व्यापारिक हित के लिए शी से 18 मुलाकात, देश हित के लिए एक भी नहीं! क्यों?
पुरुषोत्तम शर्मा
लालकुआं। इतनी गहरी दोस्ती। दुनिया के पहले ऐसे राष्ट्राध्यक्ष होंगे नरेंद्र मोदी और शी जिंग पिंग, जो छोटे से समय में अपने व्यापारिक हितों के लिए 18 बार मुलाकात किये। यही नहीं चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के न्योते पर भाजपा-आरएसएस के नेताओं की टीमें तीन बार चीन गई। एक बार इनके युवा नेता चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के मेहमान रहे। राम माधव अलग से जाकर चीनी नेताओं से मिले। उससे पहले अटल जी की चीनी नेताओं से दोस्ती की शुरुआत हो चुकी थी।
चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के नेता तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के न्योते पर दिल्ली में उनसे भी मिले। नितिन गडकरी की उपस्थिति में दोनों देशों के रेल अधिकारियों का समझौता हुआ। गुजरात को चमकाने में मोदी ने चीन की मदद ली। दिल्ली की सत्ता में आने के बाद चीन से निवेश और व्यापार ज्यादा बढ़ाया। अब जब चीनी सेना ने भारत की दावेदारी और लगातार पैट्रोलिंग वाले गलवान घाटी, पेंगोंग झील और दौलत बेग से आगे के क्षेत्र पर हमारे प्रवेश को रोक कर स्थाई कब्जा कर लिया है, तो मोदी कह रहे हैं कि चीन हमारी जमीन जमीन पर आया ही नहीं?
क्या सीमा पर विवादित क्षेत्र के भारत के दावे की जमीनों को मोदी सरकार चीन के लिए छोड़ रही है? क्या मोदी सरकार सैद्वांतिक रूप से मान चुकी है कि वास्तविक नियंत्रण रेखा तक ही भारत की जमीन है? फिर तो अक्साई चीन से भी बड़े भू-भाग को नरेंद्र मोदी ने अपने परम मित्र शी जिंग पिंग को तोहफे में दे दिया है?
फिर सीमा पर देश के 20 बहादुर सैनिकों की शहादत और ये तनाव पूर्ण माहौल क्या अपने दूसरे परम मित्र डोनाल्ड ट्रंम्प को चुनाव जितने और खुद बिहार, पश्चिम बंगाल चुनाव जीतने की साजिश तो नहीं? क्योंकि आपका तो इतिहास ही है चुनाव से पहले साम्प्रदायिक तनाव या युद्वोन्मादी अंधराष्ट्रवाद को हवा देकर चुनावी वैतरणी पार करने का।
अगर ऐसा नहीं है तो जो नरेंद्र मोदी 18 बार व्यापारिक हितों के लिए शी जिंग पिंग से मिले, वे एक बार राष्ट्र हित के लिए मिलने से क्यों बच रहे हैं? क्यों राजनीतिक व कूटनीतिक पहल के अंतिम विकल्प को आजमाए बिना युद्व की तैयारी की जा रही है? देश को जवाब तो चाहिए?