मानवीय भूल या वाहन की तकनीकी खामियों तक सीमित है जांच का दायरा
मौत का वायस बनती जा रही है पहाड़ों की सड़क!
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। आयेदिन पहाड़ों पर सड़क हादसे मासूमों की जान ले रहें है। लेकिन जिम्मेदार महकमे इसे रोकने में नाकाम हो रहें है। हर बार मानवीय भूल और वाहनों की तकनीकी खामियों को हादसों की वजह करार दिया जाता है लेकिन कभी इन सड़कों की बनावट की खामियों पर गौर नही पफरमाया जाता। यह मुद्दा हम बार बार उठाते रहें है कि प्रदेश के पहाड़ों पर लगातार हो रहे हादसों के मद्देनजर सरकार को चाहिये कि वह इन सड़कों के एलाइनमेंट को भी जांचे परखे ताकि यथासंभव सड़क हादसों पर रोक लगायी जा सके।
इसमें हर्ज भी क्या है? जब जांच होनी है तो हर ऐंगल से उसे परखा जाना चाहिये। हर हादसे के बाद यही महसूस होता है कि कुछ तो गड़बड़ है। यदि वास्तव में सरकार पहाड़ों की सड़कों पर हो रहे हादसों पर लगाम लगाने को लेकर गंभीर है तो उसे प्रदेश के विभिन्न विशेषज्ञ और संस्थाओं के माध्यम से इसका एक वृहद सर्वे करवाना चाहिये। जिससे पहाड़ों पर लगातार हो रहें सड़क हादसे के कारणों पर प्रकाश पड़े और इसके रोकथाम के लिए कारगर तरीका अपनाया जा सके।
क्योंकि यों ही इन हादसों के जरिए लोगों को मौत के मुंह में जाते नही देखा जा सकता है। लोगों के सुरक्षित आवागमन के लिए बेहतर और सुरक्षित सड़क की सुविध उपलब्ध कराना सरकार की जिम्मेदारी है। इसमें कोताही का कोई मतलब नही है। लगातार हो रहे हादसों के बाद हालांकि सरकारें और सरकारी मशीनरी नींद से जागती है। लेकिन कुछ ही समय बाद जांच के नाम पर खानापूर्ति करके यह सभी इतिश्री कर लेते है। जबकि जो रकम सरकारें मुआवजें के तौर पर हादसे होने के बाद बांटती है, उसका छोटा सा हिस्सा भी सर्वे और अनुसंधन पर खर्च करे तो समाधान तलाशे जा सकते है।
लेकिन अफसोस कि ऐसा नही हो रहा है। बल्कि हर हादसे के बाद सख्ती की जाती है और फिर ले देकर गाज लोगों पर ही गिरती है। जबकि यह उचित हल नही है। क्योंकि खामखां वाहन स्वामियों के पेंच कसे जाते है और जिम्मेदार महकमे के कर्मचारियों के लिए जेब गर्म करने का साधन उपलब्ध हो जाते है। इसके बावजूद सड़कों पर होने वाले हादसे बादस्तूर होते रहते है। ऐसे में यदि पहाड़ की सड़कों की बनावट की जांच होगी तो समस्या की जड़ तक पहुंचा जा सकेगा और हादसों में मासूमों को जान नही गंवानी पड़ेगी।
हालांकि सड़क हादसों पर रोक के लिए कई बार मांग की जाती रही है लेकिन जिम्मेदारों ने कभी मुस्तैदी बरतने की जहमत नही उठायी है। अब भी देर नही हुई है और यकीन मानिये कि सरकार चाहे तो हादसे टाले जा सकते है।