गर्दन कटी फिर भी 18 महीने जिंदा रहा मुर्गा
किसी मुर्गे की गर्दन कट जाए और उसके बाद एक-दो दिन नहीं बल्कि 18 महीने जिंदा रह जाए तो उसे चमत्कार ही कहा जाएगा।
एजेंसी
न्यूयार्क। अमेरिका के कोलराडो राज्य में एक किसान लॉयड ऑस्लन रहता था। साल 1940 की बात है। लॉयड को भूख लगी। खाने की जुगाड़ में वह अपने खेत में गया। वहां उसे एक सेहतमंद मुर्गा दिखा। उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाई और मुर्गे की गर्दन पर मार दिया। मुर्गे की गर्दन एक तरफ और धड़ दूसरी तरफ हो गया।
भले ही अपनी भूख शांत करने के लिए लॉयड ने ऐसा किया था लेकिन उसे निराशा हाथ लगी। हुआ यह कि धड़ से गर्दन अलग करने के घंटों बाद भी मुर्गा सिर के बगैर ही घूमता रहा। दिन खत्म और रात हो गई। किसान भी जाकर सो गया। अगली सुबह उठा तो फिर यह देखकर हैरान रह गया कि मुर्गा जिंदा था और अपने कटे हुए सिर के पास सो रहा था।
लॉयड के लिए वह मुर्गा किसी चमत्कार से कम नहीं था। उसने मुर्गे का नाम माइक रख दिया और उसके बाद से मुर्गे की देखभाल करने लगा। आईड्रॉपर का इस्तेमाल करके उसने मुर्गे की खाने की नली में सीधे अनाज और पानी डालना शुरू कर दिया।
माइक के बारे में पूरे शहर में बात फैल गई। कई लोगों ने तो लॉयड से शर्त लगा लिया कि ऐसा नहीं हो सकता और मुर्गे को सबको दिखाकर लॉयड शर्त जीत गया। धीरे-धीरे माइक शहर में चर्चा का विषय बन गया। स्थानीय पेपरों ने लॉयड का इंटरव्यू लिया। सड़कों पर तमाशा दिखाने वाले एक आदमी ने खुद जाकर माइक को देखा और उसका नाम मिरकल माइक रख दिया।
तमाशेबाज ने लॉयड को अपने मुर्गे को तमाशे के लिए लेकर आने को कहा। कुछ दिनों बाद लॉयड तमाशे के शो के लिए मुर्गे को लेकर पहुंचा और वहां माइक को देखने के लिए 25 सेंट्स वसूले। इस तरह लॉयड को कमाई का एक अच्छा साधन मिल गया। कम समय के अंदर ही उसने काफी धन जमा कर लिया।
तमाशे में जाने से पहले लॉयड मुर्गे को लेकर साल्ट लेक सिटी में स्थित उटाह यूनिवर्सिटी में लेकर गया था। वहां वैज्ञानिक माइक को देखकर हैरान रह गए। वैज्ञानिकों ने माइक का कई परीक्षण किया और इस नतीजे पर पहुंचे कि सिर से दिल को पहुंचाने वाली नस कुल्हाड़ी से कट नहीं पाई थी और उसमें खून जम गया। नतीजा यह हुआ कि माइक का ज्यादा खून नहीं बहा जिससे वह जिंदा रहा। वह चलता-फिरता भी रहा और उसका दिमाग भी पहले की तरह ही काम करता रहा।