कानून का गैर अपराधीकरण करने के लिए सुझाव
व्यापार को आसान बनाने और निवेशकों के विश्वास को बढ़ाने के लिए माहौल में सुधार जरूरीः सीआईआई अध्यक्ष
संवाददाता
देहरादून। भारतीय उद्योग परिसंघ ने सरकार से निवेदन किया कि वह व्यापार के कुछ कानूनों का गैर अपराधीकरण करें ताकि एक्ट के चलते व्यापारियों को परेशानी न हो और निवेशकों के विश्वास को बढ़ाया जा सके। इससे व्यापार को आसान बनाने में भी मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्तमंत्री निर्मला सीतारमन के साथ हुए विचार विमर्श के आधार पर सीआईआई ने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए 12 तरीकों को साझा करते हुए व्यापार में गैर अपराधीकरण और वित्त विधान को सुझाया।
सीआईआई अध्यक्ष विक्रम किरलोस्कर ने कहा कि व्यापार में दंड प्रावधानों और आर्थिक कानून में परिवर्तन ही व्यापार को आसान बनाने के लिए सुधारों में प्रतिनिधित्व करेगा। व्यापार कानून से अपराधिक दंड को अलग कर के (जब तक निश्चित रूप से परिभाषित अपराध न हो) युवा उद्यमियों और निवेशकों का व्यापार करने में विश्वास बढ़ाया जा सकता है।
हाल ही में सरकार द्वारा हाल ही में घोषित नीतियों की घोषणा के स्तंभ पर विश्वास के सिद्वांत के आधार पर सीआईआई ने सरकार की विभिन्न शाखाओं से व्यापार में अपराधीकरण को नागरिक अपराधिकण और जुर्माने में बदलने के लिए आवश्यक कदम उठाने की अपील की।
सीआईआई के सुझावों में 37 कानून और एक्ट आते हैं जिनमें पार्टनरशिप एक्ट 1932 से लेकर इनसोलवेंसी एंड बैंककरप्सी कोड 2016 तक आते हैं जिनकी प्रकृति तकनीकी है और जो जनहित को प्रभावित नहीं करते हैं उनका गैर अपराधीकरण करना चाहिए।
सीआईआई अध्यक्ष विक्रम किरलोस्कर ने कहा कि कॉमर्शियल और सिविल मामलों का अपराधीकरण होने के मामलों की बढ़ती संख्या के कारण निदेशकों, युवा उद्यमियों व विदेशी निवेशकों के मन में भय का माहौल बनता जा रहा है। आर्बिट्रेशन और सिविल कोर्ट के आधीन आने वाले मामलों का (जब तक की मामला जालसाजी का या दुराचार का न हो) न हो उसका गैर अपराधीकरण करना चाहिए।
किसी अपराधिक मामले में फंसने के चक्कर में निदेशकों के बीच डर का माहौल है और इसी कारण वे अपने पद से त्यागपत्र दे रहे हैं। दंड के प्रावधानों में परिवर्तन कर के व्यापार को बढ़ावा दिया जा सकता है और इससे न केवल व्यापारों को फायदा होगा बल्कि इससे कोर्ट में जाने वाले केसों की संख्या में भी कमी आएगी। कंपनी एक्ट में कॉर्पाेरेट सोशन रिस्पोंसबिलिटी के तहत तय मानकों को पूरा न करने को गैर अपराध करना इस दिशा में उठाया गया अहम कदम है।
सीआईआई द्वारा गैर अपराधीकरण को लेकर दिए गए सुझाव जिनके तहत कानून में व्यापार के लिए गैर अपराधिकरण और कानूनी दंड को नागरिक दंड और जुर्माने में बदलने का प्रावधान शामिल है।
- छोटे अपराधों के मामले में जहां बार-बार समन आदेश होते हैं उन्हें ‘कंपाउंटेबल’ बनाया जाए।
- अधिकार क्षेत्र को तय करने के मामले में समय अवधि तय की जाए।
- गैर अपराधी करार देने के लिए पारदर्शी तंत्र और तकनीकी अपराधों के मामलों में जुर्माने से निपटारा न की अभियोजन से।
- विवाद को निपटाने का तंत्र ऐसा हो जिसमें अभियोजन न हो (अपवाद सहित)।
- एक मुश्त निपटारे की योजना।
- सीआरपीसी की धारा 320 का विस्तार करते हुए सम्मन मामलों को कंपाउंडेबल बनाना।
- गैर जरूरी या फर्जी याचिकाओं की स्थिति में याचिका दाखिल करने वालों पर जुर्माना लगाना।
- अदालतों केरिक्त पदों को भरना ताकि अदालतें अपनी पूरी क्षमता से काम कर सकें।
- बिना दोषी करार दिए कर और आर्थिक मामलों का निपटारा करने के लिए प्रक्रिया तैयार करना (अपवादों सहित) तकि भविष्य में इस तरह के मामलों की संख्या को कम किया जा सके।
- अदालतों में प्रोद्योगिकी को इस्तेमल कर ई फाईलिंग सिस्टम को तैयार करके।
- बार्गेनिंग और समझौते को बढ़ावा देकर।
विश्व भर में याचिकाओं को कम करके व्यापार को बढ़ाने की एक जैसी योजनाएं चल रही हैं ताकि उद्योगों को बढ़ावा दिया जा सके। उदाहरण के तौर पर अमेरिका में पर्यावरण से जुड़े अपराधों की स्थिति में इसे कंपाउंडेबल अपराध की श्रेणी में रखते हुए लाखों रुपये का जुर्माना लगाया जाता है और इसमें भी यह जरूरी नहीं कि जिस पर जुर्माना लगाया गया हो वह आरोप को स्वीकार करे। इसके साथ ही इंग्लैंड ने भी बार्गेनिंग के सिद्वांत को स्वीकार किया है। अन्य शब्दों में कहें तो भारत को इस प्रकार के मामलों में दंड के प्रकार में परिवर्तन की जरूरत है।
हालांकि लगातार और बार-बार अपराध करने वालों के साथ अलग बर्ताव करना चाहिए और उनपर भारी जुर्माना लगाना चाहिए जितना भी अथॉरिटी चाहे। इससे न केवल स्थानीय और अंतराष्ट्रीय उद्योगों को बढ़ावा मिलेगा बल्कि साथ ही व्यापार को आसान बनाने में भी सहयोग मिलेगा।
तकनीकी अपराधों की स्थिति में अपराधिक कार्रवाई अनुचित है और इस तरह के मामलों को नागरिक अपराध की श्रेणी मे रखना चाहिए और इसमें जुर्माने का प्रावधान होना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि भारतीय दंड सहिता काफी व्यापक है। परिवर्तन बेहद मुश्किल होता है क्योंकि अक्सर निवारण को टालने के रूप में देखा जाता है और ऐसा लगता है कि कानून से समझौता किया जा रहा है।
सीआईआई ने विभिन्न विधानों में कानूनी प्रावधानों और जुर्माने की समीक्षा की है ताकि जेल की सजा से जुड़े कानूनों की पहचान की जा सके। गैर अपराधीकरण के मकसद को पूरा करने के लिए कानून में बदलाव, अपराधों को कंपाउंडेबल बनाना और क्षेत्राधिकार निर्धारण केलिए समय अवधि तय करना जरूरी है।
यह भी जरूरी है कि आर्थिक अपराधों की स्थिति में शिकायत दर्ज करवाने के लिए समय सीमा तय की जाए और जांच पूरी करने तथा मामले का निपटारा करने के लिए भी समय सीमा(अपवादों सहित) तय की जाए। इसके माध्यम से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि आर्थिक अपराधों को की जांच को जांच एजेंसी निर्धारित समय में पूरा करेगी।
देश के 2020-2021 बजट की स्पीच के दौरान वित्त एवं कॉर्पाेरेट अफेयर्स की मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि कंपनी एक्ट में सिविल प्रकार के मामलों में क्रिमिनल लाईबिलिटी को संशोधित किया जाएगा इस पर गौर किया जाना चाहिए। इसलिए सीआईआई ने ऐसे कई एक्ट की पहचान की है जिनमें अपराधिक प्रावधान अभी तक मौजूद हैं।
निवेश को बढ़ावा देने के लिए भारत सरकार द्वारा कानून में सुधार के लिए उठाए गए कदमों की सराहना करते हुए सीआईआई ने कहा कि कंपनियां अनुपालन और नैतिक व्यवहार का परिचय दे रही हैं और ऐसे में कुछ उद्यमियों के गलत होने के कारण सभी उद्यमों को उनकी तरह नहीं देखा जाना चाहिए। दुर्भावना से कार्य, धोखाधड़ी और अपराधिक गतिविधियां करने वाले व्यापारों पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। गैर गंभीर तकनीकी और प्रक्रियात्मक अंतराल के चलते हुए हुए अपराध के मामले में सिविल लाईबिलिटी ही पर्याप्त है।
जीएसटी, इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड जैसे नए कानून के लागू होने तथा अप्रचलित कानूनों को बाहर निकलने और नियामक संस्थानों को मजबूत करने से भारत के कारोबारी माहौल में काफी बदलाव आया है। सरकार ने कंपनी कानून समिति की स्थापना करके कंपनी अधिनियम, 2013 के लिए मामूली तकनीकी या प्रक्रियात्मक गैर अनुपालन के लिए आपराधिक कार्यवाही को सीमित करने का प्रयास किया है। समिति ने नवंबर 2019 में अपनी अंतरिम रिपोर्ट प्रस्तुत की और 46 दंड प्रावधानों में संशोधन की सिफारिश की है।
सीआईआई द्वारा जिन कानूनों में संशोधन की सिफारिश की गई है उनकी संख्या 37 है जिनमें कंपनी एक्ट, इनसॉलवेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, एनवायरमेंटल प्रोटेक्शन, कंज्यूमर प्रोटेक्शन व लेबर इंट्रस्ट शामिल हैं।