बुधवार, 8 जुलाई 2020

भगतदा और त्रिवेन्द्र सिंह सिंह रावत के बीच उभरे मतभेद!

समाचारः समीक्षा
ना काहू से दोस्ती ना काहू से बैर, सच को सच कहने की हिम्मत
भगतदा और त्रिवेन्द्र सिंह सिंह रावत के बीच उभरे मतभेद!



जगमोहन सेठी 
देहरादून। आप यकीन करें या न करें भाजपा के अब तक के मुख्यमंत्रियांे के साथ जुड़े हुए उनके ओएसडी ने उनके नाम को कैश किया है। ओएसडी ने न तो मुख्यमंत्री के इज्जत और मान सम्मान की परवाह की और न ही उनके राजनीतिक हैसियत और न ही उनके पद की गरिमा की। अपने ओएसडी की करतूतों को लेकर सबसे ज्यादा बदनाम भाजपा के ईमानदार और सरल स्वभावी संघ प्रचारक रहे मुख्यमंत्री कहलाने वाले बीसी खण्डूरी के ओएसडी पीके सारंगी के भ्रष्ठ कारनामों के कारण महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी बीसी खण्डूरी भ्रष्टाचार की चर्चाओं में रहे तो वही मीडिया के कुछ लोगों ने सारंगी को अपने साथ प्रलोभन की राजनीति खेली और सारंगी ने उनको विज्ञापनों के रूप में डट कर माल खटाया। यह समाचार पत्र न तो अधिक पढ़े जाते हैं और न ही कहीं देखने को मिलते हैं, वाहवाही लूटने के लिए बीस-पच्चीस प्रतियां मुख्यमंत्री आवास और सचिवालय में पहुंचा दी जाती है। याद पड़ता है कि सारंगी के खासमखास विश्वास पात्र उप-पुलिस अधीक्षक के बेटे विश्वजीत सिंह नेगी खुलकर कहते थे, चलो मैं आपकी सारंगी जी से मुलाकात कराता हूं, मेरी कमिशन का ध्यान रखते हुए आपको पांच लाख के विज्ञापन दिलाउंगा। इस काम के लिए सारंगी और विश्वजीत सिंह अकसर पैसेफिक होटल में प्रलोभी पत्रकारों की मुलाकात कराते और सौदेबाजी करते थे। यही कारण है कि भाजपा के कुछ नेताओं और उनके विरोधी दल कांग्रेस के नेताओं ने अपने तौर तरीकों से बीसी खण्डूरी की ईमानदारी छवि को बदनाम किया। यही नहीं बनिया व्यापारियों के एक गुट ने ओएसडी और उनके कर्मचारियों को अपने इशारे पर नचाकर करोड़ो रूपये बनाये है। यह मुख्यमंत्री बीसी खण्डूरी का दुर्भाग्य था कि जन-आक्रोश को मुख्यमंत्री के खिलाफ जहां भाजपा ने हवा दी तो वहीं सारंगी की हरकतों को लेकर कांग्रेस ने जन आन्दोलन किया और कांग्रेसियों ने विधानसभा के बाहर सांरगी यंत्र लेकर भी प्रदर्शन किया। मजे की बात है कि सारंगी को लेकर भाजपा के उभरते नेतृत्व रमेश चन्द्र पोखरियाल को मौका मिला कि अपनी कूटनीतिक खेल में केन्द्रीय नेताओं को उनके खिलाफ उकसाकर उनके कहने पर खण्डरी से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया और खुद मंख्यमंत्री बन गये। रमेश चन्द्र पोखरियाल निशंक के मुख्यमंत्री बनने के बाद उनके खासमखास हमराज हमराही द्विवेदी ओएसडी बन गये और फिर गजब खेल द्विवेदी ने जिस तौर तरीके से लीक से हटकर मुख्यमंत्री की तर्ज पर माल बनाया, खाया-खिलाया, नतीजतन अधिक दिन तक वह भी नहीं टिक पाये और मुख्यमंत्री को ले डूबे। 



गौरतलब है कि वर्तमान मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत जो स्वभाव से सरल स्वभावी, संवेदनशील और दूसरों के सुख-दुख में पहुंचने वाले है। भी अपने ओएसडी धीरेन्द्र सिंह पंवार की हरकतों से जिन्होंने मुख्यमंत्री को विवादों में घसीट दिया, नहीं बच पाये। आज मुख्यमंत्री की सार्वजनिक रूप से धीरेन्द्र पंवार ने वो हालत कर दी है जो कभी हरबंश कपूर के ओएसडी रहते हुए हरबंस कपूर की की थी। उन पर लाखों रूपये बनाने का आरोप अब खुल्लम-खुल्ला लग रहा है जो आमतौर पर संघ परिवार के कार्यकर्ता पर नही लगा करता। अब तक जितने भी विवाद उठे है चाहे सौदेबाजी का हो, जमीनों की लेन-देन को हो या सिंचाई विभाग में ठेकेदारी का मुद्दा हो या फिर देवभूमि में सड़को के ठेकेदारों की दलाली हो, में मुख्यमंत्री के ओएसडी धीरेन्द्र सिंह पंवार की विवादित भूमिका रही है, जो जांच का विषय है। हरिद्वार बाईपास पर महिन्द्रा शोरूम के पीछे बने खूबसूरत आलीशान मकान के बाहर काम करवाने वालों के वाहनों की कतार लगी रहती है। इस समाचार के छपने के बाद सम्भवतः भीड़-भाड़ कम हो जाये तो अलग बात है, लेकिन ओएसडी की काली करतूतों ने मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार से सम्बन्धित विवादों में लाकर खड़ा कर दिया है। यह कहने में जरा भी संकोच नहीं है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत एक ईमानदार, नरम दिल, और लोगों के जल्द ही विश्वास में आने व्यक्ति है, अपने ओएसडी धीरेन्द्र सिंह पंवार को अपनी ही तरह एक ईमानदार व्यक्ति समझकर साथ जोड़े हुए हैं जिनके बारे में अब चर्चा है कि खुफिया रिपोर्ट में धीरेन्द्र सिंह पंवार के बारे में बहुत कुछ टीका टिप्पणी की गयी है, ऐसा यकीन नही होता कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह के संज्ञान में न हो। सच तो यह है कि मुख्यमंत्री आवास में अन्दरूनी जानकारी रखने वाले लोगों का कहना है कि इस वक्त धीरेन्द्र सिंह पंवार की हरकतों को लेकर मुख्यमंत्री आवास एक दलाली का अड्डा बन गया है। हालांकि हम इस बात पर यकीन नही करते है क्योंकि ऐसा कभी हो नही सकता कि राष्ट्रीय स्वंय सेवक के प्रान्तीय कार्यालय में इसकी जानकारी न हो। यह संघ परिवार की एक व्यवस्था होती योग एवं है जब भाजपा सत्ता में आती है तो वह अपने स्वंय सेवकों को मंत्रियों के साथ ओएसडी और सहायकों के रूप में तैनाते करवाते है। ताकि उनकी रोटी रोजी, खर्चा पानी चलता रहे और मंत्रियों के काम-काज पर भी निगरानी रहे। जो लोग संघ की इस व्यवस्था को पहचानते और समझते है उनको ये यकीन नही होता कि त्रिवेन्द्र सिंह जैसे ईमानदार आदमी के साथ हेराफेरी करने वाले ओएसडी के बारे में तिलक रोड़ स्थित संघ के प्रान्तीय कार्यालय को जानकारी न हो। यह कहने में संकोच नहीं है कि धीरेन्द्र सिंह पंवार के कारण ही उनकी इज्जत पर आंच आ रही है।



सीएम आवास से छन कर आ रही खबरों पर यकीन करें तो यकीनन कहा जा सकता है कि इस वक्त धीरेन्द्र सिंह पंवार विभिन्न विभागों से जुड़े कर्मचारियों और अधिकारियों के बीच अपने दबदबे के कारण कि वह मुख्यमंत्री का खास और विश्वासपात्र है। कोई भी फैसला चाहे वह राजनीतिक हो या फिर प्रशासनिक, वह अपने ओएसडी धीरेन्द्र सिंह पंवार की राय के नहीं लेते शायद इसलिए मुख्यमंत्री को धीरेन्द्र सिहं पंवार के हाथों की कठपुतली के नाम से सम्बोधित करने लगे। कहने में संकोच नहीं है कि अंदरूनी जानकारी के आधार पर मुख्यमंत्री एकांत में प्रदेश संघ मुख्यालय जाकर प्रदेश प्रभारी से नीतिगत मुद्दों पर विचार विमर्श करने के लिए मिलते जुलते रहते हैं। इस परम्परा का खुद त्रिवेन्द्र सिंह रावत जानते समझते हैं क्योंकि वह खुद भी संघ प्रचारक रहे हैं। यह एक कड़वा सच है कि सचिवालय में छोटे-बड़े अधिकारी आपस में बैठकर त्रिवेन्द्र सिंह रावत और उनके ओएसडी धीरेन्द्र सिंह पंवार के रिश्तों पर कोई अच्छी चर्चा नहीं करते जिसमें धीरेन्द्र सिंह पंवार की तारीफ की जा सके। यही नहीं पूर्व मुख्यमंत्री भगत सिंह कोशियारी जो आजकल महाराष्ट्र सूबे राज्यपाल हैं, उनके और त्रिवेन्द्र सिंह रावत के बीच अब अच्छे रिश्तें नहीं रहे। एक जमाना था जब त्रिवेन्द्र सिंह भगतदा के ईद-गिर्द अपने समर्थकों के साथ परिक्रमा किया करते थे। गहरायी से इन दोनों नेताओं के रिश्तों की समीक्षा की जाये तो यह कहा जा सकता है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत के इर्द गिर्द मंडराने वाले गैर सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों ने इन दोनों नेताओं की दोस्ती में उलजलूल बातें करके भिड़वाने की कोशिश की। नतीजतन भगतदा ने राज्यपाल से पहले ही मुख्यमंत्री आवास में आना जाना बन्द कर दिया था और अपना अधिक समय दिल्ली में ही बिताया करते। यह आम चर्चा रहती है कि त्रिवेन्द्र सिंह रावत केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खास, मेहरबान चहेतों में हैं। उनका वरदहस्त त्रिवेन्द्र सिंह रावत पर है। जिस तौर तरीके से मुख्यमंत्री और इन बड़े नेताओं की राजनीति में धीरेन्द्र पंवार की बकवासबाजी ने पार्टी के अन्दर जो ठाकुर और ब्राहम्ण का मुद्दा खड़ा कर दिया है वह बड़ा ही शर्मनाक है। जबकि संघ परिवार ऐसी बेतुकी चर्चाओं में विश्वास नहीं करता। संघ परिवार की अपनी ही एक अलग संस्कृति कार्य करने की पद्धति है।
कार्य करने की पद्धति है। गौरतलब है कि धीरेन्द्र सिंह पंवार पर कुछ खुफिया एजेंसियों को गहरी निगरानी है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री आवास में भी धीरेन्द्र सिंह पंवार पर एक केन्द्रीय खुफिया एजेन्सी के अधिकारी ने जिस तौर तरीके से जानकारियां जुटाई है उन जानकारियों को अपने दिल्ली मुख्यालय भेद दिया है। कहा जाता है कि इस गोपनीय रिपोर्ट में धीरेन्द्र सिंह पंवार की अचूक चल-अचल बैनामी सम्पत्ति के बारे में भी पुख्ता सबूतों के साथ भेजी गयी है। वहीं इस अधिकारी ने अभिसूचना ईकाई के दो अधिकारियों को भी अपनी रिपोर्ट के लपेटे में लिया है। आने वाला वक्त भले ही मुख्यमंत्री के लिये परेशानी भरा न हो लेकिन यह तय लगता है कि देर सबेर धीरेन्द्र सिंह पंवार और उसके साथी किसी भी समय परेशानियों में पड़ सकते है।
शायद इसीलिए अन्दर से छनकर आ रही खबरों में कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने मन बना लिया है कि यदि धीरेन्द्र सिंह पंवार को लेकर जन आक्रोश और पार्टी के अन्दर सुगबुगाहट होती है तो यकीनी तौर पर इसका चल चलाव तय है। त्रिवेन्द्र सिंह रावत और धीरेन्द्र सिंह पंवार के रिश्तों को लेकर विधायकों में भी सुगबुगाहट है। कितना अच्छा हो यदि त्रिवेन्द्र सिंह रावत अपने लाडले दुलारे ओएसडी के बारे में सोच विचारकर कोई फैसला लें, नहीं तो यकीनी तौर पर कहा जा सकता है कि 2022 में होने वाले चुनाव में भारी नाव में भारी परेशानियों का सामना केन्द्रीय और प्रदेश के नेताओं को करना पड़ सकता है। एक दर्जन से ज्यादा भाजपा विधायक नाराज है और खुलकर बातचीत में मुख्यमंत्री को कोसते नहीं थकते, यह अच्छे संकेत नहीं है। यह भी एक कड़वा सच है कि मुख्यमंत्री विरोधी अकसर जब दिल्ली जाते है तो वहां पर उनके कट्टर विरोधी नेता केन्द्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक के दरबार में बैठकर जो साजिशें रचते हैं और जिनको निशंक अपने तौर तरीके से अपने पुराने राजनीतिक विरोधी त्रिवेन्द्र सिंह रावत के खिलाफ उकसाने की बातें सुनाई देती है, उन्हें किसी भी तौर तरीके से उचित नहीं ठहराया जा सकता। गौरतलब है कि निशंक के मुद्दे को लेकर उनको राजनीति से निपटने के लिये अपने ओएसडी खुलबे और मनीष वर्मा को लगाया गया है। मनीष वर्मा निशंक के पुराने कट्टर विरोधी है। दोनो में छत्तीस का आंकड़ा चल रहा है। जल्द ही देर सबेर इन दोनो के बारे में कई सनसनीखेज खुलासे हो सकते है।


- सम्पर्क सूत्र:  jagmohan_journalist@yahoo.com, jagmohanblitz@gmail.com 


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