अरुणाचल में यूरेनियम की खुदाई पर चीन बौखलाया
एजेंसी
नई दिल्ली। भारत के पूर्वाेत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश में मिले यूरेनियम के नए भंडार से के मामले में भारत के आत्मनिर्भर होने की संभावना जगी है लेकिन यूरेनियम की खुदाई पर चीन बौखला रहा है।
भारत-चीन सीमा से महज कुछ किलोमीटर दूर अरुणाचल की मेचुका घाटी में हाल में यूरेनियम के भंडार का पता चला है। इलाके में बपर्फीली पहाड़ियां होने की वजह से हवाई मार्ग से उस जगह पर जाना मुमकिन नहीं। बावजूद इसके इस बारे में खोजबीन के लिए वैज्ञानिक दुर्गम मेचुका घाटी में भारतीय सीमा के सबसे आखिरी गांव तक गए। यूरेनियम की खोज के नतीजे सकारात्मक रहने के बाद अब जल्दी ही खनन शुरू किया जायेगा।
मेचुका या मेचुक अरुणाचल प्रदेश के शि-योमी जिले के तहत मेचुका घाटी में समुद्र तल से 1,829 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एक छोटा-सा शहर है। इस शहर के बाद मैकमोहन लाइन भारतीय और चीनी को बांटती है। मेचुका शहर भारत-चीन सीमा से महज 29 किलोमीटर दूर है। यहां सड़क बनने से पहले इलाके में अकेली हवाई पट्टी थी जहां मौसम अनुकूल होने पर हेलीकाप्टर उतर सकते थे। उसका इस्तेमाल भारतीय वायु सेना स्थानीय लोगों को खाद्यान्न और दूसरे जरूरी चीजों की सप्लाई के लिए करती थी। यूरेनियम का भंडार होने की संभावना के बाद सरकार ने मेचुका घाटी में खोज की अनुमति दी थी.। उसके बाद परमाणु खनिज निदेशालय ने केंद्र सरकार के सहयोग से इस परियोजना पर काम शुरू किया।
परमाणु खनिज निदेशालय (एएमडी) के निदेशक डा0 डीके सिन्हा ने हैदराबाद में एक सेमिनार में बताया था कि केंद्र से प्रोत्साहन मिलने के बाद हमने यूरेनियम के भंडार की तलाश का काम शुरू किया। इसके लिए शोधकर्ताओं की टीम को पैदल ही दुर्गम पहाड़ियों पर चढ़ना पड़ा।
सिन्हा का कहना है कि अरुणाचल प्रदेश की मेचुका घाटी में यह खोज जमीन से लगभग 619 मीटर की गहराई में की गई। वह बताते हैं कि अरुणाचल में जिस जगह यूरेनियम के लिए खुदाई की परियोजना चल रही है वह चीनी सीमा से कुछ किलोमीटर भीतर भारतीय सीमा में है। वहां तक आवाजाही में कापफी सहूलियत है। इसलिए यूरेनियम के उत्पादन में इसकी भूमिका अहम हो सकती है।
अरुणाचल प्रदेश में यूरेनियम का भंडार होने की खबरें मीडिया में छपने के बाद चीन ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया जताई है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स में छपी एक खबर में तो कुछ विशेषज्ञों के हवाले चीन सरकार से इस मामले में कार्रवाई की मांग की गई है। विशेषज्ञों का कहना है कि इससे भारत-चीन सीमा पर होने वाली बातचीत को नुकसान पहुंचेगा।
चीन शुरू से ही अरुणाचल प्रदेश के दक्षिणी तिब्बत का हिस्सा होने का दावा करता रहा है। अखबार ने यूरेनियम के भंडार संबंधी खबरें छापने के लिए भारतीय मीडिया की भी आलोचना की है। उसकी दलील है कि चीन ने अरुणाचल को भारत के हिस्से के तौर पर कभी मान्यता नहीं दी है। अरुणाचल को चीन में तिब्बत का दक्षिणी हिस्सा या जंगनान के रूप में जाना जाता है।
चीनी अखबार ने सिंघुआ विश्वविद्यालय में इंडियन स्टडीज के सहायक प्रोपफेसर शी चाओ के हवाले लिखा है कि इलाके में यूरेनियम के भंडार का होना या नहीं होना बड़ा मुद्दा नहीं है। असली मुद्दा उस इलाके पर अपना दावा जताने का भारत का अड़ियल रवैया है। इससे सीमा विवाद और भड़कने का अंदेशा पैदा हो गया है।
इस बीच भाजपा ने चीन की प्रतिक्रिया को बेतुका करार देते हुए कहा है कि एक संप्रभु राष्ट्र अपनी सीमा के भीतर कुछ भी करने के लिए स्वतंत्रा है। भाजपा के मुताबिक जिस इलाके में यूरेनियम का भंडार होने की संभावना है वह शि-योमी जिले में है जो अरुणाचल का हिस्सा है।
सामरिक विशेषज्ञ सुविमल मुखर्जी कहते हैं कि चीन को हमेशा अरुणाचल प्रदेश से समस्या रही है। वह प्रधानमंत्री के दौरों के समय भी आपत्ति जताता रहा है लेकिन उसकी दलीलों में कोई दम नहीं है। अरुणाचल प्रदेश हमेशा भारत का हिस्सा रहा है। चीन अपनी गलतियों को छिपाने के लिए इस विवाद को जबरन अंतरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने का प्रयास करता रहा है।
विशेषज्ञों का कहना है कि इलाके में यूरेनियम का भंडार मिलने और वहां उत्पादन शुरू होने के बाद भारत इस मामले में आत्मनिर्भर हो सकता है। फिलहाल वह यूरेनियम के आयात के लिए कजाखस्तान और आस्ट्रेलिया जैसे देशों पर निर्भर है। देश में 1960 के दशक में परमाणु संयंत्रों का निर्माण शुरू होने के बाद भारत ने यूरेनियम का भंडार तलाशने और अपनी परमाणु क्षमता मजबूत करने की दिशा में ठोस प्रयास शुरू किया लेकिन यूरेनियम का भंडार कम होने और उसकी गुणवत्ता खराब होने की वजह से इस दिशा में ज्यादा प्रगति नहीं हो सकी थी।
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