सोमवार, 20 जनवरी 2020

क्यों खाते हैं भारतीय इतना तेल!

क्यों खाते हैं भारतीय इतना तेल!



कहां से आता है पूरी जरूरत का तेल
एजेंसी
नई दिल्ली। लोग अपने घर की रसोई में घी, सरसों या फिर सूर्यमुखी और नारियल के तेल में खाना पकाते है। देश में लगातार बढ़ती तेल की खपत के पीछे एक तो बढ़ती आबादी है और दूसरे प्रति व्यक्ति आय का ऊपर जाना। एक और धारणा प्रचलित है कि जितना तेल डालेंगे पकवान उतना स्वादिष्ट बनेगा।
हर साल देश की आबादी में करीब 2.5 करोड़ लोग जुड़ते जा रहे हैं। इसके हिसाब से खाद्य तेल की खपत में सालाना 3 से 3.5 प्रतिशत की बढ़त होने का अनुमान है। फिलहाल एक साल में सरकार 60,000 से 70,000 करोड़ रुपये खर्च कर 1.5 करोड़ टन खाने का तेल खरीदती है। देश को अपनी आबादी के लिए सालाना करीब 2.5 करोड़ टन खाद्य तेल की जरूरत होती है।
देश में सोया और पाम ऑयल का सबसे ज्यादा आयात होता है। खाने वाले तेलों में जहां पाम ऑयल यानि ताड़ का तेल कुल आयात का 40 फीसदी होता है वहीं सोयाबीन का तेल करीब 33 फीसदी होता है। सोयाबीन का तेल अर्जेंटीना और ब्राजील से आयात होता है।
हम अपनी घरेलू खपत के लिए पाम ऑयल मुख्य रूप से इंडोनेशिया और मलेशिया से मंगाते है। क्रूड पाम ऑयल इंडोनेशिया से जबकि रिफाइंड पाम ऑयल मलेशिया से आयात किया जाता है। बाहर से मंगाए गए पाम ऑयल को कई घरेलू कारोबारी दूसरे तेलों के साथ मिलाते हैं और इस तरह अपने तेल उत्पादन के खर्च को कम रखते हैं।
सूर्यमुखी का तेल यूक्रेन और रूस से मंगाया जाता है। बीते करीब 20 सालों में भारत के रसोइघरों में रिफाइंड तेलों का इस्तेमाल काफी बढ़ा है और उसमें भी सूर्यमुखी के तेल वाले ब्रांड बहुत ज्यादा लोकप्रिय हुए हैं।
सरकार ने कृषि मंत्रालय को ऐसी योजना बनाने को कहा है जिससे आने वाले सालों में खाद्य तेलों का आयात बंद किया जा सके। घरेलू उत्पादकों को बढ़ावा देने के लिए मलेशिया से आयात पर कस्टम ड्यूटी को 5 फीसदी बढ़ाकर 50 प्रतिशत कर दिया है।
देश में तैलीय बीजों वाले पेड़-पौधों की उपज बहुत कम होती है। 2020 तक इसे बढ़ाकर इतना करने की योजना बनी है जिससे किसानों की आय को भी दोगुना किया जा सके। इससे पहले भी देश को दालों की उपज के मामले में आत्मनिर्भर बनाने की कोशिश हो चुकी है।


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