कोरोना वायरस की दवा
डेक्सामेथासोन जान बचाने वाली दवा साबित
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। ब्रिटेन के विशेषज्ञों का दावा है कि कम मात्रा में डेक्सामेथासोन दवा का उपयोग कोरोना के खिलाफ लड़ाई में रामबाण बनकर उभरा है। उनकी मानें तो जिन मरीज़ों को गंभीर रूप से बीमार पड़ने की वजह से वेंटिलेटर का सहारा लेना पड़ रहा है, उनके मरने का जोखिम इस दवा की वजह से क़रीब एक तिहाई कम हो जाता है। जिन्हें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ रही है, उनमें पांचवें हिस्से के बराबर मरने का जोखिम कम हो जाता है।
बता दें कि डेक्सामेथासोन 1960 के दशक से गठिया और अस्थमा के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा है। कोरोना के जिन मरीज़ों को वेंटिलेटर की जरूरत पड़ रही है, उनमें से आधे नहीं बच पा रहे हैं इसलिए इस जोखिम को एक तिहाई तक कम कर देना वास्तव में बड़ी कामयाबी है।
शोधकर्ताओं के अनुसार यह दवा सस्ती है, इसलिए ग़रीब देशों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो सकती है। यह दवा उस परीक्षण का भी हिस्सा है जो मौजूदा दवाइयों को लेकर यह जांचने के लिए किया जा रहा है कि कहीं ये दवाइयां कोरोना पर असर करती है या नहीं।
कोरोन के क़रीब 20 मरीज़ों में से 19 मरीज़ बिना अस्पताल में भर्ती हुए ठीक हो रहे हैं। जो मरीज़ अस्पताल में भर्ती भी हो रहे हैं, उनमें से भी ज्यादातर ठीक हो रहे हैं लेकिन कुछ ऐसे मरीज़ हैं जिन्हें ऑक्सीजन या फिर वेंटिलेटर की ज़रूरत पड़ रही है। यह दवा ऐसे ही अधिक जोखिम वाले मरीज़ों को मदद पहुंचाती है।
ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के एक दल ने अस्पतालों में भर्ती 2000 मरीज़ों को यह दवा दी और उसके बाद इसका तुलनात्मक अध्ययन उन 4000 हज़ार मरीज़ों से की जिन्हें दवा नहीं दी गई थी। वेंटिलेटर के सहारे जो मरीज़ जीवित थे उनमें इस दवा के असर से 40 फ़ीसदी से लेकर 28 फ़ीसदी तक मरने का जोखिम कम हो गया और जिन्हें ऑक्सीजन की ज़रूरत थी उनमें 25 फ़ीसदी से 20 फ़ीसदी तक मरने की संभावना कम हो गई।
दल के मुख्य अध्ययनकर्ता प्रोफ़ेसर पीटर हॉर्बी के मुताबिक यह एकमात्र ऐसी दवा है अब तक जिसके असर से मृत्यु दर में कमी देखी गई है और यह कमी इतनी है जो कि काफ़ी अहम मात्रा में है। एक अन्य शोधकर्ता प्रोफ़ेसर मार्टिन लैंड्रे का कहना है कि इस दवा की मदद से आप वेंटिलेटर के सहारे जीवित हर आठ में से एक की ज़िंदगी बचा सकते हैं और जिन मरीज़ों को ऑक्सीजन की ज़रूरत पड़ रही है, उनमें से क़रीब हर 20-25 मरीजों पर आप एक मरीज़ बचा सकते हैं।
गौर हो कि डेक्सामेथासोन के दस दिन के इलाज का ख़र्च एक मरीज़ पर मात्र 500 रूपया पड़ता है। इसलिए महज़ साढ़े तीन हज़ार रुपये में एक मरीज़ की जान बचाई जा सकती है और यह दवा हर जगह मिलती है। हालांकि कोरोना के जिन मरीज़ों में हल्के लक्षण हैं, उनको यह दवा कोई मदद नहीं पहुंचा पाती।
जिन दवाओं पर ट्रायल चल रहा है उनमें मलेरिया की दवा हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वीन भी एक थी लेकिन इसकी वजह से हृदय संबंधी समस्या बढ़ने और जान जाने का ख़तरा रहता है। एक दूसरी दवा रेमडेसिवियर है जिसकी मदद से देखा गया है कि यह लोगों को कोरोना संक्रमण से ठीक होने में मदद पहुंचा रही है।