आवारा पशुओं के भोजन के लिए विभाग के पास बजट उपलब्ध नही
बिना बजट आवारा पशुओं को आहार कैसे मिले!
अरुण प्रताप सिंह
देहरादून। राष्ट्र के नाम अपने संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य सरकारों से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा था कि देश में वर्तमान में 21 दिन की तालाबंदी के दौरान आवारा जानवर भूखे न मरें। प्रधानमंत्री के संबोधन के बाद भारतीय पशु कल्याण बोर्ड ने 23 मार्च को ही राज्य सरकारों को लिखा था कि यह सुनिश्चित करने के लिए कि पशु आहार का परिवहन आवश्यक वस्तु के रूप में किया गया था और लॉकडाउन के दौरान इसकी आपूर्ति बाधित न होने पाए।
बोर्ड ने राज्य सरकारों को आवारा पशुओं सहित आवारा पशुओं को खिलाने में गैर सरकारी संगठनों और पशु कल्याण संगठनों के साथ समन्वय करने का भी निर्देश दिया। इसके बाद उत्तराखंड सरकार के सचिव पशुपालन मीनाक्षी सुंदरम ने सभी जिलाधिकारियों, निदेशक पशुपालन विभाग और सभी जिलों के मुख्य पशु चिकित्साधिकारियों को एक पत्र लिखकर जरूरतमंदों की मदद करने के लिए कहा।
हालांकि तथ्य यह है कि आदेशों के बावजूद और कई सरकारी अधिकारियों को आवारा पशुओं को खिलाने में लोगों और गैर सरकारी संगठनों की मदद करने के लिए जमीन पर काम करते नहीं देखा जा रहा। लोग आधिकारिक रूप से देखी गई मदद के बिना जानवर को खिलाने के लिए अपनी जेब से पूरी तरह से खर्च कर रहे हैं। अपर सचिव पशुपालन डीके तिवारी ने सवाल पूछे जाने पर इस संबंध में निदेशक पशुपालन से बात करने को कहा।
निदेशक पशुपालन डा0 केके जोशी ने स्वीकार किया कि अभी तक आवारा पशुओं या अन्य आवारा पशुओं को खिलाने के लिए विभागीय बजट में कोई प्रावधान नहीं है। इसलिए विभाग के अधिकारी पशु कल्याण संगठनों और अन्य व्यक्तिगत पशु प्रेमियों के ही संसाधनों से खर्च किए गए धन की मदद से आवारा पशुओं को आहार मिलता रहे, इस बात के लिए संगठनों तथा पशु प्रेमियों के साथ समन्वय कर रहे हैं। किस प्रकार की और कितने आहार की व्यवस्था अब तक की जा चुकी है, यह बताने में वह असमर्थ थे।
उन्होंने दावा किया कि उनके संज्ञान में जहां तक आया है, पशु कल्याण संगठन और निजी पशु प्रेमी इस संकट में बढ़िया कार्य कर रहे है। उनकी संज्ञान में राज्य में कहीं भी आवारा पशुओं की भुखमरी का कोई मामला नहीं आया है। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के शुरुआती दिनों में राज्य के कुछ हिस्सों में चारे की कमी के कारण पशुओं के चारे की आपूर्ति श्रृंखला प्रभावित हुई थी, लेकिन अब इस समस्या को हल कर लिया गया है और वर्तमान में कहीं भी चारे की समस्या नहीं है।
देहरादून के मुख्य पशु चिकित्सा अधिकारी डा0 एसबी पांडे ने कहा कि अभी तक जिलाधिकारी के स्तर से आवारा पशुओं के आहार के लिए कोई धनराशि जारी नहीं की गई है और उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि आवारा पशुओं के भोजन के लिए विभाग के पास कोई धन उपलब्ध नहीं है। इसलिए विभाग का मुख्य फोकस पशु संगठनों जैसे कि पीपल फॉर एनिमल्स, एसपीसीए, राहत और अन्य निजी पशु प्रेमियों के साथ समन्वय करने पर है। इसके अलावा विभाग यह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है कि जनपद में कहीं भी चारे की कमी न हो और वह उचित मूल्य पर उपलब्ध रहे।
उन्होंने स्वीकार किया कि कुछ चारा थोक व्यापारी और खुदरा विक्रेता ग्राहकों से शुल्क वसूल रहे हैं, लेकिन विभाग ने जिलाधिकारी की मदद से डीलरों द्वारा ओवर चार्जिंग पर अंकुश लगाया। उन्होंने कहा कि दून में कुछ पालतू जानवरों की दुकानें लॉकडाउन के कारण बंद मिली थी लेकिन विभाग ने यह सुनिश्चित कर लिया था कि इन दुकानों में बिक्री के लिए रखे गए पालतू जानवरों को दुकानों से हटा कर डीलरों के घरों में भेज दिया जाए ताकि वे भुखमरी का शिकार न हों।
सवाल यह है कि अगर सब कुछ कार्यकर्ताओं और पशु कल्याण संगठनों को ही करना है, तो यह सुनिश्चित करने में विभाग की क्या भूमिका है कि आवारा जानवर भूखे नहीं मरें? यह भी अजीब तथ्य है कि कोरोना वायरस के प्रसार के साथ-साथ लॉकडाउन के कारण विकसित होने वाली किसी भी आकस्मिकता से निपटने के लिए जिला प्रशासन को धनराशि जारी की गई है, लेकिन आवारा जानवरों की जरूरत को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए इस गंभीर आवश्यकता की पूर्ति केवल लोगों और पशु कल्याण संगठनों के हवाले छोड़ दी गई है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं पशु प्रेमी भी है।