पुरुष कैसे करे पेशाबः बैठकर या खड़े होकर!
लड़के खड़े होकर पेशाब करते हैं जबकि लड़कियां बैठकर, ऐसा कई देशों में कई संस्कृतियों में बच्चों को सिखाया जाता है। मगर अब कई सारे देशों के स्वास्थ्य विभाग, इस व्यापक रूप से फैली और स्वाभाविक सी धारणा को लेकर सवाल उठा रहे हैं।
प0नि0डेस्क
देहरादून। कई बार स्वास्थ्य और साफ-सफाई को लेकर पूछा जाता है कि पुरुषों को पेशाब कैसे करना चाहिए। यह सवाल समान अधिकारों का भी मामला है। सही कौन है? और सबसे जरूरी ये कि पुरुषों के लिए कौन सा तरीका सही है? अधिकतर पुरुषों के लिए खड़े होकर पेशाब करने से आसान तरीका और कुछ नहीं है। इससे काम जल्दी भी निपटता है और यह एक तरह से व्यावहारिक तरीका भी है।
शायद ही आपने कभी पुरूष मुत्रालयों में कोई कतार देखी होगी। पुरुष अंदर जाते हैं और कुछ ही देर में निकल आते हैं। तुरंत निपट जाने वाले इस प्रक्रिया के पीछे दो कारण हैं। पुरुष तुरंत पेशाब कर सकते हैं क्योंकि उन्हें ऐसा करने के लिए कई सारे कपड़े नहीं हटाने पड़ते। क्योंकि पुरुषों के यूरिनल्स क्यूबिकल्स लघु कक्षों की तुलना में कम जगह घेरते हैं इसलिए यूरिनल लगे हों तो कम जगह में अधिक पुरुष पेशाब कर सकते हैं।
लेकिन कई विशेषज्ञ बताते हैं कि मूत्र विसर्जन करते समय शरीर की स्थिति कैसी है, इसका असर बाहर निकल रहे पेशाब की मात्रा पर भी पड़ता है। हम पेशाब करते कैसे हैं! हमारे गुर्दों में पेशाब बनता है। गुर्दे हमारे ख़ून से अपशिष्टों को अलग करते हैं।
फिर यह पेशाब ब्लैडर यानी एक थैली में इकट्ठा होता है। इसी कारण हम बार-बार टायलट जाने से बचते हैं, रात को आराम से सो पाते हैं और दिन में काम कर पाते हैं। आमतौर पर ब्लैडर 300 से 600 मिलीलीटर तक पेशाब को इकट्ठा कर सकता है। मगर जब यह दो-तिहाई भर जाता है तो हमें पेशाब करने की जरूरत महसूस होने लगती है।
ब्लैडर को पूरी तरह खाली करने के लिए हमारे नर्वस सिस्टम का पूरी तरह से ठीक होना जरूरी है क्योंकि यही सिस्टम हमें बताता है कि कब टायलट जाना है और आसपास कोई जगह न हो तो कब तक और कितना पेशाब हम रोक सकते हैं।
जब हम पेशाब करने के लिए सुविधाजनक स्थिति में पहुंच जाते हैं तो हमारे पेल्विक फ्रलोर की मांसपेशियां और यूरेथ्रा को घेरने वाली एक गोल-सी मांसपेशी फैल जाती है। फिर हमारा ब्लैडर सिकुड़ता है और पेशाब को यूरेथ्रा यानी मूत्रमार्ग में खाली कर देता है। इस तरह से मूत्र शरीर से बाहर आ जाता है।
एक स्वस्थ आदमी को पेशाब करने के लिए जोर लगाने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए। मगर कई बार पुरुषों के साथ ऐसे स्थायी या अस्थायी हालात पैदा हो जाते हैं कि उन्हें पेशाब करने में मुश्किल आने लगती है।
एक अध्ययन कहता है कि जिन पुरुषों के प्रोस्टेट में सूजन हो और इस कारण दिक्कत होती हो तो उनके लिए बैठकर पेशाब करना लाभकारी हो सकता है। इस अध्ययन में स्वस्थ पुरुषों और लोअर यूरिनरी ट्रैक्ट सिम्टम्स एलयूटीएस से जूझ रहे पुरुषों के बीच तुलना की गई थी। एलयूटीएस को प्रोस्टेट सिंड्रोम भी कहते हैं।
इसमें पाया गया कि एलयूटीएस से जूझ रहे पुरुष अगर बैठ जाएं तो उनके यूरेथ्रल एरिया से दबाव कम हो जाता है। इससे उनके लिए पेशाब करने की प्रक्रिया सहज और संक्षिप्त हो जाती है। मगर स्वस्थ पुरुषों में खड़े होकर या बैठकर पेशाब करने में कोई अंतर नहीं देखा गया।
पेशाब करने में दिक्कतों का सामना करने वाले पुरुषों को सुझाव दिया जाता है कि पेशाब करने के लिए किसी अच्छी जगह आराम से बैठ जाएं। आपने ऐसा भी सुना होगा कि बैठकर पेशाब करने से प्रोस्टेट कैंसर नहीं होता और पुरुषों की सेक्स लाइफ बेहतर हो जाती है। इन बातों में कोई सच्चाई नहीं है क्योंकि इसका कोई साक्ष्य नहीं है और ऐसा कोई अध्ययन भी उपलब्ध नहीं है।
पुरुष खड़े होकर पेशाब करते हैं तो उसके इधर-उधर फैलने का खतरा बना रहता है जो कि स्वच्छता के हिसाब से ठीक नहीं माना जाता। जिन टायलेट्स को और लोग भी इस्तेमाल करते हैं, वहां इस तरह के हालात पैदा होना बेहद खराब स्थिति होती है। इसलिए अब इस बात पर जोर दिया जाने लगा है कि पुरुष बैठकर ही पेशाब करें।
कई यूरोपीय देशों जैसे कि जर्मनी में सार्वजनिक शौचालयों को लेकर नियम है कि आप टायलट में जाकर खड़े होकर पेशाब नहीं कर सकते। आप भले ही पुरुष हैं, आपको बैठकर ही पेशाब करना पड़ेगा। कुछ शौचालयों में ट्रैफिक संकेतों की तरह के संकेत लगे हैं कि यहां खड़े होकर पेशाब करना मना है। मगर जो पुरुष बैठकर पेशाब करते हैं, उन्हें वहां सिट्जपिंकलर कहा जाता है और यह दर्शाया जाता है कि ऐसा करना मर्दाना व्यवहार नहीं है। लोगों ने तो अपने घरों में भी ऐसे संकेत लगाना शुरू कर दिया है जिनमें पुरुष मेहमानों से बैठकर पेशाब करने की गुजारिश की जाती है।