अर्नब को परेशान करने के लिए देश के कोने-कोने में केस दर्ज कराना लोकतांत्रिक व्यवहार नहीं
मीडिया और राजनीति के संबंधों पर बहस
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी पर हमले के बाद मीडिया और राजनीति के संबंधों पर बहस छिड़ गई है। इस बहस में अर्नब के आलोचकों और उनके समर्थकों की अपनी अपनी दलीलें है। वैसे तो आजकल सवाल उठाने वाले पत्रकार खुद भी सवालों के घेरे में हैं।
टीवी पत्रकार अर्नब गोस्वामी पर हमले के बाद मीडिया और राजनीति के संबंधों पर बहस तेज हो गई है। एक जाने माने न्यूज चैनल के मालिक और सेलिब्रिटी एंकर पर हमले की खबर के बाद सोशल मीडिया पर बहस और चर्चा दोनों चल निकली है। अर्नब गोस्वामी रिपब्लिक टीवी के मालिक हैं और अपने चैनल के चर्चित एंकर भी है। 22 अप्रैल की रात उन्होंने एक वीडियो संदेश में बताया कि रात के करीब 12.15 बजे उनके घर से थोड़ी ही दूर मोटरसाइकिल सवार दो अंजान लोगों ने उनकी गाड़ी पर हमला किया, गाड़ी के शीशे तोड़ने की कोशिश की और गाड़ी पर कोई लिक्विड फेंका।
वीडियो में अर्नब गोस्वामी ने बताया है कि गाड़ी में बैठे वह और उनकी पत्नी किसी तरह से खुद को बचा कर अपनी बिल्डिंग में घुस गए। उनके अनुसार उनकी बिल्डिंग के चौकीदारों ने उन्हें बताया कि हमलावर युवा कांग्रेस के सदस्य थे और उन्हें कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने अर्नब को सबक सिखाने के लिए भेजा था।
अर्नब ने हमले की शिकायत पुलिस में की। पुलिस ने मामला दर्ज किया और खबर है कि दो लोगों को हिरासत में ले भी लिया गया। हालांकि पुलिस ने इनकी पहचान के बारे में कुछ नहीं बताया है। हमले के कुछ घंटे पहले अर्नब ने अपने एक कार्यक्रम में महाराष्ट्र के पालघर में हुई दो साधुओं और उनके ड्राइवर की लिंचिंग का मामला उठाया था और इस घटना पर कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी की चुप्पी पर सवाल उठाया था लेकिन सवाल उठाते उठाते उन्होंने सोनिया गांधी पर कई आरोप भी लगा दिए।
उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी जहां उनकी पार्टी की सरकार है उस राज्य में साधुओं को पीट पीट कर मारे जाने पर मन ही मन में खुश हैं और इस बारे में वो इटली में रिपोर्ट भेजेंगी कि जहां मैंने सरकार बनवा ली वहां मैं हिन्दू संतों को मरवा रही हूं।
अर्नब और उनके टीवी चैनल पर आरोप हैं कि वह सरकार की तरफदारी वाली पत्रकारिता करते हैं। आरोप यह भी लगते हैं कि यह चैनल शुरू ही हुआ था ऐसे लोगों की वित्तीय मदद से जो या तो भाजपा के सदस्य हैं या भाजपा से किसी ना किसी तरह से जुड़े हुए हैं।
मई 2017 में जब ये चैनल शुरू हुआ था तब इसकी अभिभावक कंपनी एआरजी आउटलायर एशियानेट न्यूज प्राइवेट लिमिटेड में उद्योगपति और राजनेता राजीव चंद्रशेखर का निवेश था। राजीव चंद्रशेखर उस समय राज्यसभा के निर्दलीय सदस्य थे लेकिन सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन का हिस्सा भी थे। अप्रैल 2018 में राजीव ने आधिकारिक रूप से भाजपा की सदस्यता ले ली और एआरजी आउटलायर के बोर्ड से इस्तीफा दे दिया।
अर्नब और उनके चैनल के किसी भी दल के साथ कैसे भी संबंध हों, लेकिन अर्नब पर हमले की घटना ने उन्हीं सवालों को खड़ा कर दिया जो पत्रकारों पर होने वाले हर हमले के बाद पूछे जाते हैं। पत्रकारों पर हमला निंदनीय है। उनकी पत्रकारिता पर सवाल है तो उस पर बहस की जा सकती है या उन्हें देखना पढ़ना बंद किया जा सकता है। अगर कोई रिपोर्ट मनगढ़ंत हो तो उसके खिलाफ पुलिस या अदालतों में शिकायत कर सकते है।
किसी को परेशान करने के लिए देश के कोने-कोने में केस दर्ज कराना लोकतांत्रिक व्यवहार नहीं कहलायेगा। जबकि कांग्रेस यही कर रही है। भाजपा के कार्यकर्ता भी कई मामलों में ऐसा करते नजर आते हैं। सवाल ये भी है कि यदि कांग्रेस अर्णब गोस्वामी के खिलाफ केस दायर करने के बारे में गंभीर होती तो एक ही जगह केस करती और सारे साक्ष्य और प्रमाण के साथ प्रयास करती कि केस अपनी परिणति तक पहुंचे। हर पत्रकार और मीडिया संस्थान को संविधान के अनुच्छेद 19 (ए) के तहत संरक्षण प्राप्त है और उन पर हमला वास्तव में लोकतंत्र पर हमला है।
यहां पर इस बात पर गौर जरूर करें कि अर्नब सही है या गलत, इतना अहम नही रह जाता। बल्कि लोकतंत्र पर हमला और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की पैरवी करने वालों की पोल खुलती है। जो सदैव दोहरे मानदंड़ के साथ अपना एजेंड़ा देशभर में चलाते रहते है। ऐसे लोगों के हिसाब से बातों हो तो सब ठीक वरना आलोचन के लिए किसी भी हद को पार कर जाना, इनका घृणित चेहरा ही उजागर करता है।
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