बिटकाइन के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। हाल में बिटकाइन के मूल्य में काफी उतार चढ़ाव देखा गया हैं, जिसकी वजह से निवेशकों को संदेह हो गया है कि इसमें अपना पैसा डालें या नहीं। बिटकाइन काम कैसे करता है, यह जानना आज के दौर में बेहद जरूरी है।
बिटकाइन एक डिजिटल मुद्रा है क्योंकि यह सिर्फ वर्चुअल रूप में ही उपलब्ध है। यानी इसका कोई नोट या कोई सिक्का नहीं है। यह एन्क्रिप्ट किए हुए एक ऐसे नेटवर्क के अंदर होती है जो व्यावसायिक बैंकों या केंद्रीय बैंकों से स्वतंत्र होता है। इससे बिटकाइन को पूरी दुनिया में एक जैसे स्तर पर एक्सचेंज किया जा सकता है। एन्क्रिप्शन की मदद से इसका इस्तेमाल करने वालों की पहचान और गतिविधियों को गुप्त रखा जाता है।
बिटकाइन को पहली बार 2008 में सातोशी नाकामोतो नाम के व्यक्ति ने सार्वजनिक रूप से जाहिर किया था। यह आज तक किसी को नहीं मालूम कि यह एक व्यक्ति का नाम है या कई व्यक्तियों के एक समूह का। 2009 में एक ओपन-सोर्स साफ्रटवेयर के रूप में जारी किए जाने के बाद यह मुद्रा लागू हो गई।
इसे हासिल करने के कई तरीके हैं। पहला आप इसे काइनबेस या बिटफाइनेंस जैसे आनलाइन एक्सचेंजों से डालर, यूरो इत्यादि जैसी मुद्राओं में खरीद सकते हैं। दूसरा आप इसे अपने उत्पाद या अपनी सेवा के बदले भुगतान के रूप में पा सकते हैं। तीसरा आप खुद अपना बिटकाइन बना भी सकते हैं। इस प्रक्रिया को माइनिंग कहा जाता है।
बिटकाइन खरीदने से पहले अपने कंप्यूटर में वालेट साफ्रटवेयर इंस्टाल करना पड़ता है। इस वालेट में एक पब्लिक चाभी होती है जो आपका पता होता है और एक निजी चाभी भी होती है जिसकी मदद से वालेट का मालिक क्रिप्टो मुद्रा को भेज सकता है या पा सकता है। स्मार्टफोन, यूएसबी स्टिक या किसी भी दूसरे डिजिटल हार्डवेयर का इस्तेमाल वालेट के रूप में किया जा सकता है।
भुगतान के लिए बिटकाइन का इस्तेमाल कैसे किया जाता है? मान लीजिए मिस्टर एक्स मिस वाई से एक टोपी खरीदना चाहते हैं। इसके लिए सबसे पहले मिस वाई को मिस्टर एक्स को अपना पब्लिक वालेट पता भेजना होगा, जो एक तरह से उनके बिटकाइन बैंक खाते की तरह है।
मिस वाई से उनके पब्लिक वालेट का पता पा लेने के बाद मिस्टर एक्स को अपनी निजी चाभी से इस लेनदेन को पूरा करना होगा। इससे यह साबित हो जाता कि इस डिजिटल मुद्रा को भेजने वाले वही हैं। यह लेनदेन बिटकाइन से रोजाना होने वाले हजारों लेनदेनों की तरह बिटकाइन ब्लाकचेन में जमा हो जाता है।
अब मिस्टर एक्स द्बारा किए हुए लेनदेन की जानकारी ब्लाकचेन नेटवर्क में शामिल सभी लोगों को पहुंच जाती है। इन लोगों को नोड कहा जाता है। मूल रूप से ये निजी कम्प्यूटर होते हैं, जिन्हें माइनर या खनिक भी कहा जाता है। ये इस लेनदेन की वैधता को सत्यापित करते हैं। इसके बाद बिटकाइन मिस वाई के पब्लिक पते पर चला जाता है, जहां से वो अपनी निजी चाभी का इस्तेमाल कर इसे हासिल कर सकती हैं।
सैद्वांतिक तौर पर ब्लाकचेन नेटवर्क में कोई भी खनिक बन सकता है लेकिन अधिकतर यह प्रक्रिया बड़े कंप्यूटर फार्मों में की जाती है जहां इसका हिसाब रखने के लिए आवश्यक शक्ति हो। इस प्रक्रिया में लेनदेन को सुरक्षित रखने के लिए नए लेनदेनों को तारीख के हिसाब से जोड़ कर एक कतार में रखा जाता है।
हर लेनदेन को एक विशाल सार्वजनिक बही-खाते में शामिल कर लिया जाता है। इसी को ब्लाकचेन कहा जाता है क्योंकि इसमें सभी लेनदेन एक ब्लाक की तरह जमा कर लिए जाते हैं। जैसे-जैसे सिस्टम में नए ब्लाक आते हैं, सभी इस्तेमाल करने वालों को इसकी जानकारी पहुंच जाती है। इसके बावजूद किसने किसको, कितने बिटकाइन भेजे हैं, यह जानकारी गोपनीय रहती है। एक बार कोई लेनदेन सत्यापित हो जाए, तो फिर कोई भी उसे पलट नहीं सकता है।
खनिक जब नए लेनदेन को प्रोसेस करते हैं तो इस प्रक्रिया में वे विशेष डिक्रिप्शन साफ्रटवेयर का इस्तेमाल कर नए बिटकाइन बनाते हैं। डिक्रिप्ट होते ही श्रृंखला में एक नया ब्लाक जुड़ जाता है और उसके बाद खनिक को इसके लिए बिटकाइन मिलते हैं। पूरे बिटकाइन नेटवर्क में चीन सबसे बड़ा खनिक है। वहां कोयले से मिलने वाली सस्ती बिजली की वजह से वो अमेरिका, रूस, ईरान और मलेशिया के अपने प्रतिद्वंदी खनिकों से आगे रहता है।
क्रिप्टो माइनिंग और प्रोसेसिंग के लिए जो हिसाब रखने की शक्ति चाहिए, उसकी वजह से बिटकाइन नेटवर्क ऊर्जा की काफी खपत करता है। यह प्रति घंटे लगभग 120 टेरावाट ऊर्जा लेते है।
अब लिंक का इंतजार कैसा? आप सीधे parvatiyanishant.page पर क्लिक कर खबरों एवं लेखों का आनंद ले सकते है।