फेक न्यूज के चलते देश के लाखों लोगों की रोजी रोटी पर संकट
अफवाहों से चौपट हो गया पाल्ट्री कारोबार
प0नि0संवाददाता
देहरादून। कोरोना वायरस की वजह से फैलाई जा रही फेक न्यूज के चलते देश के करीब 50 लाख लोगों की रोजी रोटी पर संकट आ गया है और देश की अर्थव्यवस्था में अहम भूमिका निभाने वाले पाल्ट्री प्रोडक्ट इसका बुरा प्रभाव पड़ा है। इसका परिणाम ये हुआ है कि पाल्ट्री यानि मुर्गी पालन के कारोबार में लगे लोग संकट में आ गए है।
कोरोना के कहर के बीच पफेक न्यूज के जरिए लोगों के बीच संदेश फैला कि शाकाहारी खाना मांसाहार के मुकाबले बेहतर और स्वास्थ्यवर्धक है। पाल्ट्री प्रोडक्ट से कोरोना वायरस का संक्रमण होने की फेक न्यूज सोशल मीडिया पर फैली तो अचानक प्रोडक्ट की मांग घट गई और देश के कई हिस्सों में मुर्गी पालक 28 से 30 रुपये किलो की दर से मुर्गियां बेचने को मजबूर हो गए जबकि इनके पालन में 60 से 70 रुपये प्रति किलो का खर्च आता है।
इस गिरावट की वजह से उन तमाम लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट आ गया है जो इस सेक्टर पर निर्भर हैं। मुर्गी पालन का बाजार सुलभ है और मुर्गी पालन में मुनाफा भी ठीक ठाक हो जाता है। इससे ग्रामीण इलाकों में रोजगार भी पैदा हुआ। भारतीय पाल्ट्री सेक्टर की वैल्यू करीब 80,000 करोड़ रुपये है, जिसमें से 80 फीसदी संगठित क्षेत्र में है। असंगठित क्षेत्र में वो मुर्गीपालन आता है जिसमें किसान अपने घरों में मुर्गियां पालते हैं।
तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और तेलंगाना में सबसे अधिक पालट्री फार्म हैं। कोरोना वायरस की वजह से कीमतों में गिरावट आई है जिसकी वजह से इस कारोबार में लगे किसानों का भविष्य खतरे में पड़ गया है। उनमें से कईयों ने इसके लिए बैंकों से कर्ज ले रखा है और उसे चुकाने में अब मुश्किल होगी। ऐसी भी रिपोर्ट आई हैं कि किसान पालट्री में मुर्गों को जिंदा दफना रहे हैं।
जब कोरोना वायरस का प्रकोप तेजी पकड़ रहा है, केंद्र और राज्य सरकारों को चाहिए कि वो इलेक्ट्रानिक, प्रिंट और सोशल मीडिया के जरिए इस बात की जानकारी दे कि कोरोना वायरस का पाल्ट्री इंडस्ट्री से कोई लेना देना नहीं है। इसके कोई वैज्ञानिक सबूत नहीं मिले। जबकि पाल्ट्री प्रोडक्ट खाने से इम्युनिटी बेहतर होती है जिससे कोरोना वायरस से लड़ने में और मदद मिलेगी।