परमाणु बम या किसी युद्व से नहीं जीतेगा बल्कि बायलॉजीकल वारफेयर करेगा
सुपर पावर बनने की चाह में बना चीन मानवता का दुश्मन!
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। रामायण काल में जिक्र मिलता है कि अहिरावण ने भगवान राम की सेना को मुर्च्छित कर राम-लक्ष्मण को अगवा कर लिया था। और उनको अपने पाताल लोक में ले गया था। जहां बाद में हनुमान ने पहुंचकर उसका संहार किया। संभवतया उस जमाने में वह युद्व कुछ ऐसा ही रहा होगा जैसा कि आज के दौर में प्रचलन में है। फौजी शब्दावली में इसे एनबीसी वारफेयर कहा जाता है।
यानि न्यूक्लिीयर, बायलॉजिकल, कैमिकल वारफेयर। आध्ुनिक युद्व की इस विधा में सबसे सस्ती युद्व प्रणाली बायलॉजिकल वारफेयर ही है। हालांकि जनेवा संधि के मुताबिक यह तीनों युद्व प्रणाली प्रतिबंधित है क्योंकि यह मानवता के विरूद्व घोर अपराध की श्रेणी में शामिल है। लेकिन चीन की विस्तारवादी नीति के आगे मानवता कोई बड़ी चीज नह) ीं है। वह अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है।
करीब करीब 2003-2004 से ही चीन अपने आप को दुनिया का सुपर पावर साबित करने के लिए बायलॉजिकल वारफेयर के वैपन तैयार कर रहा था। इसी की परिणीति है कोरोना वायरस (कोविड-19) और ऐसे अन्य वायरस जो यदाकदा चीन से बाहर निकलते जा रहे है। ऐसा लगता है कि उसने दुनिया के विभिन्न देशों से तकनीकी चुरायी और हितों की पूर्ति के लिए उसका प्रयोग करने लगा लेकिन नकल के लिए अक्ल की जरूरत पड़ती है। वह न होने की वजह से उसके वैपन बेकाबू हो गए और उसके ही नागरिकों की जानें लेने लगे। जैसा कि कोविड-19 के मामले में देखने को मिला।
हालांकि कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि उसने अपने ही नागरिकों पर उक्त प्रयोग किए हों। कारण चाहे जो हो परन्तु इतना तो तय है कि चीन दुनिया से टकराने के लिए न परमाणु बम का इस्तेमाल करेगा न किसी युद्व के लिए तैयार है। वह तो मेड इन चाइना हथियार का इस्तेमाल करेगा। यानि बायलॉजिकल वारफेयर करेगा जिसमें उसे एक हद तक महारथ हासिल हो गई है। जैसा कि उसे लगता है।
चीन की इस चुनौती से निपटने के लिए अभी दुनिया को कई सारे वैक्सीन की जरूरत होगी। विभिन्न रोगों के लिए अलग अलग वैक्सीनें। लेकिन इसकी खोज में समय लगता है। कोविड-19 के वैक्सीन के लिए भी समय लग रहा है। अभी तो चीन के पिटारे से कोरोना वायरस ही सुनियोजित तरीके से बाहर निकला है। आगे चलकर इससे भी खतरनाक वायरस उसके तरकश में बाकी हो सकते है। चीन की मंशा दुनिया के लिए और मानवता के लिए घातक साबित हो सकते है इसलिए उस पर अंकुश लगाये जाने की सख्त जरूरत है।
यह तभी हो सकता है जबकि चीन का हस्र भी सोवियत यूनियन की तरह हो जाये और वहां कई देशों का उदय हो। बिना चीन के विभाजन के चीन के खतरे से निपटना मुश्किल होगा। हालांकि चीन जितना बलशाली दिखता है उतना है नहीं। वह तो कुंभकरण की तरह है जो एक बार ढ़ह गया तो उसका दोबारा खड़ा होना मुमकिन नहीं होता। तो भी उसको हल्के में लेने की बजाय दुनिया को चीन से सर्तक रहने और उसे अंकुश में रखने की सख्त जरूरत है।