दौलाबलिया से रावलखेत तक प्रकृति के सानिध्य में गंगावली यात्रा टीम की साहसिक ट्रैकिंग
विश्व प्रसिद्व पाताल भुवनेश्वर गुफा के समीप स्थित है साहसिक ट्रैकिंग स्थल
- पवन नारायण रावत
गंगोलीहाट। यह गंगोलीहाट क्षेत्र में एक बेहतरीन ट्रैकिंग रुट है जो पगडंडी के सिरों पर आपको ट्रैकिंग का लुफ्रत तो प्रदान करेगा ही साथ ही इसमें गंगोलीहाट के आखिरी छोर तक खड़े पहाड़ों, घने जंगलों, नैसर्गिक झरनों एवं नदी की खूबसूरती के एक साथ दर्शन लाभ भी उपलब्ध होंगे।
जी हां मित्रों, यात्रा की शुरुआत होती है, गंगोलीहाट से लगभग 16 किमी आगे दौला से। इसके लिए आपको गंगोलीहाट से 13 किमी आगे पाताल भुवनेश्वर मार्ग पर गुफा से थोड़ा पहले मुख्य मार्ग से दौला बलिया जाने वाली सड़क पर करीब 3 किमी आगे दौला पहुंचना होगा। यहां तक मुख्य मार्ग से पहुंचने के बाद ट्रैकिंग प्रारम्भ होती है। यह मुख्य मार्ग लगभग 17 किमी आगे सीधे रावलखेत तक जाता है। पर ट्रैकिंग के लिए हम यहीं से शुरुआत करेंगे।
दौला से ट्रैकिंग प्रारम्भ करते हुए टीम आगे की तरफ बढ़ती है। आज की यात्रा टीम बिरगोली के पुष्कर खाती के नेतृत्व में आगे बढ़ रही है। जिनके ठीक पीछे मै और सबसे पीछे चिटगल के विनोद पन्त। खाती सधे हुए कदमों से आगे बढ़ रहे हैं। रास्ता बिल्कुल पतली पगडंडी से होकर आगे बढ़ रहा है। लगभग एक किमी तक रास्ता चढ़ाई में चढ़ता जाता है। फिर पहाड़ी के एक सिरे से दूसरे सिरे तक घुमावदार संकरे मार्ग से होकर जाता है। यहां से लगभग आधे किमी तक एक गूल के किनारे किनारे आगे बढ़ना होता है। जिसमें अधिकतर दूरी तक बस एक तरफ एक पांव रखने भर की जगह है। खाती इसमें एक पांव गूल के एक किनारे और दूसरा दूसरे किनारे पर रखकर आगे बढ़ते रहे। उनके पीछे मैं भी इसी निंजा टेक्नीक के सहारे आगे बढ़ता रहा और पीछे-पीछे पंत।
लगभग डेढ़ किमी पर छिरौली इंटर कालेज नज़र आता है। पास ही कुछ स्थानीय ग्रामीण अपने घरों में काम करते हुए नजर आते हैं। एक घर से खाती को बुलाया जाता है। खाती दूर से ही हाथ हिलाकर अभिवादन करते हुए आगे बढ़ जाते हैं। आगे की तरफ रास्ता चीड़ वनों से होकर गुजरता है। इस स्थान पर चीड़ के बेहद लम्बे और घने वृक्ष मौजूद हैं। जो अपनी खूबसूरती से आपको बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं। उनका आकर्षण ही है कि आप यहां पर पिरूल से भरे बेहद फिसलन वाले मार्ग पर बिना डर के धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं। इस समय जब सब जगह पर्वतीय क्षेत्रों में जंगल वनाग्नि की त्रासदी झेल रहे हैं। यहां के शांत हवादार चीड़वनों को देखकर मन को बेहद सुकून प्राप्त हुआ। काफी ऊंचाई से मार्ग नीचे की तरफ आने के कारण संभलकर चलना जरूरी हो जाता है। इस हिदायत के साथ ही खाती ने यहां कुछ देर विश्राम करने का सुझाव दिया। जिसे तुरंत ही स्वीकार कर लिया गया। विश्राम के दौरान वन्य पक्षियों के मनमोहक संगीत ने वाकई में सबका मन मोह लिया। जिससे तरोताजा होकर टीम आगे के सफर पर निकल पड़ी।
चीड़ की हवा और पंछियों की मधुर संगीतमयी ऊर्जा के साथ साथ हम पहुंच गये मकार गांव। यहां लगभग 10-12 परिवार हैं जिनमें अधिकतर बड़े शहरों, कस्बों में हैं। दूर खाली पड़े एक पुराने मकान की तरफ देखते हुए केशर सिंह दसौनी ने कहा कि जिनसे रास्ते में मुलाकात हुई और जो खाती के परिचित होने के लिए कारण हमारे लिए थरमस में चाय लेकर आये थे। यही पहाड़ की संस्कृति है, अपनेपन से भरपूर। रास्ते में ही बैठे बैठे सबने चाय का आनन्द लिया, चर्चा की फिर उनसे विदा लेकर टीम आगे बढ़ी।
आगे मार्ग के मार्गदर्शन के लिए वे थोड़ी दूर एक जलस्रौत तक हमारे सारथी के तौर पर हमारे साथ चले। स्रौत में सबने प्राकृतिक जल का आनंद लिया। यह था रमतड़ी का शीतल जलयुक्त प्राकृतिक स्रौत। स्रौत ने सबकी प्यास बुझाई और मन को शीतलता भी दी। इसी जगह कुन्दन से विदा लेकर टीम पुनः खाती के निर्देशन में आगे बढ़ चली।
दीमक द्वारा निर्मित मिट्टी का किलेनुमा टीलालगभग एक किमी आगे ऊंचाई से ही ठीक नीचे गहराई पर एक सुन्दर एवं आकर्षक झरना दिखाई पड़ा। झरने की प्राकृतिक सुंदरता ने हम सबकी थकान दूर कर हममें उत्साह का संचार कर दिया। खाती के कदमों की गति दुगनी हो चुकी थी। पंत भी पीछे न थे। कुछ ही देर में सब झरने के करीब पहुंच गए। वाह के अलावा शायद की अन्य शब्द मुंह से सहसा निकला हो और क्यों नहीं। इस निर्जन घने वृक्षों के बीच में इतना शानदार। निर्मल शुद्व जलयुक्त झरना देखकर हम सभी प्रपफुल्लित थे। सभी ने जी भरकर झरने के जल में जलक्रीड़ा की और तसल्लीपुर्वक लुफ्रत उठाने के उपरांत टीम आगे बढ़ चली। रमतड़ी में मौजूद झरना अपने आप में एक बेहतरीन पर्यटन स्थल के तौर पर विकसित की जाने वाली साइट है साथ ही यह सम्पूर्ण स्थल साहसिक पर्यटन के लिहाज से भी तमाम सम्भावनाओं से भरपूर है।
आगे मार्ग फिर से ऊंचाई की तरफ आगे बढ़ता जाता है लेकिन यहां तक के मार्ग में मौजूद। प्रकृति के खूबसूरत नज़ारे। चारों तरफ चीड़ और बांज के वृक्ष। शान्त संगीतमय वन एवं मनमोहक झरने, इन सबने हम सबकी ऊर्जा एकाएक बढ़ा दी थी। एक स्थान पर मिट्टी का एक बेहद खूबसूरत किलेनुमा संरचना ने यकायक सबका ध्यान अपनी तरफ खींच कर लिया। इसे करीब से देखा गया। पंत ने इस पर प्रकाश डाला कि यह दीमक द्वारा मिट्टी खोद-खोदकर तैयार किया गया किला है। इसका डिजाइन वाकई आकर्षक था। प्रकृति ने सब जीवों को स्वयं प्रशिक्षित किया है। ये बेहद सुंदर शिल्पी हैं। चेहरे पर प्रसन्नता लिए हुए किले को निहारते हुए खाती की आवाज सुनाई दी। कापफी ऊंचाई पर पहुंचने पर नीचे की तरफ एक पगडंडी नुमा रास्ता दिखाई दिया। खाती ने बताया कि वह इकलियागाड़ का मार्ग है। कुछ देर और आगे बढ़ने पर पहाड़ के दूसरे छोर पर आखिरकार रामगंगा के दर्शन हो ही गये।
हम समझ गए, मंजिल करीब ही थी। हम रावलखेत पहुंच चुके थे। खाती ने बताया कि यह गंगोलीहाट का आखरी छोर है। नीचे रामगंगा है, उस पार मुवानी। यहीं पर प्राथमिक विद्यालय रावलखेत के समीप ही मुख्य सड़क मार्ग से मिलने पर टीम की लगभग पांच किमी लंबी बेहद खूबसूरत ट्रैकिंग यहीं समाप्त होती है।
गंगावली क्षेत्र की यह ट्रैकिंग निश्चित रूप से बेहद सुखद रही और इस सीख के साथ कि प्रकृति के साये में जीवन सरल, आसान और उच्च क्षमताओं से परिपूर्ण हो सकता है। बस जरूरत है तो हमें तैयार होने और सीखने की।