एक रूपये के, दो चिथड़े
हास्य: एक रुपयेे के दो चिथडेेंं
चेतन सिंह खड़का
एक रूपये के, दो चिथड़े
गलती से मेरे, गले पड़े
हमें बड़ा, बेहाल किया जी
जीना भी, मुहाल किया जी
ठगे गये हम, खड़े-खड़े
एक रूपये के, दो चिथडे
एक नोट का, दो-दो बनाया
अपनी ही जेब ने, चुना लगाया
जाने कैसे? कब आ गया?
मरणासन्न था, मोक्ष पा गया
लेकिन हम तो, हुए वैरागी
क्या करना है? नींदें भागी
सोच सोच के, समझ लिया जी
चल जाये जतन ये, बहुत किया जी
अब काम थोड़े हो, पड़े-पड़े
एक रूपये के, दो चिथडे
एक दपफा जैसे-तैसे, खोटा सिक्का चलाया
तूने ही दिया, ऐसा बनिये को समझाया
हर बार मगर, ऐसा नही होता
पफटा नोट तो, अंध नही लेता
शायद अपनी, मति मारी थी
एक गलती यह, बड़ी भारी थी
अब क्या बतायें, कैसे किया जी
आपफत का सामना, कैसे किया जी
बाजार में नोट सड़े-सड़े
एक रूपये के, दो चिथडे
मन बोला-कैसे नोट चले अब?
कुछ भूल सुधर का जतन करो
क्योंकि उल्टे सीध्े सभी रास्ते
सपफल यदि है, प्रयत्न करो
संपत्ति है यह, देश की मेरी
इसे पफैंके मेरे, दुश्मन-बैरी
आवेग में आके, नाम लिया जी
देशभक्ति का, काम किया जी
विचार हमारे बड़े-बड़े
एक रूपये के, दो चिथडे
हां माना, ये छोटी रकम है
लेकिन कीमत क्या रूपये से कम है?
चलता अगर, बड़ा काम करता
पफटा न होता तो, क्या डर था
अब किसी को दिया, ये न जाये
कैसे चलाऊँ, अब आप ही बतायें
इसे दक्षिणा में, नही लिया जी
मंगतो ने भी, लौटा दिया जी
अब इसका हम क्या करें?
एक रूपये के, दो चिथडे
जब कोई टोटका, काम न आया
ईलाज से कोई, आराम न आया
भल मानस बन, मंदिर गया तब
बड़ी शान से, भेंट चढ़ाया
बड़े पुण्य का, काम किया जी
हमने रूपया, दान किया जी
जो पंडित जी के गले पड़े
एक रूपये के, दो चिथडे
दारू के ठेके में, ले गये
पेटोªल पम्प की छानी खाक
बैंकों में भी नही मिला हां
इस मासूम को इंसापफ
खटकर्म कैसा न किया जी
दान-पुण्य का लाभ लिया जी
भगवान तो सबके पाप हरे!
एक रूपये के, दो चिथडे