शहर भर की दुकानों में बैनर का तमाशा
पुलिस के आदेश के नाम पर वसूले जा रहें मनमाने दाम
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। कोरोना महामारी के नाम पर जहां दुनिया भर में मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा है और करीबन सभी देश लाकडाउन का दंश झेलने को मजबूर है वहीं कुछ लोगों ने इसमें भी अवसर तलाश लिया है। मसलन राशन वाले, बीडी-सिग्रेट एवं गुटखा के व्यापारी आदि आदि। ऐसे लोगों की पफेहरिस्त बड़ी लंबी है। कहां तो बहुत से लोग ऐसे संकट के काल में अपना पेट काटकर भी लोगों की मदद के लिए आगे आ रहें है। वहीं कुछ इसे अवसर मानकर मुनाफा कमा रहें है। भले ही इसके खातिर उनको कालाबाजारी या उल्टे धंधे ही क्यों न करने पड़ रहें हों। इस लिस्ट में कुछ पुलिसकर्मियों की भी संलिप्तता देखने को आ रही है।
जबकि इस कोरोना काल में कोरोना योद्वा के तौर पर पुलिस सबसे आगे रही है। लाकडाउन के दौरान पुलिस का कार्य और मानवीय पहलू जो देखने में आया वह उल्लेखनीय एवं प्रशंसा के योग्य है परन्तु उसके कुछ कर्मिक उसका नाम खराब करने की गुस्ताखी कर रहें है। ऐसे लोगों को चिन्हित कर उनपर सख्त कारवाई की जरूरत है। बाजार में गुजरते समय गौर फरमाये तो पायेंगे कि हर दुकान के बाहर एक बैनर चस्पां मिलता है जिसमें डीआईजी/एसएसपी के नाम से कोरोना से बचाव के बारे में चेतावनी छपी हुई है। भले ही कुछ लोग इसे जागरूकता को लेकर सही ठहरायें लेकिन चालान भय दिखाकर या दूसरे तरीके से दबाव बनाकर शहर भर में ऐसे बैनर को 50, 70 और 150 रूपये में खपाया जा रहा है।
यानि जो जितना डर गया, उससे उतना पैसा वसूल कर लिया। जोकि किसी भी तरीके से जायज नहीं ठहराया जा सकता। हालांकि व्यापारी वर्ग खुलकर सामने आने को तैयार नहीं लेकिन दबे स्वर कपितय पुलिसकर्मियों के इस कृत्य की आलोचना तो हो ही रहीं है। इसमें कोई दो राय नही कि ऐसे आदेश या दबाव बनाकर बैनर लगाने के आदेश पुलिस अधिकारी ने तो दिये नहीं होंगे। वहीं बैनर खपाने के लिए पुलिसकर्मियों की संलिप्तता हैरान करने वाली है। पहले पुलिस के जवान दुकानदार के पास आते है और बैनर न लगे होने पर चालान काटने की धमकी देते है। उसके बाद उनके तय बैनर वाला आकर बैनर के नाम पर वसूली कर जाता है। हालांकि कुछ जगहों पर उक्त बैनर निःशुल्क भी बांटे गए है लेकिन ज्यादातर जगहों पर पुलिसिया रौब गालिब कर वसूली ही की गई है।
यहां पर हैरान करने वाली बात है कि ऐसा कृत्य करने वाले इस बात से भी बेपरवाह है कि बहुत से दुकानदार तो लाकडाउन के दौरान औपचारिक तौर पर दुकान खोले बैठे है जबकि उनकी बिक्री लगभग न के बराबर है। ऐसा दुकानदार जिसकी बिक्री ही पचास सौ रूपये से उपर नही है, उसे उक्त बैनर पर पचास से डेढ़ सौ रूपये चुकाने पड़ रहें है। हालांकि यह तो मानवीय पहलू की बात की जा रहीं है। लेकिन इस तरह शहर भर में बैनरों से दुकानों को पाट देना कहां की समझदारी है।
वैसे भी इससे जहां बेवजह पैसे की बर्बादी हो रहीं है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण चक्र पर भी इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ने वाला है। पर्यावरण से जुड़ी कई रिपोर्ट में फ्रलैक्स को पर्यावरणीय दृष्टि से बेहद हानिकारक माना गया है। फिर यह कैसी जागरूकता है जो बेवजह लोगों की जेब को चोट पहुंचाये। जबकि कोरोना महामारी और लाकडाउन की वजह से करीब करीब सभी वर्ग या तो आर्थिक संकट से गुजर रहा है, या गुजरने वाला है।
रविवार, 31 मई 2020
शहर भर की दुकानों में बैनर का तमाशा
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