छपासः एक उपयोगी बीमारी
खबरीलाल
देहरादून। ऐसे ही शास्त्रों में निष्काम कर्म की सलाह नहीं दी गई है। क्योंकि इंसान काम तो करता नहींे परन्तु उसे फल चाहिये। लेकिन यदि उसे ज्ञात हो गया कि जो काम वह करने जा रहा है उसका हासिल कुछ न होगा तो वह हिलने को भी तैयार न होगा।
आदमी काम करे न करें परन्तु वह चाहता है कि उसे अच्छे काम के लिए सम्मानित किया जाये। और इस कामना में वह उल्टे-सीधे तमाम जतन करता जाता है। यहां तक कि इस अभिष्ट सिद्वि के लिए अनुपयोगी कार्य करने से भी उसे परहेज नहीं होता।
हालांकि जरूरी नही कि वह पारितोषिक के लिए काम करता है। वह तो छपास नामक खुजली को मिटाने के लिए भी एक बटा दो या ऐसे ही कुछ उपक्रम करता रहता है। ताकि खाज भी मिटे और आनंद भी आये। वो अलग बात है कि कई बार खुजाने वाले की खाल तक उधड़ जाती है। त्वचा से खून निकलने लगता है। मजा तो तब भी बन्दे को खुजली का आता ही है। इसी तरह बहुत से बार ऐसे कारज भी किए जाते है जिसे देसी भाषा में ‘आ बैल मुझे मार’ भी कहा जाता है।
आप हैरान होंगे कि इसके पीछे इंसानी दिमाग की कुदरती प्रवृति जिम्मेदार होती है। क्योंकि उसके पास दिमाग होता है। चूंकि अक्सर वह खाली होता है इसलिए शैतान का घर बन जाता है। फिर तरह-तरह के खुराफात उसको सूझते है। इस सूझ के लिए छपास का रोग बड़ा ही उपयोगी बताया गया है। वैसे भी यह एकमात्र ऐसी बीमारी है जिसकी कामना करते हुए हम अक्सर उपर वाले से गुजारिश करते है कि हमको छपास का रोग हो जाये। तो भी वह प्रयत्न करता रहता है कि बन्दा इस रोग से दूर रहे। लेकिन खुराफात हावी होने पर बन्दे को हठी बना देती है।
ऐसी स्थिति में सामने चाहे कोई भी आ जाये, जिद्द में बन्दा मानता नहीं है। बल्कि यह सनक तो मनवाने वाली प्रवृति है। कहा जाता है कि छपास रोगी का तो भगवान ही मालिक होता है। जबकि जिसे छपास रोग का संक्रमण हो जाये वह खुद को भगवान का मालिक समझता है।