गुरुवार, 7 जनवरी 2021

कटेंगे ब्रिटिश काल के 2500 पेड़ और जंगल के हिस्से

 दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे के चौड़ीकरण को एनबीडब्ल्यूएल की स्वीकृति



कटेंगे ब्रिटिश काल के 2500 पेड़ और जंगल के हिस्से

एजेंसी

देहरादून। नैशनल बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ (एनबीडब्ल्यूएल) ने गणेशपुर-देहरादून रोड (एनएच72ए) को फाइनल क्लिअरेंस दे दिया है। दिल्ली-देहरादून एक्सप्रेस वे के विस्तार 19.78 किलोमीटर लंबे इस प्रॉजेक्ट के लिए वन्यजीव क्लिअरेंस की जरूरत है। यह रोड राजाजी टाइगर रिजर्व और शिवालिक एलिफेंट रिजर्व से होकर गुजरेगी।

उत्तराखंड में इस एक्सप्रेस वे का 3.6 किलोमीटर लंबा रास्ता गुजरेगा। लेकिन ब्रिटिश काल के 2500 से अधिक साल के पेड़ और रिजर्व फॉरेस्ट एरिया की 10 हेक्टेअर जमीन का नुकसान होगा। वहीं उत्तर प्रदेश में एक्सप्रेस वे का 16 किलोमीटर का हिस्सा और जंगल की 47 हेक्टेअर से अधिक जमीन जाएगी, जो कि शिवालिक रिजर्व का हिस्सा है। एक्सप्रेस वे के लिए उठाए जा रहे इस कदम का प्रकृति-प्रेमी विरोध भी कर रहे हैं क्योंकि यह पूरा इलाका बाघ, चीता, पक्षियों की 300 प्रजातियों सहित कई जीव-जंतुओं का घर है।

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी चारधाम ऑल वेदर रोड प्रॉजेक्ट के लिए पेड़ों को काटे जाने के खिलाफ याचिका डालने वाली एनजीओ सिटिजन्स फॉर ग्रीन दून एनजीओ के सेक्रेटरी हिमांशु अरोड़ा ने कहा कि अभी देहरादून बॉर्डर पर मोहंड से असारोड़ी तक आने में 28 मिनट का समय लगता है। एक्सप्रेस वे बन जाने पर 18 मिनट लगेगा। केवल 10 से 12 मिनट तक समय कम करने के लिए सदियों पुराने 2500 पेड़ों को क्यों काटा जाना चाहिए?

वैज्ञानिकों का भी मानना है कि शिवालिक रेंज से पेड़ों को हटाए जाने से पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर पड़ेगा। देहरादून स्थित इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ सॉइल एंड वॉटर कन्जर्वेशन (आईआईएसडब्ल्यूसी) के प्रमुख वैज्ञानिक जेएम तोमर ने कहा कि शिवालिक पहाड़ियों से पेड़ों के कटने से पर्यावरण पर प्रतिकूल असर पड़ेगा और ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ेगी। साल के पेड़ फिर से बढ़ने में काफी लंबा वक्त लेते हैं। इसकी वजह से कई सारे जीवों पर संकट आ जाएगा।

उत्तराखंड वन विभाग के चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डेन जेएस सुहाग ने कहा कि सड़क के चौड़ीकरण के लिए वाइल्ड इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया के विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार मानकों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है। जैसे कि सड़क के दोनों तरफ बैरियर लगाना, बांस के पेड़ लगाना। इंसान और वन्यजीव के बीच टकराव के मद्देनजर अगले 2-3 सालों तक मॉनिटरिंग की जाएगी।


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