उत्तराखंड़ में अब तक का इतिहास, राजनीतिक दलों में लोकल का फोकल नही
भाजपा का लहर से बेड़ा पार, कांग्रेस नेतृत्व से लाचार!
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। उत्तराखंड़ में अब तक का इतिहास रहा है कि यहां की जनता खासकर राजनीतिक दलों के मामले में लोकल पर फोकल नहीं किया करती है। इसीलिए राज्य गठन के बाद से बारी बारी यहां पर कांग्रेस और भाजपा सत्ता पर काबिज रही है। जबकि स्थानीय राजनीतिक दलों को कभी उभरने का अवसर नहीं मिला या जनता ने मौका ही नहीं दिया।
इसके अलावा खुद स्थानीय दलों ने भी कभी स्वयं को साबित नहीं किया। बल्कि जब भी कुछ करने का मौका सामने आया तो उन्होंने खुद अपनी भद पिटवायी। यहीं कारण रहा कि प्रदेश की एकमात्र स्थानीय राजनीतिक दल उत्तराखड़ क्रांति दल लगातार रसातल की ओर जाता रहा। जबकि अन्य राजनीतिक दलों में उतार चढ़ाव आता रहा।
हालांकि प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा एक ही नाव पर सवार दिखते है। खासकर नेतृत्व के मामले में। तो भी भाजपा के पास लहर का ब्रह्मास्त्र है। कांग्रेस अपने नेतृत्व से लाचार है। बिना लहर उसे भाजपा के कहर से बचा पाना कांग्रेस के आलाकमान और उसके स्थानीय क्षत्रपों के बूते में नहीं है।
यह सच है कि पिछले कुछ चुनावों में कांग्रेस ने ईमानदारी से भागीदारी नहीं की। उसने या तो जरूरत से ज्यादा आत्मविश्वास दिखाया या फिर पूरी मेहनत करने से गुरेज किया। अब यह उसकी आदत में शुमार सा हो गया है। जबकि भाजपा में बिना किसी मजबूत क्षत्रप के लहर का जोश है। भाजपाई आलाकमान जिस भी पत्थर पर हाथ धर देता है, वहीं पारस पत्थर बना जाता है।
राजनीतिक विश्लेषक अनुमान लगाते रह जाते है और भाजपा दोबारा रिकार्ड गढ़ जाती है। लेकिन बहुतों का मानना है कि भाजपा प्रदेश में अपनी मेहनत से कम कांग्रेस के नकारेपन से ज्यादा जीत दर्ज करने में सफल होती है। अब वर्तमान की परिस्थितियो को ही देख लीजिये कि चर्चा रहती है कि पूर्व कांग्रेसी सीएम एवं स्थानीय क्षत्रप पार्टी का बेड़ा गर्क कर देंगे। लेकिन आज भी कांग्रेस का आलाकमान उन्हीं पर दांव लगाने को तैयार बैठा है। ऐसे में भाजपा को एडवांटेज नहीं मिलेगा तो क्या होगा?
उत्तराखंड़ फतह के लिए भाजपा आलाकमान के पास ठोस योजना है जबकि कांग्रेस के पास ऐसी सोच का नितांत अभाव परिलाक्षित होता है। इस कारण कांग्रेस स्थानीय क्षत्रपों के सहारे जीत के सपने देख रही है। जबकि भाजपा को लोकल में फोकल के विपरीत अपने आप पर भरोसा है।
दरअसल भाजपा आलाकमान ने प्रदेश की सत्ता में काबिज रहने के लिए डिजाइन बना रखा है। इसलिए उसके लिए यह अहम नहीं की प्रदेश में किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ा जायेगा। यह विश्वास भाजपा के पास इसलिए भी है कि उसे ज्ञात है कि उसके सामने प्रतिद्वंदी है ही नहीं। उसने तो जैसे सारे बैल नाथ कर रख लिए है। कोई चूं तक नहीं करने पाता। तभी तो असंतोष सुलग रहा है परन्तु धुंआ भी उठने की हिम्मत नहीं कर रहा है।
भले ही उपलब्धि न हो लेकिन उसकी सरकार पूरे पांच साल कुर्सी पर बने रहने का रिकार्ड बना सकती है। क्योंकि भाजपा में बिना आलाकमान के पत्ता भी नहीं हिलता। जबकि प्रदेश की जनता ने देखा था कि कांग्रेस आलाकमान की संवेदनहीनता ने कांग्रेस की सरकार को हिला दिया था।