यायावर पत्रकार दिनेश कंडवाल की खोज पर विराम
आंतों में इंफेक्शन होने से दो दिन पूर्व अस्पताल में भर्ती करवाया गया था
मनोज ईष्टवाल
देहरादून। डिस्कवर मासिक पत्रिका के सम्पादक दिनेश कंडवाल ने ओएनजीसी हास्पिटल में अंतिम सांस ली है। दो दिन पहले ही आंतों में इंफेक्शन होने से दो दिन पूर्व ही उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। दिनेश कंडवाल ने अपनी जिंदगी की शुरुआती दौर की पत्रकारिता ऋषिकेश में भैरव दत्त धूलिया के अखबार तरुण हिन्द से बतौर पत्रकार शुरू की। तदोपरान्त उन्होंने पार्टनरशिप में एक प्रिटिंग प्रेस भी चलाई व एक अखबार का सम्पादन भी किया। ओएनजीसी में नौकरी लगने के बाद भी उन्होंने अपना लेखन कार्य जारी रखा। उनके स्वागत पत्रिका, धर्मयुग, कादम्बनी, हिन्दुस्तान, नवीन पराग, सन्डे मेल सहित दर्जनों पत्र-पत्रिकाओं में लेख छपते रहते थे।
नार्थ ईस्ट में त्रिपुरा सरकार द्वारा उनकी पुस्तक ‘त्रिपुरा की आदिवासी लोककथाएं’ प्रकाशित की गयी जो आज भी वहां की स्टाल पर सजी मिलती है। इसके अलावा उन्होंने ओएनजीसी की त्रिपुरा मैगजीन ‘त्रिपुरेश्वरी’ पत्रिका का बर्षों सम्पादन किया। ट्रेकिंग के शौकीन दिनेश कंडवाल ने नार्थ ईस्ट से लेकर उत्तराखंड के उच्च हिमालय क्षेत्र के विभिन्न स्थलों की यात्राएं शामिल रही, जिन पर उन्होंने बड़े-बड़े लेख भी लिखे। उनकी यात्राओं में 1985 लैंड- फो (दार्जलिंग)-संगरीला (12000 फिट सिक्किम), ‘थोरांग-ला पास’ (18500 फिट) दर्रे, डिजोकु-वैली ट्रैक, मेघालय में (लिविंग रूट ब्रिज) ट्रैक गढवाल-कुमाऊं में कई यात्राओं में वैली आफ फ्रलावर, मदमहेश्वर, दूणी-भितरी, मोंडा-बलावट-चाईशिल बेस कैंप, देवजानी-केदारकांठा बेस, तालुका हर-की-दून बेस इत्यादि दर्जनों यात्राओं के अलावा लद्दाख में अपनी धर्मपत्नी श्रीमती सुलोचना कंडवाल के साथ ‘सिन्दू-जसकार नदी संगम का चादर ट्रैक’ प्रमुख हैं।
2012 में ओएनजीसी से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति से पहले ही उन्होंने 2010 में अपनी पत्राकारिता को व्यवसायिकता देते हुए ‘देहरादून डिस्कवर’ नामक पत्रिका का नाम आरएनआई को अप्रूव के लिए भेजा व 10 अक्टूबर 2011 में उनकी मैगजीन का विधिवत प्रकाशन शुरू हुआ। लगभग 66 साल की उम्र में उनकी अंतिम यात्रा ‘हिमालयन दिग्दर्शन ढाकर शोध यात्रा 2020’ शामिल रही जिसमें उन्होंने 4 दिन की इस ऐतिहासिक शोध यात्रा में लगभग 42 किमी पैदल सहित 174 किमी की यात्रा की।
उनकी मृत्यु पर जिलाधिकारी पौड़ी ने उनकी पौड़ी गढ़वाल की अंतिम यात्रा का स्मरण करते उन्हें श्रद्वांजलि अर्पित की। पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने इसे पत्रकारिता जगत के लिए बड़ा आघात बताया। कई पत्रकार संगठनों के सैकड़ों पत्रकारों ने भी श्रद्वांजलि अर्पित की है।