भिटौली दिलाती हैं बहु-बेटियों को मायके की याद
संवाददाता
देहरादून। देवभूमि में अनोखी रीति रिवाज व परंपराएं देखने को मिलती है। चौत्रा मास आते ही कई पर्व व त्योहार आते हैं। फूलदेई पर्व पर घरों के देहलीज पर रंग-बिरंगे फूलों को डाला जाता है। ब्याही बेटियों को इस महीने का खासा इंतजार रहता हैं कि उनके माता-पिता व भाई भिटौली लेकर आएंगे।
विलुप्त होते भिटौली परम्परा पर वृक्षमित्र डा0 त्रिलोक चंद्र सोनी कहते हैं कि समय परिवर्तन ने भिटौली परंपरा को धीरे-धीरे समाप्त कर दिया है। पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों में जब आवागमन के साधन नही हुआ करते थे, बेटी अपने ससुराल से सालभर में मायके वाले से मिलने नहीं आ पाती थीं। उस समय खेती बाड़ी, पशुपालन जैसे कामांे से पफुर्सत भी नही मिलती थी।
ऐसे में कैसे अपनी लाडली ब्याही बेटी से मिला जाये? तब बसंत आगमन पर फूलदेई संक्रान्त पर बेटी से भेंट करने की परंपरा बनाई गई, इसी को भिटौली कहते हैं। भिटौली का अर्थ भेंट व मिलने से है। उस समय भिटौली देने के लिए मीलांे चलकर ब्याही बेटी को पूड़ी-पकोड़े, कलेऊ, दूध से बने खास पकवान व धोती-साड़ी, पहनने के वस्त्र उपहार में देते थे।ब्याही बेटी को चौत्र मास का बेसब्री से इंतजार रहता था।
कब आएंगे मेरे मैत वाले मुझे भिटौली लेकर। भिटौली की परम्परा पूरे चौत्र मास में चलती हैं। मायके पक्ष के सदस्यों को जब भी चौत के महीने में समय मिले, वे उस समय भिटौली लेकर बेटी के ससुराल चले जाते है। बेटी अपने मायके से आये सदस्य को देखकर बहुत खुश होती हैं जो पूड़ी, पकोड़े, कलेऊ पकवान मायके से आये होते है। उन्हें आस-पड़ोस में भी बांटती हैं और अपने मायके से आये धोती-साड़ी व वस्त्रों को अपने पड़ोसियों को दिखाती हैं कि मुझे मेरे मायके वाले ये भिटौली में लाए हैं।
यही नही बेटी के मायके वालों का इंतजार आस-पड़ोस वालों को भी रहता हैं। हर घर की बेटी मायके से आये पकवानों को अपने पड़ोसियों को बांटती हैं लेकिन धीरे-धीरे यह परंपरा खत्म होती जा रही है और पैसे भेजने में सिमटकर रह गई हैं। हमें अपने बुजुर्गों की यह परंपरा जीवित रखनी चाहिए। अपनी बेटियों को ससुराल में भिटौली भेजनी चाहिए ताकि हमारे आने वाली पीढ़ी इस परंपरा को देखकर इसे जीवित रख सके।
डा0 सोनी ने भी देहरादून में अपनी बहन कुन्ती देवी को एक पौधे के साथ भिटौली देकर भाई होने का जिम्मेदारी निभाई। उन्होंने कहा कि आप भी अपने ब्याही बेटी को मायके में भिटौली दें? तभी हमारी यह भिटौली की परम्परा जीवित रहेगी।
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