राजनीति नहीं कारवाई की जरूरत है
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जिस तरह से नक्सलियों ने उत्पात मचा रखा है, उससे कड़ाई से निपटने की जरूरत है। यहां पर राजनीति की नहीं बल्कि सख्त कारवाई करने का समय है। हाल ही में जिस तरह से नक्सलियों ने घात लगाकर हमारे सुरक्षाबलों के करीब दो दर्जन जवानों की जान ली और अगवा किए गए जवान का तमाशा बनाकर रिहा किया, वह घोर आपत्तिजनक है। यह हमारे सुरक्षा बलों का अपमान है। यह नक्सलियों का अक्षम्य अपराध है। लेकिन हैरानी की बात है कि स्वयं को लोकतंत्र के हिमायती बताने वाले तमाम वामपंथी और उसके साथ विपक्षी दल इसपर चुप्पी साधे हुए है। वरना यह सभी लोग थोड़ा भी मौका मिला नही कि आसमान सिर पर उठा लेते है। आज यह सभी हमारे सुरक्षा बलों के जवानों की शहादत पर खामोश बैठे है।
यह वहीं लोग है जो अक्सर सरकार से सवाल किया करते है कि सरकार दाउद को कब पाकिस्तान से वापस ला रहें है या फिर हाफिज सईद को कब भारत लाकर उसके किए का दंड़ दिया जायेगा। लेकिन हमारे देश में नक्सलियों की पूरी देशद्रोही टीम बैठी है, उसके लिए इनकी जबान कभी नहीं खुलती है। बल्कि एक तरह से इन्हीं के द्वारा नक्सलियों को संरक्षण दिया जाता है। जबकि कई बार वे खुद भी कभी न कभी नक्सली हिंसा से प्रभावित रहें है। लेकिन वोट बैंक का लालच इनसे नक्सलियों के सौ खून भी माफ करवा सकता है। अपने स्वार्थ को सिद्व करने के लिए राष्ट्रहित को भी तिलांजलि दी जा सकती है, ऐसा दृष्टांत पेश किया जा रहा है।
यह नहीं भूलना चाहिये कि आज हमारे देश का विपक्ष पत्तन की पराकाष्ठा को पार कर चुका है। कभी शाहीनबाग की अनुचित मांगों के साथ खड़े होकर तो कभी किसानों के नाम पर देश को गुमराह करने का प्रयास कर इन्होंने जता दिया है कि इनका कोई स्टैंड नहीं है। जहां चंद वोटों की छनछनाहट सुनाई दे, वहीं इनकी रोम-रोम बस जाता है। कई बार तो वोट की खातिर वाया पाकिस्तान भी गुहार लग चुकी है। ऐसे में नक्सल समस्या से निपटने की इच्छाशक्ति इनमें शेष नहीं। यह सरकार को सहयोग देने की बजाय, उसकी मुश्किलें खड़ी करने से बाज नहीं आते। इसके बावजूद सरकार को नक्सलियों से सख्ती से निपटने में देर नहीं करनी चाहिये।
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