शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

दावाः फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे हैं उर्दू अनुवादक

दावाः प्रदेश के विभागों में बिना पद के फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे हैं उर्दू अनुवादक



देहरादून में इनकी संख्या 100 से अधिक, अन्य सभी जिलों में भी कर रहे फर्जी तरीके से नौकरी
संवाददाता
देहरादून। समाजसेवी विकेश सिंह नेगी ने एक प्रेसवार्ता में प्रदेश के कई विभागों में फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे उर्दू अनुवादकों को लेकर बड़ा खुलासा किया। उत्तराखंड में उर्दू अनुवादकों के बिना पद के फर्जी तरीके से नौकरी करने को लेकर उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में क्यू वांरटोरिट दायर की हुई है। 
विकेश सिंह नेगी मुख्यमंत्री दरबार से लेकर नैनीताल हाईकोर्ट तक भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने का काम कर रहे हैं। नेगी के मुताबिक आरटीआई के माध्यम से ज्ञात हुआ कि आबकारी ही नहीं उत्तराखंड के कई विभागों में उर्दू अनुवादक सालों से बिना पद के फर्जी तरीके से नौकरी कर रहे हैं। 
नेगी ने पुलिस मुख्यालय, एसएसपी ऑफिस, जिलाधिकारी कार्यालय सहित कई विभागों से सूचना के अधिकार में जानकारी मांगी कि उनके यहां कितने उर्दू अनुवादों के पद हैं और इन पदों पर नियुक्ति के लिये शासनादेश एवं गजट नोटिफिकेशन कब जारी हुआ। सूचना के अधिकार के तहत जब विभागों से सूचना आनी शुरू हुई तो उसमें कई चौंकाने वाले खुलासे हुए।
नेगी ने कहा कि देहरादून एसएसपी ऑफिस से सूचना के अधिकार के तहत सूचना मांगने के बाद जो जवाब आया वह हैरान करने वाला था। एसएसपी ऑफिस ने सूचना के अधिकार के तहत बताया कि उनके यहां उर्दू अनुवादकों के लगभग 10 पद हैं। जो विगत 28/2/1996 को स्वतः ही समाप्त हो गये थे। सवाल यह उठता है कि अगर यह पद 1996 में स्वतः ही समाप्त हो गये थे तो इन पदों पर आज तक कर्मचारी किस आधार पर काम कर रहे हैं और उन्हें किस आधार पर उन्हें वेतन दिया जा रहा है। यह पूरा प्रकरण एक बड़े भ्रष्टाचार की तरफ इशारा कर रहा है।
उत्तराखंड पुलिस मुख्यालय में भी उर्दू अनुवादकों के पद पर कर्मचारी कार्यरत हैं। सूचना के अधिकार के तहत पुलिस मुख्यालय ने भी एसएसपी ऑफिस की तरह ही जवाब दिया कि पद 28/2/1996 को स्वतः ही समाप्त हो गये थे। पुलिस मुख्यालय ने अपने जवाब में कहा है कि हमने इन्हें शासनादेश संख्या 80सीएम/47-का-94-15-10-94 दिनांक 20 अगस्त 1994 और जीओ संख्या 80सीएम/47-का-94-15-10-94 दिनांक 03/02/1995 के आधार पर उर्दू अनुवादकों के पद पर नियुक्ति दी थी।  जिसमें साफ तौर पर लिखा गया है कि यह पद 28/2/1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेंगे। 
नेगी ने सवाल किया कि अगर ऐसा है तो इन पदों को आज तक समाप्त क्यों नहीं किया गया। जब इन पदों का गजट नोटिफिकेशन हुआ ही नहीं था तो फिर किस आधार पर इन पदों पर कर्मचारी आज तक काम कर रहे हैं और किस आधार पर उन्हें प्रमोशन दिया गया है।  
जिला अधिकारी कार्यालय से जवाब आया कि उर्दू अनुवादकों के पद 28/2/1996 को स्वतः ही समाप्त हो गये थे। इन पदों का कभी भी गजट नोटिफिकेशन सरकार द्वारा आजतक नहीं किया गया था। आबकारी महकमें भी यही हाल हैं। विकेश सिंह नेगी द्वारा आबकारी विभाग में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन की नौकरी को चुनौती मामले में सरकार की तरफ से नैनीताल हाईकोर्ट में जवाब दाखिल कर दिया गया है। 
सरकार ने खुद हाईकोर्ट में इस बात को स्वीकार कर लिया है कि देहरादून में तैनात इंस्पेक्टर शुजआत हुसैन कानूनन नौकरी में हैं ही नहीं। इसके बावजूद हुसैन को सेवा में अभी तक कैसे रखा है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है। उनके साथ ही उधमसिंह नगर में तैनात इंस्पेक्टर राबिया का मामला भी शुजआत की तरह का ही है।
कार्मिक एवं सतर्कता अनुभाग ने सूचना के अधिकार के तहत उर्दू अनुवादकों को लेकर मांगी गई जानकारी के तहत जवाब दिया कि कार्यालय में इसको लेकर कोई रिकार्ड धारित नहीं है। जवाब में कहा गया कि आप उक्त सूचना उत्तर प्रदेश राज्य से प्राप्त करने का कष्ट करें।  
इस मामले में विकेश सिंह नेगी का कहना है कि उर्दू अनुवादकों के पद आबकारी विभाग के लिये बुंदेलखंड और उत्तराखंड नहीं थे। विकेश कहते है किं उत्तर प्रदेश में सन 1995 से ही इस फर्जीवाड़े की शुरूआत हुई। विकेश के मुताबिक यूपी की मुलायम सरकार ने उर्दू अनुवादक और कनिष्ठ लिपिक पद पर सिपर्फ भरण पोषण के लिए रखा था। उस समय भी इन दोनों के नियुक्ति पत्रों में साफ लिखा था कि यह नियुक्ति 28-2-1996 को स्वतः ही समाप्त हो जायेगी। फिर कैसे आज तक इन पदों पर कर्मचारी सरकारी सेवाओं का लाभ ले रहे हैं। आखिर कौन है वह जिसकी मिलीभगत से सरकार को करोड़ो रूपये का चूना हर माह लग रहा है।
हाईकोर्ट में पूरे मामले की लड़ाई लड़ रहे नेगी कहते हैं कि इस पूरे मामले में कुछ लोग मुख्यमंत्री की ईमानदार छवि को धूमिल करने में लगे हुए हैं। यही नहीं मिलीभगत कर मुख्यमंत्री के जीरो टालरेंस को भी चुनौती दे रहे हैं। विकेश कहते हैं कि कहीं ऐसा तो नहीं कुछ नौकरशाह मुख्यमंत्री को गुमराह कर रहे हों। अब देखना होगा इन मामलों पर सरकार कब वाजिब कार्रवाई कर जीरो टालरेंस का संदेश देती है।
विकेश कहते हैं कि मुख्यमंत्री को सभी विभागों में जांच करानी चाहिए। क्योंकि इन नियुक्तियों का गजट नौटिफिकेशन हुआ ही नहीं था। यह इलाहबाद हाईकोर्ट में उत्तर प्रदेश सरकार ने 1995 में कहा था। अगर ऐसा है तो फर्जी नौकरी कर सरकार को जो अब तक आर्थिक नुकसान पहुंचाया गया है उसकी रिकवरी के साथ ही इनकी संपत्ति की भी जांच होनी चाहिए।  


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