सीमा के नकदीक सैनिक साजोसमान डंप करने से होता उसकी कुटिलता की अंदाजा
चीन से अतिरिक्त सतर्कता बरते जाने की जरूरत
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। धोखा और फरेब चीन की फितरत है। हमारे पूर्व रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडीज ने कहा था कि पाकिस्तान नहीं, चीन हमारा सबसे बड़ा शत्रु है। तब बहुत से लोग हैरान हो गए थे। लेकिन यह बात उन्होंने हवा में नहीं कही थी। 1962 में हमारी हार के बाद से अब तब वह लगातार हम पर दबाव बनाकर हमारी जमीनों पर काबिज होता रहा। थोड़ा थोड़ा करके हमें पीछे धकेलता रहा। हमारी कमजोर इच्छाशक्ति वाली सरकारें सेना को पीछे हटाती रहीं। लेकिन अब हालात और प्रवृति दोनों बदल गए है।
क्योंकि पीछे हटने या संयम रखने की भी एक सीमा होती है। लेकिन सवाल उठाने वाले राजनीतिज्ञों को याद रखना चाहिये कि 1962 से पूर्व ही चीन ने हमारी सीमा के समीप सड़क बना डाली। किसी ने कोई विरोध तब नहीं किया। परन्तु जैसे ही हमारी ओर से ऐसी पहल शुरू हुई, चीन आक्रामक होता चला गया। यहां हमको नहीं भुलना चाहिये कि भले ही हमारे सैनिकों ने पराक्रम दिखाकर चीनी सैनिकों को पीछे धकेला हो लेकिन जहां अब वह बार-बार बातचीत का आग्रह कर रहा है, वहीं उसने काराकोरम हाईवे और वास्तविक नियंत्रण रेखा के समीप हमारी सीमा पर सैनिकों एवं सैन्य साजोसमान का डंप लगाना शुरू कर दिया है।
इस वजह से हमारी सरकार भी सतर्कता बरतते हुए कदम बढ़ा रही है। यहीं कारण है कि उसने तीनों सेनाओं को हाई अलर्ट पर रखा हुआ है। जमीन, नभ और जल क्षेत्रों में सेना की तैनाती हो चुकी है और निगरानी तंत्र को सुदृढ़ किया जा चुका है। क्योंकि चीन बातचीत केवल और केवल अपनी तैयारियों के लिए समय के वास्ते समय बिताने के लिए कर रहा है ताकि मौका मिले और पलटवार करे। क्योंकि माओवाद के अनुसरण करने वाले चीन का का सिद्वांत है कि वह ताकतवर दुश्मन से नहीं लड़ता बल्कि उससे मित्रता का हाथ बढ़ा कर उसे कमजोर करता है और तब उसपर हावी होता है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि हम सैनिक तैयारियों में कहीं कम नही है। हमारी सेनाएं उसका हर जवाब देने में सक्षम है लेकिन इस मुद्दे पर हो रही राजनीति से पार पाना बेहद जरूरी है। वैसे देश में वामपंथियों और कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी विपक्ष सरकार के साथ एकजुटता दिखा रहा है। वामपंथियों की तो शुरू से मानसिकता चीन के फेवर की रही है लेकिन कांग्रेस के शासनकाल में सबसे ज्यादा बार चीन ने हमारी जमीनों पर अतिक्रमण किया।
तब जितना बेचारगी कांग्रेसनीत सरकारों ने दिखाई, वह कभी देखने को नहीं मिल सकती। हालांकि तब का विपक्ष मर्यादा का पालन करते हुए उसके साथ खड़े हो जाया करते थे। कोई सवाल नही करते थे। लेकिन आज कांग्रेस खासकर राहुत गांधी ऐसा व्यवहार कर रहें है जैसे वे चीन के एजेंट हों। यहां पर गौर फरमाए तो पायेंगे कि चीन और कांग्रेस का हस्र एक जैसा हो रहा है। चीन जितना आक्रमक होता है उतना ही उसकी मिट्टी पलीद हो रही है। कुछ वैसा ही अंजाम कांग्रेस का भी हो रहा है। तभी तो वह लगातार गलती पर गलती कर देश और सेना का अपमान करने पर तुली हुई है। वरना ऐसे संकट के समय राजनीति करने और सरकार पर निशाना साधने की बजाय कांग्रेस चीन पर भी दो शब्द बोलती।