चलो कुछ नया हम करें ताकि औरों को रास्ता मिले
नव वर्ष आपके लिए शुभ हो
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। इसे कोई भी टाल नही सकता। संघर्ष के बाद ही किसी को सफलता मिलती है और शांति की चाह हमें युद्व की ओर ले जाती है। क्योंकि शांति या तो युद्व से पहले ही स्थिति को कहते है या उसके बाद का काल शांति काल कहलाता है।
हमारे देश में असहिष्णुता या सहिष्णुता के नाम पर अप्रासांगिक तबका अन्य को प्रभावित करने पर तुला हुआ है। इसके लिए यह तथाकथित बौद्विक वर्ग वैमनस्य की हदों को पार कर चुका है। नफरत और बदजबानी इनकी बुनियाद है। दूसरों पर हिटलरशाही का आरोप लगाने वाले यह लोग अपने विचारों को दूसरों पर जबरदस्ती लादने का प्रयास कर रहें है।
जब उनके ऐसे प्रयास नाकाम हो गए तो दंगे फसाद और नफरत की आग लगाना ही उनका ध्येय हो गया है। यह साफ दिखाई भी दिया। पिछले कुछ महीने उनकी कुटिलता के प्रमाण के तौर पर गुजरे भी। तो भी हम भारतीय लोग आशावादी होते है। इसलिए कामना की जा रही है कि उक्त इनोसेंट लोग सही रास्ते में आ जायेंगे। भले ही कुछ लाख की संख्या में उन असामाजिक एवं अराजक लोग ने पूरे देश को बंधक सा बनाकर रख दिया।
यह हमारी परम्परा रही है कि बीते को भुलकर नयी शुरूवात करनी चाहिये। इसके लिए नव वर्ष की बेला से बेहतर अवसर और क्या हो सकता है। हालांकि कुछ लोग कहेंगे कि नया साल तो मार्च अप्रैल को आता है। लेकिन व्यवहारिक तौर पर हमने जिस कलैंडर को आत्मसात कर लिया है, उसके मुताबिक नया साल अब शुरू होता है। इस सच को नकारा नही जा सकता। तो पिफर इसे ही नया साल मानकर मनाने में हर्ज क्या है?
तो अपनी परम्परा के अनुसार छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नये दौर में लिखेंगे मिलकर नयी कहानी। मतभेद है, कोई बात नही परन्तु इसे मनभेद में तब्दील होने से रोकना है। नया दौर है जिसमें सबके लिए स्पेस होना चाहिये। हर कोई नयी पिक्चर में फिट होना चाहिये। हमारे सपनों की सार्थकता तभी बनती है जबकि सब साथ साथ उसे हासिल करते हों। यहां शक और शुबहें के लिए कोई जगह नही होनी चाहिये।
हमें ऐसा साहसी भी नही बनना कि डर के मारे उपद्रवी बन गए। अपना ही घर फूंककर तमाशा देखने की मूर्खता अब गंवारा नही बल्कि यह वक्त मिलकर आगे बढ़ने की सोच का होना चाहिये।