त्रिवेन्द्र सिंह रावत की तीर्थयात्रा
भाजपा में सत्ता परिवर्तन का खेल- आल इज वेल!
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। यह उत्तराखंड़ प्रदेश की नियति रही है कि यहां नारायण दत्त तिवारी सरकार के अलावा कोई भी सरकार अपने पूरे पांच साल के कार्यकाल को पूरा नहीं कर सकी। चाहे सरकार कांग्रेस की रही या भाजपा की, दोनों के ही कार्यकाल के दौरान सरकार में नेतृत्व परिवर्तन होता रहा है। अब त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार पर परिवर्तन की गाज गिरी है।
हालांकि इस सरकार के कार्यकाल में बाहरी तौर पर बगावती तेवर दिखायी नहीं दिए लेकिन अंदरखाने कितना असंतोष रहा होगा, इसका अंदाजा ताजा घटनाक्रम से सहज ही लगाया जा सकता है। भले ही बहुत से लोग कह रहें थे कि आल इज वेल है लेकिन अचानक बजठ सत्र को आनन-फानन में निपटा देना और तमाम भाजपा विधयकों को दिल्ली से भेजे गए पर्यवेक्षकों के सम्मुख तलब करना, ऐसे संकेत रहे, जो साफ कर रहे थे कि कुछ तो है। परिणाम भी जब सामने आया तो संशय सच में बदल गया।
जाहिर तौर पर प्रदेश भर में यह संकेत गया है कि प्रदेश का मुख्यमंत्री बदला जा रहा है। और नेतृत्व परिवर्तन हो ही गया। इस बीच कई दावेदारों के बारे में चर्चा होती रही। कई दावे किए जाते रहे। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष द्वारा कहा जा रहा था कि आल इज वेल लेकिन वह झूठा साबित हुआ। यानि परिवर्तन करते समय भाजपा आलाकमान ने प्रदेश के क्षत्रपों को विश्वास में नही लिया।
गौर करने वाली बात है कि जब से त्रिवेन्द्र सिंह रावत सरकार वजूद में आई थी, कयास लगते रहे और अफवाहें उड़ती रहीं कि नेतृत्व परिवर्तन होने वाला है। जबकि इन अफवाहो के बीच सरकार ने अपने चार साल करीब-करीब पूरे कर लिये। लेकिन जब तक कि वह चार साल का जश्न मना पाती, उसे रूखसत कर दिया गया।
बिना जनाधर वाले नेता को कुर्सी पर बैठना और कुर्सी से उतारने का काम सहजता से हो जाता है। इसलिए बदलाव के लिए भाजपा को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ी लेकिन मुख्यमंत्री को लेकर मंथन हुआ तो गुणा-भाग की कसरत जरूरी हो गई। वैसे भी पार्टी के एक बड़े नेता के आप पार्टी में जाने की अटकलबाजी चल रही है। ऐसे में पार्टी आलाकमान कोई रिस्क नही लगना चाहती। प्रदेश में एक मुख्यमंत्री को तीर्थयात्रा पर भेज कर दूसरे तीरथ को कुर्सी पर बैठाकर भाजपा ने ऐसा संकेत भी दिया।
त्रिवेन्द्र की तीर्थयात्रा के बाद प्रदेश में सत्ता परिवर्तन को भाजपा में आल इज वेल का नारा दिया जा रहा है लेकिन आने वाला वक्त बतायेगा कि इसका प्रभाव कितना व्यापक होगा। हालांकि अब के हालात ने फिर से साबित किया है कि नेतृत्व परिवर्तन प्रदेश की नियति है। भले ही प्रदेश में सरकारें और पार्टियां बदल जाये लेकिन नियति नहीं बदलने वाली।
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