गजल
- बलजीत सिंह बेनाम
वो अमीरों के ही गीत गाते रहे
मुफलिसों को निशाना बनाते रहे
देश के वास्ते कुछ किया ही नहीं
नोट खाते रहे सर हिलाते रहे
खौफ से हम जहां के रहे बेखबर
बारिशों में पतंगें उड़ाते रहे
घर की शालीनता किसने समझी यहां
दर्मियां रोज फितने उठाते रहे
शायरी जो है जानते थे मगर
लोग पीते रहे हम पिलाते रहे
सम्प्रतिः संगीत अध्यापक
उपलब्धियां- विविध मुशायरों व सभा संगोष्ठियों में काव्य पाठ, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित। विभिन्न मंचों द्वारा सम्मानित। आकाशवाणी हिसार और रोहतक से काव्य पाठ।