरुद्व कर देते हैं तो उस अंग पर प्रभाव पड़ता है। अगर ह्दय की नली को अवरुद्व किया तो हार्ट अटैक, अगर दिमाग की नली को अवरुद्व किया तो ब्रेन स्ट्रोक हो सकता है।



एचडीएल को अच्छा इसलिए मानते हैं क्योंकि ये कोलेस्ट्राल को लिवर के अन्दर ले जाता है, जहां ये हानिकारक कोलेस्ट्राल छोटे छोटे पदार्थों हानि-रहित में तोड़ दिया जाता है और शरीर से बाहर कर दिया जाता है। एचडीएल की अधिक मात्रा कोलेस्ट्राल की अधिकता से होने वाले दुष्परिणामों को कम करती है, जैसे हार्ट अटैक और स्ट्रोक की सम्भावना कम होती है। यदि एचडीएल की मात्रा कम है तो इन बीमारियों की सम्भावना बढ़ जाती है।
नेशनल इंस्टिट्यूट आपफ हेल्थ के अनुसार एचडीएल की मात्रा 60 मिलीग्राम /डेसीलिटर या और अधिक होना अच्छा माना जाता है जबकि यदि इसकी मात्रा 40 मिलीग्राम/डेसीलिटर से कम हो तो ह्दय रोग की सम्भावना बढ़ जाती है।
एलडीएल के समान ही वीएलडीएल भी एक हानिकारक लिपोप्रोटीन है जो हानिकारक कोलेस्ट्राल से मिलकर प्लाक बनता है और खून की नालियों को संकरा बनता है। आदर्श रूप से टोटल कोलेस्ट्राल की मात्रा 200 मिलीग्राम/डेसीलिटर से कम होनी चाहिए। 200-239 के बीच इसको बार्डर-लाइन मानते हैं और 240 के ऊपर इसको अधिक माना जाता है।
कोलेस्ट्राल की ही तरह शरीर के अंदर रक्त में एक और वसा-युक्त पदार्थ होता है जिसे 'ट्रायग्लीसराइड' कहते हैं। कोलेस्ट्राल की ही तरह इसकी अधिक मात्रा शरीर के लिए हानिकारक होती है।
कोलेस्ट्राल और ट्रायग्लीसराइड की मात्रा नियंत्रित रखने के लिए नियमित रूप से व्यायाम करना चाहिए, संतुलित आहार लेना चाहिए और वजन बढ़ने नहीं देना चाहिए। आनुवंशिकी भी कोलेस्ट्राल की मात्रा के बढ़ने में अपना रोल निभा सकती है। आहार में मीठे, जंक फ़ूड और वसा का इस्तेमाल कम करना चाहिए। समय समय पर यदि आप में कोलेस्ट्राल के बढ़ने के आसार हैं तो खून की जांच करा कर कोलेस्ट्राल की मात्रा चेक करते रहे। डाक्टर के संपर्क में रहे। यदि जरूरत होगी तो डाक्टर आपको कोलेस्ट्राल कम करने की दवा भी दे सकते हैं। मानसिक तनाव से दूर रहे। सिगरेट, शराब इत्यादि मादक पदार्थों का सेवन न करें।
शरीर का कोलेस्ट्राल नियंत्रित रखने के लिए 2015-2020 डाइट गाइडलाइन्स फार अमेरिकन्स ने ये पैमाने स्थापित कर रखे हैं-
कोलेस्ट्राल- आहार में जितना कम खाएं उतना अच्छा।
सैचुरेटेड फैट- जितनी कैलोरी ले रहे हैं उसका 10 फीसदी से कम ही सैचुरेटेड फैट के रूप में लें। ये ज्यादातर मांस, दूध और दूध से बने खाद्य में पाया जाता है।
अनसैचुरेटेड फैट- जितना हो सके तो सैचुरेटेड फैट की बजाय अनसैचुरेटेड फैट लें। स्वास्थ्यवर्धक, प्राकृतिक अनसैचुरेटेड फैट अधिक मात्रा में भी लिया जा सकता है। ये ज्यादातर सोयाबीन आयल, कार्न आयल, फ्रलैक्स आयल, मछली, पीनट आयल, सीसेम तिल आयल, केनोला आयल और सनफ्रलावर आयल में पाया जाता है।
ट्रांस-फैट- जहां तक हो सके इसका सेवन न करें। ट्रांस फैट एक प्रकार का असंतृप्त वसा अम्ल है जो धीमें जहर के सामान है और हृदय और गुर्दा समेत शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर मौत का कारण बनता है। यह रिफाइंड खाद्य तेल से बनाया जाता है। ट्रांस फैट को तरल वनस्पति तेल में हाइड्रोजन गैस मिलाकर तैयार किया जाता है। ऐसा करने से उसे और भी ठोस बनाया जा सकता है और खाद्य पदार्थ की शेल्पफ लाइफ बढ़ाई जा सकती है। ट्रांस फैट मुख्य रूप से वनस्पति तेल, कृत्रिम मक्खन और बेकरी के खाद्य पदार्थाे में पाया जाता है।


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