जिनको इसकी लत लगी वो चाहकर भी मोबाइल या सोशल मीडिया से अलग नहीं हो पा रहे
डिजिटल उपवास
प0नि0डेस्क
देहरादून। कोरोना काल में इंटरनेट का इस्तेमाल तेजी से बढ़ा है। लोगों को सोशल मीडिया की ऐसी लत लगी है कि फेसबुक, इंस्टाग्राम पर लाइक और कमेंट की बढ़ती संख्या से उन्हें खुशी मिलती है। जबकि घटते लाइक से लोग तनाव ग्रस्त हो रहे हैं। लाकडाउन में जहां लोग घरों में बंद रहे और घर पर रहकर भी बाहरी दुनिया से कनेक्ट रहे, इसलिए उन्हंे फिजीकल दूरी का अहसास नहीं हुआ। लोग दिन भर मोबाइल के व्हाट्सऐप, फेसबुक, ट्वीटर, इंस्टाग्राम के जरिए दुनिया से कनेक्टेड रहे और अपने विचार साझा करते रहे और दोस्तों से बतियाते रहे।
लेकिन क्या कभी गौर किया है कि यदि इसी तरह का लाकडाउन आज से बीस साल पहले लगा होता तो दिन कैसे गुजरता और लोगों से कैसे कनेक्ट रहते। इन दिनों क्या बड़े क्या बच्चे सभी के हाथ में मोबाइल है और कोई मैसेज या पफोन आए या ना आए बार-बार थोड़ी-थोड़ी देर में मोबाइल चेक करते रहते हैं। उन्हें इसकी लत लग चुकी है। वो चाहकर भी मोबाइल या सोशल मीडिया से खुद को अलग नहीं कर पा रहे हैं। इससे उनकी सेहत पर भी बुरा असर पड़ने लगा है। जिससे बचने के लिए आजकल डिजिटल उपवास किया जा रहा है।
अपनी इच्छा शक्ति पर काबू करना एक तरह से मानसिक और आध्यात्मिक क्रांति है। जैसे लड़कियों में आनलाइन शापिंग की लत होती है, वहीं लड़कों में आनलाइन गेमिंग का चस्का सबसे ज्यादा होता है, जिसे छुड़वाने के लिए इन दिनों डिजिटल उपवास का ट्रेड चल पड़ा है।
डिजिटल उपवास में सबसे पहले अपने फोन, लैपटाप जैसी चीजों से दूरी बनाने की जरूरत होती है। ताकि वर्चुअल दुनिया की जगह असली दुनिया का अनुभव ले सकें। लोग इस उपवास के जरिए मोबाइल की लत को छुड़वाने की कोशिश कर रहे हैं। इसकी शुरुआत से पहले लोग अपने दोस्तों, आफिस और घर पर पहले ही मैसेज कर देते हैं कि वे कितनी देर तक फोन पर उपलब्ध नहीं रहेंगे। इसकी शुरुआत कुछ घंटों से की जा सकती है, जिसके बाद उसे बढ़ाया जा सकता है। अगर अपने जान पहचान वालों को पहले ही मैसेज कर देंगे तो संपर्क नहीं होने की स्थिति में कोई चिंतित नहीं होगा।
डिजिटल उपवास के दौरान लोग अपने लिए वक्त निकाल रहे हैं। परिवार के साथ बिना किसी डिस्टर्बेंस के बातचीत कर पा रहे हैं। अपनी पसंदीदा जगह पर, अपनी पसंद का कोई काम कर रहे हैं। जब डिजिटल उपवास पर होते हैं तो वर्चुअल दुनिया का कोई असर नहीं होता। किसी के मैसेज का रिप्लाय करने या किसी फोटो को बेवजह लाइक करने या कमेंट करने का दबाव नहीं होता।
डिजिटल उपवास से मोबाइल और सोशल मीडिया पर रोजना मिलने वाले सैकड़ों नोटिफिकेशन्स से मुक्ति मिलती है। सोशल मीडिया से कुछ घंटों की दूरी मन, शरीर और यहां तक की आत्मा को भी तरोताजा करने की शक्ति रखती है।
अगर अपनी इंटरनेट की लत छुड़ा चाहते हैं तो एक दिन के लिए अपने फोन से दूरी बना लें। अपने स्क्रीन प्रफी संडे की शुरुआत करें। इंटरनेट फास्टिंग के दिन खुद से वादा करें कि आप छुट्टी वाले दिन फोन का इस्तेमाल नहीं करेंगे। संभवतः यह डिजिटल उपवास पहले तो परेशान करे, लेकिन धीरे-धीरे इसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगेंगे। कई बार महिलाओं की तरपफ से भी समस्याएं आती हैं। इस डिजिटल उपवास से न सिर्फ उनकी आदत में बदलाव आ रहा है बल्कि उनके शरीर का वजन भी कम हो रहा है।
आप मोबाइल लेकर कई घंटों एक ही स्थान पर नहीं बैठते, मोबाइल से दूर होते हैं तो आप फिजिकल वर्क करते हैं जिससे कैलोरी बर्न होता है और एक समय बाद वेट भी कम होने लगता है। डिजिटल उपवास कोई रेग्युलर फास्टिंग नहीं होती जिसे रोजाना कर रहे हो। यह अपनी सुविधा और काम के हिसाब से घंटे या दिन तय करके कर सकते हैं। बस इसमें संयम रखने की आवश्यकता होती है। डिजिटल उपवास अपने मानसिक कंफर्ट को ध्यान में रखकर ही करना चाहिए।
इंटरनेट के बिना मार्डन वर्ल्ड की कल्पना करना असंभव है। मनोवैज्ञानिक डिजिटल उपवास की सलाह दे रहे हैं। लोग इस सलाह को मान भी रहे हैं। लोग मोबाइल और इंटरनेट से दूर खुद से मिलकर इस डिजिटल उपवास को अब इन्जवाय भी करने लगे हैं।
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