कोविड़-19 की कोई दवा नही, सोशल मीडिया की अफवाहों पर भी रोक मुश्किल
थम नहीं रहा कोविड़ और सोशल अफवाहों का सिलसिला
प0नि0ब्यूरो
देहरादून। जिस तेजी से देशभर में केाविड़-19 महामारी का प्रकोप बढ़ता जा रहा है उसी तर्ज पर सोशल मीडिया पर अफवाहें भी तेजी से अपने पांव पसार रही है। दोनों बीमारियों की एक समानता यह भी है कि उनका इलाज मुश्किल है।
न तो अभी तक कोविड-19 के लिए कोई दवा मौजूद है और न ही सोशल मीडिया के जरिए प्रसारित हो रहीं अफवाहों पर रोक के लिए कोई कारगर उपाय उपलब्ध है। बल्कि कई बार तो कोरोना संक्रमण की तरह अफवाहों का प्रचार प्रसार इस तरह हो जाता है कि तमाम प्रयासों के बाद भी लोगों को समझना कठिन हो जाता है। वहीं लोग भी तय नहीं कर पाते कि क्या सच है और क्या झूठ? कई बार तो लोग झूठ को सच मानने लगते है। ऐसे हालात में उन्हें जागरूक करना संभव नहीं रहता है। इसलिए आज के दौर में जरूरी हो जाता है कि बीमारी के साथ साथ अफवाहों पर भी लगाम लगाने का मैकेनिज्म तैयार हो। यह वक्त की मांग भी है।
एक तरह देशभर में कोविड़ संक्रमण में तेजी से इजाफा हो रहा है और रोजाना संक्रमण एवं कोविड़-19 से होने वाली मौतों का नित नया रिकार्ड बन रहा है। वहीं दूसरी तरह लोगों को यकीन नहीं हो रहा है कि यह सच है। लोग जानलेवा लापरवाही बरत रहें है। मास्क और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं हो रहा है। अब तो लोगों ने साबुन से हाथ धोना भी छोड़ दिया है। सैनेटाईजर का उपयोग भी नगण्य हो गया है। जैसे कोविड़ महामारी ऐसा घाव हो जिसमें दर्द नहीं होता।
इसके चलते वैक्सीन लगवाने में लोगों की दिलचस्पी कम देखने को मिल रहीं है। बल्कि अपवादों को अफवाहों के तौर पर पेश करके वैक्सीनेशन को अनुपयोगी बताया जा रहा है। इसके लिए तर्क यह कि वैक्सीन लगाने के बाद भी ऐसे लोगों को कोविड़ का संक्रमण हो रहा है। कई तो वैक्सीन लगाने के बाद होने वाले मामूली बुखार को बहाना बनाकर वैक्सीनेशन वैक्सीनेशन से कतरा रहें है। आज भी रह रह कर सोशल मीडिया में ऐसे पोस्ट देखने को मिल रहे है जो साबित करने का प्रयास कर रहें है कि कोरोना कोई बीमारी नहीं, बस हौवा खड़ा किया जा रहा है।
ऐसे विचार सोशल मीडिया के जरिए लोगों के जेहन में बार-बार डाले जा रहें है। जिसका परिणाम यह हो गया है कि लोगों को ऐतबार ही नहीं हो रहा है कि यह गंभीर बीमारी है जो आखिरकार जानलेवा साबित हो सकती है। लेकिन यही सोच देशभर में कोरोना की दूसरी लहर के प्रसार के निमित्त वरदान साबित हो रही है और ऐसी सोच वाले लोगों के सहयोग से तेजी से अपने पांव पसारने में लगी हुई है। खतरा दरवाजे पर दस्तक दे रहा है और हम दरवाजा खोलकर इंतजार कर रहें है। यह वास्तव में जोखिम भरी सोच है।
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