आईसीएमआर और आयुष मंत्रालय लोगों के जीवन से खेल रहे
विश्व स्वास्थ्य संगठन को तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए
पुरुषोत्तम शर्मा
लालकुआं। आईसीएमआर व भारत बायोटेक द्वारा तैयार की जा रही कोरोना वैक्सीन को 15 अगस्त तक बाजार में लाने की घोषणा की जा चुकी है। जबकि मनुष्यों पर इसका क्लीनिकल ट्रायल अभी शुरू ही नहीं हुआ है। यह ट्रायल 6 जुलाई से शुरू होगा। आईसीएमआर ने उम्मीद जताई है कि 15 अगस्त तक कोरोना की वैक्सीन आम लोगों के लिए उपलब्ध करा दी जाएगी। मेडिकल विशेषज्ञ इस घोषणा पर हैरानी जता रहे हैं।
मात्र सवा माह के क्लीनिकल ट्रायल में सफल नतीजे आने के दावे बहुत ही खतरनाक हैं। वैक्सीन या दवाओं के क्लीनिकल ट्रायल की एक पूरी प्रक्रिया होती है। हमसे पहले जिन देशों और कम्पनियों ने इस दिशा में काफी काम कर लिया है, ऐसे दावे वे भी नहीं कर रहे हैं।
कोरोना को ठीक करने में वैक्सीन का सफल होना, उसके साइड इफेक्ट का मानव शरीर में पता लगाना, उस साइड इफेक्ट का सही उपचार ढूंढना, यह कई चरण के प्रयोगों के बाद हो पाता है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर ज्यादा तेजी भी की जाए तो इस पूरी प्रक्रिया के बाद नतीजे आने में कम से कम डेढ़ साल तो लगता ही है।
असल में इस देश में अब सारे निर्णय सम्बंधित क्षेत्र के विशेषज्ञों की राय से नहीं, पीएमओ के आदेश पर होते हैं। दुनिया में अपना नाम चमकाने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सनक इस देश और उसके नागरिकों के जीवन से खिलवाड़ कर रही है।
अब कोरोना के इलाज के नाम पर बाबा रामदेव के पतंजलि की कोरोनिल और आईसीएमआर व भारत बायोटेक के वैक्सीन को बिना पूरी क्रिनिकल ट्रायल की प्रक्रिया अपनाए बाजार में उतार कर देश के लोगों के जीवन से खिलवाड़ किया जा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन को इस पर तत्काल हस्तक्षेप करना चाहिए।