मुसाफिर
चेतन सिंह खड़का
चल बे चल,
आगे निकल।
मुड़ के देख,
फिर संभल।
चल बे चल- 2
छोड़ दे,
पुराना पीछे।
जुड़ जा,
नये के नीचे।
यह तो सीधा,
फलसफा।
टेछ़े-मेड़े,
उपर-नीचे।
राह में गर,
खड्ड मिले।
तन जा,
थोड़ा उछल।
चल बे चल- 2
मजबूर क्यों?
होता है राजा।
दायरों से,
बाहर आ जा।
तू जान ले,
अपनी हदें।
पूरा आसमां,
तेरी छतें।
बेमानी है,
शिकवे गिले।
गटक भी जा,
थोड़ा गरल।
चल बे चल- 2
तेरा किया,
हरदम नया।
तेरा हौसला,
सदा जवां।
इम्तेहान में,
निकले खरा।
बने बड़ा,
दिल तेरा।
तुझे रास्ते,
मंजिल मिले।
जग न बदले,
तू बदल।
चल बे चल- 2
नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं